Unesco: रामचरित मानस सहित 3 भारतीय ग्रंथ यूनेस्को में होंगे सूचीबद्ध
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, संचार और सूचना में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर शांति और सुरक्षा में योगदान देता है। यह मानवता के लिए उत्कृष्ट मूल्य मानी जाने वाली सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को पहचान, सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करती हैं। भारत में 42 विश्व धरोहर स्थल है। भारत के विभिन्न कालखंड और क्षेत्र से निकले इन साहित्यिक खजानों ने देश के सांस्कृतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह गहन ज्ञान और कलातिक शिक्षाएं विश्व की आने वाली पीढियां के लिए बनी रहेगी।
‘यूनेस्को’ द्वारा भारतीय ज्ञान,परम्परा की अनुपम कृति गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीरामचरितमानस, विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र और आचार्य आनंद वर्धन की पुस्तक ‘सह्रदयलोक लोकन’ प्रसिद्ध ग्रंथ हैं जिन्हें ‘यूनेस्को’ ने विश्व स्मृति अभिलेख के रूप में सूचीबद्ध किया है। यह फैसला कुछ दिन पूर्व ही हुआ है। भारत के सांस्कृतिक विरासत के लिए यह ऐतिहासिक अवसर है, जो हमेशा के लिए सुरक्षित रहेगी। यह हमारे लिए गर्व और उत्साह का क्षण है।इससे हमारे समृद्ध साहित्य विरासत को नया आयाम मिला है। जिससे हमारी सांस्कृतिक धरोहर पहले से और अधिक मजबूत हुई है।
विष्णु दत्त शर्मा द्वारा संस्कृत में लिखित ‘पंचतंत्र’ प्राचीन और प्रसिद्ध कहानियों का संग्रह है। जिसमें विभिन्न प्राणियों के जीवन के प्रसंग, दृष्टांत माध्यम से लिखे है। जिससे हम हमारे जीवन को समृद्ध कैसे कर सकते हैं, यह समझाया है। हर कहानी के अंत में सीख दी गई है। हम प्राणियों के स्वभाव को तो तुरंत स्वीकार करते हैं कि हाथी धीरे चलता है, वह शाकाहारी है। शेर का स्वभाव है कि वह भूख लगने पर शिकार करता है। लोमड़ी चालाक होती है। खरगोश डरपोक होता है। यह पुस्तक पढने से मनुष्य के अलग-अलग स्वभाव को स्वीकार करने की हमारी आदत बनती है, जो जीवन को आसान बनाती है।
‘सह्रदयलोक लोकन’ आचार्य आनंद वर्धन द्वारा लिखित भारत की साहित्यिक उत्कृष्टता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण है। यह काव्य शास्त्रों की शुरुआती रचनाओं में से एक है। यह ध्वनि मर्म को समझाते हैं। कविता किस बारे में है, उसके गुण दोष, वह किस रस के प्रति प्रेरित करती है। अर्थात काफी महीन रूप से काव्य को समझती हैं। राष्ट्रीय कला केंद्र में कला विभाग के प्रमुख प्रो रमेश चंद्र गौड़ ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, एक निर्णायक भूमिका निभाई है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं बैठक के दौरान एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उलानबटार में हुई इस सभा में, सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि, 40 पर्यवेक्षकों और नामांकित व्यक्तियों के साथ एकत्र हुए। तीन भारतीय नामांकनों की वकालत करते हुए, आईजीएनसीए ने ‘यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में उनका स्थान सुनिश्चित किया।
‘यूनेस्को’ का यह कदम भारत की साझा मानवता को आकार देने वाली विविध कथाओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों को पहचानने और सुरक्षित रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है। इन साहित्यिक उत्कृष्ट कृतियों का सम्मान करके, समाज न केवल उनके रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिभा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि उनका गहन ज्ञान और कालातीत शिक्षाएं भावी पीढिय़ों को प्रेरित करती रहें और उनकी जानकारियां बढ़ाती रहें।