सुदेश वाघमारे
सिकन्दर यानि अलेक्जेंडर जब भारत से वापस लौटा तो अपने साथ भारतीय तोते की एक विशिष्ट प्रजाति पहाड़ी/ हीरामन/गिन्नौरी हजारों की संख्या में लेता गया क्योंकि वे बहुत सुंदर बोलते थे। गोरों ने उस तोते का नाम ही अलेक्जेंडर पैराकीट रख दिया। इस तोते को देखने पर मुझे लगता है कि अलेक्जेंडर भारत के पिछवाड़े पर लात मारकर जा रहा है।इससे भले तो हमारे गोंड हैं जिन्होंने इसे गिन्नौरगढ़ में बहुतायत से पाये जाने के कारण गिन्नौरी तोता नाम दिया। गिन्नौरगढ़ यानि रानी कमलापति का क़िला।
जिन्हें हम पैरट(parrot) कहते हैं वे वैज्ञानिक भाषा में पैराकीट हैं। मध्य भारत में तीन तरह के तोते यानि पैराकीट पाये जाते हैं-
१. अलेक्जेंडर पैराकीट यानि गिन्नोरी तोता- नर के लाल काली कंठी होती है और परों पर लाल धब्बा। मादा में केवल लाल धब्बा होता है।आकार में यह सबसे बड़ा होता है।
२. कंठी वाला तोता यानि रोज़ रिंग पैराकीट- नर के गले में कंठी होती है और मादा कंठी विहीन केवल हरे रंग की होती है। यह गिन्नौरी से छोटा होता है।
३. टुइयाँ यानि प्लम हेडेड पैराकीट- ये सबसे छोटे आकार का होता है जिसमें नर का सिर सुंदर लाल रंग का होता है और मादा का अनाकर्षक स्लेटी।
चित्र में जो चौथा तोता दिख रहा है वह विदेशी है। असल में यही पैरट कहलाता है। मकाऊ नाम का यह विदेशी तोता लाखों में बिकता है। आकार में काफ़ी बड़ा होता है और मनुष्य की अच्छी नकल उतारता है। CITES के नये नियमों के अनुसार भारत में इसे पालने का शुल्क देना होगा।
अभिसारिका के नख-शिख वर्णन में तोते जैसी नाक को सुंदरता का मानक माना गया है। नीचे दी गई कविता को पढ़िये। यदि हिंदी अच्छी नहीं है तो पाँच बार पढ़ने के बाद समझ में आयेगी-
नाक का मोती अधर की कांति से
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से
देख शुक सहसा हुआ कुछ मौन है
सोचता है अन्य यह शुक कौन है।-