सुदेश वाघमारे
पिछले दिनों मध्यप्रदेश में बाबू स्तर के कर्मचारियों द्वारा रिश्वत में लाखों रुपए लेने के दो प्रकरणों की नजीर हाज़िर है। बीडीए का बाबू साढ़े तीन लाख की रिश्वत ले रहा है। अफसर कितनी ले रहे होंगे अंदाज लगाइये। यह वही भोपाल विकास प्राधिकरण है जिसके पहले अध्यक्ष ममनून मियाँ जैसे दानिशमंद थे और प्रतीकात्मक एक रुपया वेतन लेते थे। रिश्वत का तो नाम दूर- दूर तक नहीं था।
॰रिश्वत किस लिये माँगी जा रही थी यह भी रोचक है। शिकायतकर्ता ने अपने पैसों से ज़मीन और मकान खरीदा। बीडीए ने सिर्फ़ इतना करा कि ज़मीन लीज़ पर दी और अब उसका नवीनीकरण कर रहा है।हरामखोरों ने यह नियम भी इसलिये बनाया कि हर बार रिश्वत लेने का मौक़ा मिले। और जगह लीज ९९ साल के लिये नवीनीकृत की जाती है यहाँ रिश्वत लेने के लिए तीस साल में हो रही है।
• लोकायुक्त में शिकायत करने भी जिगरे वाला ही जा पाता है।लोकायुक्त अमला जब कहीं ट्रेप करने जाता है तो दो स्वतंत्र गवाह राजपत्रित अधिकारी के रूप में ले जाता है। इससे सबूत सिद्ध करने में आसानी रहती है। मैं भी राजपत्रित गवाह के रूप में ट्रेप केस में जाता रहा हूँ इसलिये उनकी प्रक्रिया से कुछ परिचित हूँ। सबसे पहले तो यही देखा जाता है कि आवेदक दुर्भावना से शिकायत तो नहीं कर रहा है। फिर आवेदक को लोकायुक्त के लिये सुबूत जुटाने में ऑडियो- वीडियो मदद करनी पड़ती है। पुलिस द्वारा यह भी ध्यान रखा जाता है कि इस दौरान आवेदक फिसल न जाये। पहले तो रिश्वत के रुपये भी शिकायत करने वाले को देने होते थे जो अदालत में जमा हो जाते थे। क्योंकि उनमें फिनॉफ्थलिन पाउडर (लाल रंग वाला) लगा होता था। अभी भी शायद यही नियम हो।आशय यह है जब तक आवेदक के तन-बदन में ट्रेप कराने की आग न लगी हो ट्रेप सफल नहीं होता। उसे अपने सब काम छोड़ लोकायुक्त को सहयोग करना पड़ता है।इस कारण मुश्किल से आधा प्रतिशत लोग ही लोकायुक्त तक रिश्वत की शिकायत करने जा पाते हैं। यानि भ्रष्टाचार का आधा प्रतिशत ही उजागर होता है। एक जमाने में लोकायुक्त की साख थी। सजा की दर ९०% थी।
• बीडीए में मुख्य रूप से भवनों का निर्माण होता है।उसमें जमकर शिष्टाचार होता है और वह करते भी रहिये।जनता को उस लूट से क्या लेना देना? यह गंगा तो हर जगह बह रही है।मगर जनता से नकद लेने में तो उसे बख़्श दीजिये। बेचारा कहाँ से इतना पैसा जुगाड़ेगा।
• मप्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री गोविन्दनारायण सिंह मजाक में कहा करते थे कि यदि वल्लभभवन(मंत्रालय) को डायनामाइट से उड़ा दिया जाये तो प्रदेश के किसी किसान को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसे सिद्ध करने वह जंगलों में लंबे प्रवास पर चले जाते थे।मुख्यमंत्री जी बीडीए रूपी अड्डे को सीपीए जैसा खत्म कर दीजिये। किसी भोपाल निवासी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
हालाते जिस्म सूरतों जाँ और भी खराब
चारों तरफ खराब यहाँ और भी खराब
रोशन हुए चराग तो आँखें नहीं रहीं
अंधों को रोशनी का गुमा और भी ख़राब।
- दुष्यंत कुमार