Editorial
Health insurance: क्या उपभोक्ता को लाभ मिलेगा?


इंश्योरेंस रेगुलेटर आईआरडीएआई ने हेल्थ इंश्योरेंस यानि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों से जुड़े नियमों में जो बदलाव किए हैं, वे पॉलिसीधारकों की सुविधा के लिहाज से खासे महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। पिछले 55 सर्कुलरों को रद्द कर जारी किया गया मास्टर सर्कुलर प्रक्रिया संबंधी उन गड़बडिय़ों को संबोधित करता है, जो देखने में आम लगती हैं, लेकिन पॉलिसीधारकों के लिए हमेशा ही परेशानी का सबब बनी रहती हैं।
आम लोगों का ध्यान खींचने वाली सबसे बड़ी बात इसमें यह है कि अब कैशलेस क्लेम को मंजूरी देने की समय सीमा एक घंटा निर्धारित हो गई है। यही नहीं, हॉस्पिटल से डिस्चार्ज का अनुरोध मिलने के तीन घंटे के भीतर डिस्चार्ज ऑथराइजेशन से जुड़ा पूरा मामला निपटाना होगा। सबसे अहम पहलू यह है कि इसमें देर होने की वजह से अगर हॉस्पिटल का बिल बढ़ता है तो उस अतिरिक्त राशि का भुगतान बीमा कंपनी को करना होगा।
इस सर्कुलर में पॉलिसीधारकों को मिलने वाली सर्विस की क्वॉलिटी में सुधार सुनिश्चित करने वाले कई उपाय बड़ी बारीकी से शामिल किए गए हैं। खास तौर पर पॉलिसीधारक की इलाज के दौरान मौत होने की स्थिति में क्लेम सेटलमेंट तत्काल निपटाने को कहा गया है ताकि शव अस्पताल से निकलवाने में देर न हो। ऐसे मामलों में देरी इंश्योरेंस स्कीम की उपयोगिता और संबंधित पक्षों की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करती रही है।
इसी तरह इंश्योरेंस कंपनियों को समयबद्ध तरीके से 100 प्रतिशत कैशलेस क्लेम सेटलमेंट का लक्ष्य दिया जाना भी महत्वपूर्ण है। अभी यह होता है कि स्वास्थ्य बीमा के तहत जब भी इलाज कराया जाता है पूरा क्लेम नहीं मिलता। बीमा कंपनियों के कार्यालयों में बिल की तमाम चीजें काट दी जाती हैं। अब पूरा क्लेम मिलने की बात तो कही जा रही है, लेकिन कितनी कंपनियां इसका पालन करती हैं, यह देखना होगा।
हेल्थ इंश्योरेंस सर्विस की क्वॉलिटी सुधारने जितना ही जरूरी है, इंश्योरेंस कवरेज का दायरा बढ़ाना। ध्यान रहे, अपने देश में चाहे पब्लिक हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम की बात की जाए या प्राइवेट इंश्योरेंस की, दोनों मिलकर भी आबादी के 70 प्रतिशत हिस्से को ही कवर कर पाते हैं। मतलब यह कि करीब 30 प्रतिशत यानी लगभग 40 करोड़ लोग इस दायरे से बाहर हैं। इन लोगों तक हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा पहुंचाना प्राथमिकता में होना चाहिए।
इस मास्टर सर्कुलर की सार्थकता असल में पॉलिसीधारकों को हो रही असुविधाओं से जुड़े फीडबैक में है। आम अनुभव में तो ऐसी बातें आ ही रही थीं, निजी एजेंसी के एक हालिया सर्वे में भी यह बात स्थापित हुई थी। सर्वे के मुताबिक पिछले तीन वर्षों के दौरान 43 प्रतिशत पॉलिसीधारकों ने इंश्योरेंस क्लेम की प्रॉसेसिंग में दिक्कतें झेलीं। उनके मुताबिक यह प्रक्रिया बेहद जटिल और लंबी होती है, जिसकी वजह से पॉलिसीधारक और उसके परिवार के सदस्यों को अस्पताल में आखिरी दिन क्लेम प्रोसेस करवाने की भागदौड़ करते बिताना पड़ता है।
बीमा कंपनियां असल में पूरी तरह से उपभोक्ताओं को लूटने और ठगने का काम ज्यादा करती हैं। उनका पूरा ध्यान यह रहता है कि किसी भी तरह व्यक्ति पालिसी ले ले। तब तक तो ऐसा लगता है कि व्यक्ति के बीमार होते ही कंपनियां उसकी सेवा में जुट जाएंगी। लेकिन असलियत यह है कि बीमार होने पर कई बार तो कंपरियों के अधिकारी फोन तक नहीं उठाते। इसके साथ ही तमाम अस्पताल संबंधित बीमा कंपनी को कैशलेस सुविधा देने से इंकार कर देते हैं। ऐसे में बीमार व्यक्ति या तो पैसों की व्यवस्था करता है, या फिर दूसरे अस्पताल में जाने को मजबूर होता है, जो सूची में होते हैं।
कुल मिलाकर भले ही रैग्यूलेटरी कंपनी ने नई व्यवस्था लागू कर दी हो, लेकिन उपभोक्ता को उसका सही लाभ मिल पाएगा, इसमें संदेह ही है। आम तौर पर बीमा कंपनियां जब संस्थानों या सरकारी उपक्रमों से कांट्रेक्ट करती हैं, तो उनके प्रमुखों को कमीशन का लालच दिया जाता है। इसी आधार पर बीमा कंपनी तय होती है और फिर कर्मचारियों को उसीसे बीमा कराना पड़ता है। दूसरी तरफ अस्पताल प्रबंधन से भी कंपनियों की मिलीभगत रहती है, जिस कारण मरीज को पूरा भुगतान भी नहीं होता और भुगतान मिलने में उसे पापड़ भी बेलने पड़ जाते हैं। अब कंपनियां कितनी राहत उपभोक्ता को देती हैं, यह देखना होगा।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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