Editorial
बांग्लादेश में हिंसा और भारत

पड़ौसी देश बांग्लादेश में बीते एक सप्ताह से जारी हिंसा की वजह बने विवादित आरक्षण को देश की सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में रद्द कर दिया है। इसके बाद भी बांग्लादेश में स्थिति तनावपूर्ण और अस्थिर बनी हुई है। विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने जमात-ए-इस्लामी की मदद से हसीना सरकार को हटाने की धमकी दी है और देश की सेना को प्रभावित करने के लिए अभियान शुरू किया है। इससे कहीं न कहीं भारतीय हितों पर भी निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। खास तौर पर बंगाल पर विशेष नजर रखने की जरूरत महसूस की जा रही है।
एक प्रमुख घटनाक्रम के तहत बांग्लादेश की सेना के जूनियर अधिकारियों के नाम से हस्ताक्षरित एक फर्जी पत्र प्रसारित किया गया, जिसका उद्देश्य सेना प्रमुख पर दबाव डालना था। ढाका स्थित सूत्रों का दावा है कि देश का सुरक्षा प्रतिष्ठान प्रधानमंत्री शेख हसीना का समर्थन कर रहा है। इस बीच रविवार को बांग्लादेश की शीर्ष अदालत ने सरकारी नौकरियों में विवादित 30 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करने का फैसला सुनाया। इसे हटाने के लिए बांग्लादेश में छात्रों ने बड़ा प्रदर्शन शुरू किया था, जो बीते मंगलवार को हिंसक हो गया। अब तक इन प्रदर्शनों में कम से कम 114 लोग मारे गए हैं।
समाचार एजेंसियों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकारी नौकरियों में 93 फीसदी पद योग्यता के आधार पर भरे जाएंगे। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वालों के परिजनों के लिए सिर्फ 5 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहेंगी। बाकी 2 प्रतिशत सीटें जातीय अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडरों और विकलांगों को दी जाएंगी। यहां उल्लेखनीय है कि हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2018 में कोटा सिस्टम को रद्द कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने पिछले महीने सरकार के फैसले को अवैध बताते हुए इसे बहाल कर दिया था, जिसके बाद प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
बाद में इन प्रदर्शनों पर कट्टर जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी ने कब्जा जमा लिया। आरक्षण खत्म करने के साथ ही छात्रों ने 9 सूत्री मांगें भी रखी हैं, जिसमें प्रधानमंत्री से माफी मांगना, दो वरिष्ठ मंत्रियों को बर्खास्त करना और छात्रों को कुछ रियायतें देना शामिल हैं। हसीना सरकार इन मांगों की समीक्षा कर रही है और अराजकता और न बढ़े इसके लिए ठोस उपाय तलाश कर रही है।
फिलहाल, बांग्लादेश की स्थिति पर नई दिल्ली में बारीकी से नजर रखी जा रही है। यह वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बहुत जरूरी भी है, क्योंकि बांग्लादेश में अस्थिरता और अशांति का पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों पर सीधा असर पड़ता है। बांग्लादेश के विशेषज्ञों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर आशंका जताई कि अगर स्थिति को समझदारी से नहीं संभाला गया तो हसीना विरोधी आंदोलन भारत विरोधी आंदोलन में बदल सकता है। और बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों का मजबूत होना भारत के हितों के लिए हानिकारक है।
बांग्लादेश और क्षेत्रीय राजनीति के जानकारों का कहना है कि, भारत दक्षिण एशिया में बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों बिम्सटेक, सार्क, बीबीआईएन और आईओआरए जैसे क्षेत्रीय विकास और एकीकरण पहलों में सह-भागीदार भी हैं। बांग्लादेश आईपीओआई, आईएसए, जीबीए, सीडीआरआई आदि में भी शामिल हो गया है। भारत के लगभग सारे पूर्वोत्तर राज्य बांग्लादेश पर निर्भर हैं और इसी तरह बांग्लादेश भी भारत पर निर्भर है।  आर्थिक तौर पर निर्भरता महत्वपूर्ण तथ्य है।
इसलिए बांग्लादेश की अराजकता हमारे लिए चिंता का विषय है। वहां की स्थिरता पूर्वोत्तर भारत और अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहलों को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अस्थिर बांग्लादेश केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के लिए सुरक्षा खतरा बन सकता है। इसके चलते भारत का स्थाई दुश्मन चीन भी वहां हरकत कर सकता है और अपनी पैठ बढ़ा सकता है। यह भारत के लिए और अधिक समस्या का कारण बन जाएगा। इसलिए बांग्लादेश के मामले को जितना हो सकते जल्द सुलझा लिया जाए तो बेहतर होगा।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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