Editorial:विरोध वाला फैसला…!

जिसे उत्तर प्रदेश के एक जिला प्रशासन का स्थानीय स्तर पर लिया गया फैसला माना जा रहा था, वह तेज होते विरोध के बीच न केवल पूरे राज्य में बल्कि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के हरिद्वार में भी लागू कर दिया गया। इस आदेश के मुताबिक, कांवड़ यात्रा के पूरे रूट पर दुकान लगाने वाले तमाम लोगों के लिए अपनी पहचान सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा।
आदेश पर असमंजस: इस आदेश को लेकर किस तरह का असमंजस फैला है, इसका अंदाजा भाजपा के ही एक प्रमुख नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की प्रतिक्रिया से मिलता है। शुरू में इस आदेश के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए उन्होंने कहा, ‘कुछ अति उत्साही अधिकारियों के आदेश… छुआछूत की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं।’
विरोध का उलटा असर: विरोध करने वालों में नकवी अकेले नहीं थे। विपक्षी दलों के अलावा एनडीए के सहयोगी दलों के नेताओं की ओर से भी इसके विरोध की आवाज उठी थी। माना जा रहा था कि विरोध के बाद जिला स्तर पर हुए इस फैसले को वापस ले लिया जाएगा। लेकिन कुछ घंटों के अंदर पूरे राज्य में इस आदेश को लागू करने का निर्णय घोषित हो गया। इसके बाद नकवी भी अपना रुख पलटते दिखे। उनका कहना था कि शुरू में उस फैसले ने कुछ कन्फ्यूजन फैलाया था, लेकिन अब सरकार ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। इस फैसले का विरोध करने की अब कोई वजह नहीं है।
विभिन्न राजनीतिक दलों के अंदर चाहे जैसा भी विचार मंथन हो रहा हो, यह आदेश आबादी के एक बड़े हिस्से में भ्रम और आशंका पैदा कर सकता है। एक समुदाय विशेष के मन में यह भाव गहरा हो सकता है कि सरकार धंधा-पानी करने के उसके अधिकार पर कुठाराघात करना चाहती है। चाहे जितने भी मासूम अंदाज में पेश किया जाए, पहचान बताने के इस आदेश का असर खास समुदाय के आर्थिक बहिष्कार के ही रूप में सामने आएगा। यह आशंका भी निराधार नहीं कि अलग पहचान वाले दुकानदारों पर कुछ असामाजिक और सांप्रदायिक तत्व कांवडिय़ों के वेश में हमला कर दें, उनकी दुकानें लूटने लग जाएं।
कांवडिय़ों की शुचिता के तर्क के पीछे यह गलत मान्यता काम कर रही है कि किसी अन्य समुदाय के हाथ का छुआ खाने से किसी श्रद्धालु का धर्म भ्रष्ट हो सकता है। कानून व्यवस्था का तर्क भी उचित नहीं क्योंकि इससे पहले इस आदेश के बगैर भी कांवड़ यात्रा सुरक्षित माहौल में होती रही है। संक्षेप में, ऐसे आदेश हमारे संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं। इन्हें वापस लेने में देर करना ठीक नहीं।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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