बांग्लादेश में हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से ही हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समूहों पर होने वाले हमले केवल भारत ही नहीं, अपितु अंतरराष्ट्रीय चिंता का कारण बन गए हैं। आश्चर्य इस बात का है कि बांग्लादेश की कामचलाऊ सरकार इन हमलों को रोकने के बजाय इनका खंडन करने में अधिक दिलचस्पी लेती दिखाई दे रही है। उसका इन हमलों पर आधिकारिक स्पष्टीकरण यह है कि भारत का मीडिया अल्पसंख्यकों पर हमलों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है। ऐसे में अमेरिका की यह प्रतिक्रिया खासी अहम हो जाती है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर वह नजर बनाए हुए है और उम्मीद करता है कि वहां सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
बांग्लादेश में जिन हालात में शेख हसीना को इस्तीफा देकर वहां से निकलना पड़ा और मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाया गया, उससे कई तरह के सवाल खड़े हो गए थे। इस नई सरकार पर इस्लामिक कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव को लेकर आशंकाएं भी पहले दिन से ही थीं। लेकिन मोहम्मद यूनुस की अमेरिका से करीबी भी काफी चर्चा में रही। कुछ हलकों में कहा जा रहा था कि उन्हें अमेरिका का परोक्ष समर्थन हासिल है। लेकिन अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर अमेरिका की ताजा प्रक्रिया आई है, तो इसके बाद इस बात पर नजर बनी हुई है कि उनकी सुरक्षा को लेकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का रुख में किस तरह बदलता है और वह क्या कदम उठाती है।
अब तक तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के रुख ने इन आशंकाओं को मजबूती ही दी है कि उसकी नीतियां न केवल बांग्लादेश के बल्कि पाकिस्तान के भी इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा दे सकती हैं। इसका ताजा उदाहरण है, वहां की सरकार ने पाकिस्तानियों और पाकिस्तानी मूल के लोगों को वीजा देने के नियमों में ढील देने का फैसला किया है। अंतरिम सरकार के इस फैसले के मुताबिक अब इन लोगों को बांग्लादेश की यात्रा करने के लिए सिक्यॉरिटी क्लीयरेंस लेना जरूरी नहीं होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ेंगी। कारण यह है कि इससे पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी तत्वों का बांग्लादेश आना आसान हो जाएगा। ध्यान रहे, बांग्लादेश के साथ भारत की 4000 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। 2001 से 2006 के बीच बीएनपी-जमात-ए-इस्लामी शासन के दौरान बांग्लादेश में सक्रिय आतंकी तत्वों की गतिविधियों के कारण भारत में समस्याएं पैदा हो चुकी हैं। आज भी कई घुसपैठिये आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न होने की आशंका बनी हुई है।
जिस बांग्लादेश को भारत ने ही आजाद करवाया, वह पड़ोसी देश की तरह व्यवहार करता तो नहीं दिख रहा है। उलटे वहां के घटनाक्रम भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक चुनौती पैदा करते दिखाई दे रहे हैं। मामला केवल अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों या वहां की कानून-व्यवस्था की स्थिति तक सीमित नहीं है। अंतरिम सरकार को यह समझना होगा कि हिंदुओं की सुरक्षा के प्रति उदासीनता दिखाना ठीक नहीं है और भारत उसका मित्र देश है। और यह मामला केवल भारत तक ही सीमित रहने वाला नहीं है, इससे उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समस्याएं आ सकती हैं।
बांग्लादेश में जो बदलाव हुए, उसके पीछे कहीं न कहीं चीन की रणनीति भी काम करती दिखाई दी। अंतरिम सरकार का चीन और पाकिस्तान की तरफ झुकाव इसकी पुष्टि करता दिखाई दे रहा है। शेख हसीना को भारत ने शरण क्यों दी, यह सवाल वहां की अंतरिम सरकार में बैठे लोग और कट्टरपंथी भी कर रहे हैं। भारत ने हसीना को शरण देकर अपनी कूटनीति के हिसाब से सही किया, लेकिन अंतरिम सरकार उसे अपना विरोधी मानने लगी। अंतरिम सरकार के प्रभारी यूनुस का कट्टरवादी सोच केवल भारत से संबंधों के मामले में ही नहीं, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिक्कत देगा।
कट्टरपंथियों के दबाव में आकर यदि अंतरिम सरकार इसी तरह फैसले लेती रही, तो बांग्लादेश बहुत जल्द न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ जाएगा, अपितु पड़ौसी देशों से उसके संबंध टूटने की कगार पर पहुंच जाएंगे। और फिर, बांग्लादेश को तमाम प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ सकता है। ऐसे में वह कंगाली की कगार पर भी पहुंच सकता है। इसलिए अंतरिम सरकार को तत्काल न केवल अल्पसंख्यकों पर हमलों को रोकने में सख्ती दिखानी चाहिए, अपितु भारत से संबंधों को सुधारने की पहल भी करनी चाहिए। यही उसके लिए बेहतर होगा।
– संजय सक्सेना