Edirorial: दिल्ली में चुनाव का शंखनाद…

आखिरकार राष्ट्रीय राजधानी में चुनाव आयोग ने चुनावों की तारीखों ऐलान कर दिल्ली की राजनीतिक जंग को हरी झंडी दिखा ही दी। हालांकि अघोषित तौर पर चुनावी युद्ध का आगाज पहले ही हो चुका है। युद्ध के मैदान में मौजूद तीनों प्रमुख पार्टियां न केवल प्रत्याशियों का ऐलान कर चुकी हैं बल्कि आरोप-प्रत्यारोप और तीखी बयानबाजी का सिलसिला भी उसी रूप में चला रही हैं मानो चुनाव प्रचार अभियान अपने अंतिम दौर में पहुंच गया हो।
दिल्ली की यह चुनावी लड़ाई कई मायने में खास मानी जा रही है। केवल इसलिए नहीं कि इस बार भी वही तीनों दल प्रमुखता से मैदान में हैं, जो पिछले चुनावों में थे, अपितु इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस और आप राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के धड़े हैं, लेकिन विधानसभा में दोनों आमने-सामने ताल ठोक रहे हैं। देखा जाए तो आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से यहां तिकोना मुकाबला ही हो रहा है। यह अलग बात है कि इस अपेक्षाकृत नई पार्टी ने एक बार वर्चस्व स्थापित होने के बाद यहां अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। पिछले दो चुनावों में उसे दिल्ली की जनता ने शानदार बहुमत दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि एक तरफ अपेक्षाकृत नई पार्टी और दो राज्यों में सत्तारूढ़ होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने आक्रामक शैली की राजनीति से अपनी अलग पहचान बनाई है। इस आक्रामकता ने जहां आम आदमी पार्टी को नई धार दी है, वहीं अन्य दलों के साथ उसके संबंधों को भी सहज-सामान्य होने से रोका है। शायद यही वजह है कि बीजेपी तो आम आदमी पार्टी के खिलाफ पूरी ताकत से लगी ही हुई है, कांग्रेस भी उस पर हमले करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही।
इसमें खास बात सिर्फ यही है कि छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप दोनों ही विपक्षी दलों के इंडिया ब्लॉक में शामिल थे और भाजपा पर संयुक्त हमला कर रहे थे। जाहिर है, इनके बीच की तीखी बयानबाजी इंडिया ब्लॉक के अंदर असहजता पैदा कर रही है और शिवसेना (यूबीटी) जैसे दल इनसे संयम बरतने की अपील भी कर चुके हैं।
जिस तरह से यह चुनाव लड़ा जा रहा है, उससे साफ है कि नतीजा चाहे जो भी हो उसके निहितार्थ दूर तक जाएंगे। दिल्ली की सत्ता आम आदमी पार्टी के आंतरिक समीकरण के लिहाज से भी अहम है। ऐसे में वह हर हाल में अपनी कामयाबी दोहराना चाहेगी। इस बीच, यह भी देखना दिलचस्प होगा कि इंडिया ब्लॉक के आंतरिक समीकरणों में किस तरह के बदलाव आते हैं। वैसे भी हरियाणा चुनाव के दौरान ही इंडिया ब्लाक के आंतरिक समीकरण दरकने लगे थे। और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद तो ऐसा लगने लगा है कि अगले लोकसभा चुनाव के पहले ही इंडिया ब्लाक अपना अस्तित्व खो सकता है।
जहां तक दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की उपस्थिति की बात है, तो भाजपा जिस रणनीति पर चल रही है, उससे एक बात तय मानी जा रही है कि दिल्ली चुनाव में कोई भी उलटफेर हो सकता है। आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली पहला राज्य रहा है, जहां वह भारी उलटफेर करके सत्ता में काबिज हुई। केवल सत्ता में आई ही नहीं, लगातार सत्ता में आ रही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना दबदबा फिर से कायम कर लिया है। लेकिन किसी समय लगातार तीन बार सत्ता में आई कांग्रेस के लिए सफलता पाना आसान नहीं दिखाई देता।
फिर भी, कांग्रेस को यहां शून्य तो नहीं माना जा रहा है। हालांकि पिछले कई चुनावों से राजनीतिक भविष्यवाणियां और अनुमान गलत होने का प्रतिशत बढ़ा है, फिर भी यहां मुकाबला तो त्रिकोणीय ही माना जा रहा है। यानि कांग्रेस के पक्ष में परिणाम कैसे भी आएं, उसे हलके में लेना भूल ही होगी। यदि भाजपा की बात करें तो वह लोकसभा जैसे परिणाम दोहराने के लिए मैदान में उतरी है और टिकट वितरण में उसने जातिगत से लेकर क्षेत्रीय समीकरणों को भी ध्यान  में रखा है। वह हर प्रकार के चुनावी प्रबंधन में माहिर हो चुकी है और उसे यह मालूम है कि कब कौन सा हथकंडा अपनाना है? कब कौन सा अस्त्र फेकना है और ब्रह्मास्त्र कब फेकना है?
यदि आप की बात करें तो केजरीवाल ने जेल से लौटने के बाद कुर्सी सम्हाली भी और फिर छोड़ भी दी। आतिशी को जिस तरह से मुख्यमंत्री बनाया गया, उसमें भी कई समीकरण साधे गये हैं। टिकट वितरण के साथ ही टिकट काटने में भी केजरीवाल ने बहुत सावधानी बरती है। हालांकि आम आदमी पार्टी के कई नेता और मंत्री तक पार्टी छोडक़र जा चुके हैं, यह भी कुछ इलाकों में उसे भारी पड़ सकता है। फिर भी, ऊंट किस करवट बैठता है, कहा नहीं जा सकता। अनुमान लगाए जा रहे हैं, भविष्यवाणियां की जा रही हैं, लेकिन यह फिलहाल हवा में तीर चलाने जैसा ही है। मतदान की तारीख आते-आते बहुत कुछ बदल जाता है, यहां भी बदलेगा। चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो चला है। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या…?
–  संजय सक्सेना

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