भाजपा पार्षद संगीता काजे को उसके पति ने जलाया ? तो अशोक को खुदकुशी करने किसने मजबूर किया
अलीम बजमी
भोपाल। 13 सितंबर 1999… भाजपा पार्षद संगीता काजे ने खुद को आग लगा ली। उन्हें पहले हमीदिया फिर एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया गया। जिंदगी और मौत से लड़ते हुए संगीता ने 23 सितंबर 1999 को आखिरकार दम तोड़ दिया। मजिस्ट्रेट को 14 सितंबर 1999 को दिए बयान में संगीता ने इस घटना के लिए अपने पति एवं भाजपा नेता अशोक को दोषी ठहराया। संगीता के मजिस्ट्रेट को दिए बयान की जानकारी लगने पर अशोक को मानसिक आघात पहुंचा। वह काफी पसोपेश में था। संगीता को अस्पताल में छोड़कर थकान होने और सोने की बात दोस्तों को बोलकर अशोक काजे घर चला गया। घर पहुंचने पर अशोक ने सुसाइड नोट लिखकर, जहर खा लिया। इसमें बदनामी होने का उल्लेख करते हुए उसने अपनी मां, दोस्तों और मामा से अपने इकलौते मासूम बेटे का ख्याल रखने का आग्रह किया था। अशोक के सुसाइड करने के बाद 9 दिन बाद संगीता की भी मौत हो गई थीं। अशोक के सुसाइड नोट पर ये पता नहीं लग सका कि बदनामी से उसका आशय क्या था ? कौन उसे प्रताड़ित कर रहा था..? इन दोनों की मृत्यु के साथ ही कई राज कागजों में दफन हो गए। ये भी स्पष्ट नहीं हो सका कि क्या संगीता को उसके पति ने ही जलाया या उसने दवाओं के असर के चलते बेसुध अवस्था में बयान दिया था…?
28 साल पुराने काजे दंपती केस की फाइल में तो खात्मा लग चुका है, लेकिन लोगों के जहन में ये मामला अब भी है। इतनी अवधि में एक नई पीढ़ी खड़ी हो गई है। उस दौरान यह मामला नगर निगम मुख्यालय (सदर मंजिल) में काफी चर्चा में रहा था। तब नगर निगम में लंबे समय बाद परिषद गठित हुई थी। इसके चलते कांग्रेस पार्षद दल ने भाजपा पार्षद संगीता काजे की मौत को लेकर राजनीतिक रूप से काफी हाय तौबा मचाई थी। तब भाजपा पार्षद दल आरोपों के तीर चलने पर बचाव की मुद्रा में नजर आया था।
घटना के समय अशोक स्टेशन पर था!
उस दौरान ये माना गया था कि तकरीबन 60 फीसदी जलने के कारण संगीता डिटेल में बयान देने की स्थिति में नहीं थी। बयान देने के समय वे दवाओं के प्रभाव से बेसुध अवस्था में थीं। उसकी चेतना सामान्य नहीं होना भी कारण बताया गया। इसके अलावा 13 सितंबर को जिस समय संगीता जली थीं, उस समय अशोक तब विदेश से लौटे तत्कालीन भाजपा विधायक बाबूलाल गौर का स्वागत करने भोपाल स्टेशन गया हुआ था। उस दौरान यहां काफी संख्या में गौर समर्थक स्टेशन पर जमा थे। वहीं, संगीता के बयान के तुरंत बाद पुलिस ने अशोक काजे की गिरफ्तारी नहीं की थी।
भाजपा नेता संगीता और अशोक काजे की मृत्यु एक अबूझ पहेली जैसी है। किसी को पता ही नहीं चला कि मरने वाला खुद मरा या फिर उसे मारा गया। ये मामला राजनीतिक रूप से काफी गर्माया। राजनीतिक रूप से शोर-शराबा भी हुआ। राजनीति के गलियारों में आरोप भी गूंजे। कुछ छींटे भाजपा के एक रसूखदार नेता पर भी आए। उसका नाम चर्चा में आया तो कांग्रेस ने ज्यूडिशियल इंक्वायरी की मांग कर डाली। हालांकि तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया। नतीजे में मौत के असली कारणों का खुलासा नहीं हुआ। दोनों की मौत के कारणों में बिल्डिंग परमिशन का विवाद भी चर्चा में रहा। इसके बाद भाजपा डिफेंसिव मोड में आ गई थीं।
मौत का कारण बिल्डिंग परमिशन…?
मौत मामले का बड़ा कारण बिल्डिंग परमिशन केस बताया गया था। मामला वार्ड नं. 2 का होने से इसमें भाजपा पार्षद संगीता काजे से मदद मांगी गई थीं। ये बिल्डिंग परमिशन भाजपा के एक नेता कराने के इच्छुक थे। उन्होंने भाजपा नेता अशोक काजे पर दबाव बनाया था कि वे अपनी पत्नी के जरिये इसको मंजूरी दिलाए। संकोची स्वभाव की संगीता काजे इस काम को लेकर तैयार नहीं थी। तब वे महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रभारी थीं। चर्चा है कि संगीता ने अपने पति को समझाया भी था। उधर, रसूखदार भाजपा नेता चाहते थे कि जल्द ही परमिशन मिल जाए। इसके लिए वे लगातार दबाव बना रहे थे। इसके चलते पति-पत्नी काफी परेशान भी रहे। सुना जाता हैं कि रसूखदार भाजपा नेता ने अशोक काजे के राजनीतिक असर को कम करने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित कराना शुरू कर दिया। उस पर भांति-भांति रूप में छींटाकशी भी होने लगी। इस सबसे अशोक काजे काफी चिड़चिड़ा भी हो गया था। साभार (फेसबुक वाल से)।