Bhopal का एक रोचक किस्सा…  सर हिलाने की आदत के
चलते एक बैल का हुआ तबादला,
मामला सुल्तान जहां बेगम तक पहुंचा

अलीम बजमी.
आइये आज, आपको भोपाल रियासत के दौर की ब्यूरोक्रेसी और सिस्टम से वाकिफ कराते है। ये आप एक रोचक किस्से से जान सकेंगे। किस्सा दिलचस्प है। किस्से की खासियत निचले स्तर से नवाब बेगम स्तर तक फाइल चलने का है। ये भी मंथर गति से चली।  दरअसल सिर हिलाने की आदत के चलते एक बैल का तबादला कर दिया गया था। ये बात आपको कुछ अटपटी लगेगी। लेकिन है चटपटी।  ये कोई गप्प नहीं है। सौ टका सच्ची है।  भोपाल रियासतकाल में ये पहला मौका था, जब बैल के तबादले का आदेश निकला। ये मामला नवाब सुल्तान जहां बेगम तक पहुंचा था। इसके पहले तीन महकमों के बीच फाइल भी चलीं।
इस सब्जेक्ट की परत-दर-परत उतारते हुए सैफिया कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर अशर किदवई बताते हैं कि नवाब हमीदुल्ला खां को शिकार का शौक था। इसको पूरा करने के लिए वह किसी जानवर को बंधवाते थे ताकि शेर उसे खाने की गरज से आए तो वह अपना शिकार का शौक पूरा कर सके। साथ ही हांका करने के लिए भी एक टीम भी साथ रखते। इसमें बैल भी शामिल रहता। उबड़-खाबड़ रास्तों एवं जंगल के भीतर बैलगाड़ी जोतने में भी उसका उपयोग होता था। लेकिन बैल का तबादला उसकी एक आदत की वजह से हुआ। हमीदुल्ला खां साहब जब शिकार के लिए निशाना लगाते तो बैल सिर हिला देता था। उसकी इस आदत के कारण कई मौकों पर नवाब हमीदुल्लाह खां साहब का ध्यान बंट जाता और उनका निशाना चूक जाता। नतीजे में वे झुंझला जाते। आखिर उन्होंने एक दिन हुक्म सुनाया कि इस बैल को उनके शिकार बेड़े से रुखसत कर दिया जाए।
अब असली बात। इस हुक्मनामे को अमल में आने में एक साल का वक्त लग गया। आगे बढ़ने के पहले जानिए बैल की कहानी। बात 10 सितंबर 1910 की है, तब म्युनिसिपलटी भोपाल ने कूड़े की गाड़ी को खींचने के लिए एक बैल तरावली में लगने वाले मशहूर पशु मेले से 34 रुपए में खरीदा था। यह सफेद रंग का बैल था। देखने में बहुत बलशाली और ऊंची कदकाठी का था। इसकी शारीरिक बनावट के चलते हर इंसान उसको ठहर के देखा करता था।  लेकिन उसको काम सौंपा जाना था कूड़े की गाड़ी खींचने का। अपने काम के पहले ही दिन उसको हमीदुल्लाह खां ने पसंद कर लिया। तब वे भोपाल रियासत के शहजादे थे और नवाब नहीं बने थे।
शहजादे की पसंद का पता लगते ही म्युनिसिपलटी ने इस बैल को फौरन देवड़ी खास में भेज दिया। जाहिर है कि प्रिंस हमीदुल्ला खां का हुक्म कोई कैसे टाल सकता था। देवड़ी खास में बैल के आने की आधिकारिक सूचना आला अफसरों को भी दी गई। अब अधिकारी इस बात पर असमंजस में थे कि जिस काम के लिए बैल को खरीदा गया था, अब उस उस काम के लिए कोई दूसरा बैल नहीं था। ऐसे में क्या किया जाए? जैसे -तैसे 1-2 महीना म्युनिसिपलटी के अफसरों ने  काम चलाया मगर उसके बाद जब म्युनिसिपलटी में ऑडिट की बारी आई। इसको उस दौर में “दाखिल-खारिज” कहा जाता था।
दाखिल खारिज टीम आने पर कर्मचारियों ने इसकी जानकारी मीर-मुंशी सैयद मोहम्मद कुदरत अली मीर-मजलिस-इंतजामियां को दी। वह उस समय म्युनिसिपलटी के सचिव थे। उन्होंने इसकी जानकारी का एक पत्र सेक्रेटरी दरबार-ए-सुल्तानी को लिखा। यह पत्र दरबार में पहुंचा तो इसको नवाब सुल्तान जहां बेगम के शान-ए-हुजूर में पेश किया गया जिसको पढ़ कर वह भी हैरान हो गई। उन्होंने इसके ऊपर टीप की शक्ल में लिखा नवाबजादा साहब इसकी कीमत अदा करेंगे.. ? तुमने इसे क्यों पसंद किया और यह तुम्हारे किस काम आएगा….? इसके 2 महीने बाद  प्रिंस हमीदुल्लाह खान की देवड़ी की तरफ से एक का बूढ़ा बैल म्युनिसिपलटी को भेजा जाता है। साथ ही म्युनिसिपल को पत्र लिखा गया  कि यह बैल बहुत बड़ा है। यह वह काम नहीं कर पाएगा जिसके लिए उसे भेजा गया है। यह बहुत ज्यादा आराम तलब है। यह म्युनिसिपलटी जानवरों को दिए जाने वाला सूखा चारा भी नहीं खाता इसे हरे -चारे की आदत है। इस के बाद सेक्रेटरी दरबार द्वारा कई पत्र प्रिंस हमीदुल्ला खां को लिखे गए। लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया। कुछ समय बाद नवाब सुल्तान जहां बेगम ने फिर सेक्रेटरी से इस बारे में जानकारी प्राप्त करने को कहा, जिसमें यह पता चला कि नवाबजादा और उनके सचिव इस बारे में कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। आखिरकार नवाब सुल्तान जहां बेगम के बीच में आने के बाद जब उन्होंने एक पत्र हमीदुल्ला खां  को लिखा कि तुम आखिर इस बैल का क्या कर रहे हो..? इसको तुमने क्यों पसंद किया है..?। इसका जवाब 23 दिसंबर 1911 को 15 महीने के बाद  हमीदुल्लाह खां के सचिव की तरफ से सेक्रेटेरिएट दरबार को लिखा गया जिसमें बताया गया कि सफेद रंग का बैल नवाबजादा साहब ने अपनी शिकार की खातिर बैलगाड़ी में जोतने के लिए पसंद किया है। जो बैल म्युनिसिपलटी को भेजा गया है, उसमें यह खराबी थी कि जब शिकार के वक्त हमीदुल्ला खां  बंदूक से जब निशाना लगाते थे, बैल अपनी आदत के मुताबिक सिर हिला दिया करता था, जिससे कई मौकों पर निशाना चूक जाता था।  यानी सिर्फ सिर हिलाने की आदत की वजह से एक बैल का तबादला महल से उठाकर कूड़े की गाड़ी खींचने के लिए म्युनिसिपलटी में कर दिया गया।
फेसबुक वाल से साभार।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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