MP: राज्य की परिवहन व्यवस्था फेल, 19 साल से बंद सड़क परिवहन निगम फिर शुरू करने की कवायद

भोपाल। राज्य की परिवहन व्यवस्था लगभग चौपट हो गई है। यही कारण है कि मोहन सरकार ने प्रदेश में 19 साल से बंद पड़ा सड़क परिवहन निगम फिर शुरू करने की कवायद शुरू कर दी है । मुख्य सचिव कार्यालय से परिवहन निगम शुरू करने के लिए परिवहन विभाग को एक प्रस्ताव बनाने के लिए कहा गया है। प्रस्ताव इसी माह में तैयार करना होगा और इसके बाद इसे कैबिनेट में रखा जाएगा। इसमें बताना होगा कि ये सरकारी बसें कैसे चलेंगी? किन रूट पर चलेंगी? कौन चलाएगा? इसका सिस्टम क्या होगा? परिवहन निगम को दोबारा शुरू करने की कवायद बीते 5 माह से चल रही हैं। जून में सीएम डॉ. मोहन यादव ने इसे दोबारा शुरू करने को लेकर एक बैठक ली थी। उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए थे।

अब सर्वे रिपोर्ट में शामिल बिंदुओं को आधार बनाकर परिवहन विभाग डिटेल रिपोर्ट बनाएगा। इसके अनुसार, सरकार महाराष्ट्र मॉडल को अपना सकती है। बता दें कि 2005 में सरकार ने परिवहन निगम बंद कर दिया था, लेकिन तकनीकी रूप से इसे बंद करने का गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ।

क्योंकि इसके लिए केंद्रीय परिवहन एवं श्रम मंत्रालय की सहमति नहीं ली गई थी। मप्र में अभी इसके 167 कर्मचारी भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में काम कर रहे हैं। इनमें से 140 प्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभागों में कार्यरत हैं 50 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति वाले सड़क परिवहन निगम को ऐसे बंद किया था सपनि को भले ही जनवरी 2005 में बंद किया गया हो, लेकिन इसे बंद करने की कवायद 1990 के बाद से ही शुरू हो गई थी। दरअसल परिवहन निगम में 29.5% राशि केंद्र और 70.5% राशि राज्य सरकार द्वारा दी जाती थी। इसमें से राज्य ने अपना हिस्सा देना बंद कर दिया।

इसके बाद से इसकी बंद होने की शुरुआत हुई और 2005 में इस पर अंतिम मुहर लगी। बंद करते समय तीन विकल्प भी रखे गए थे। इनमें सेटअप छोटा करने पर 900 करोड़ रुपए, दोबारा पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए 1400 करोड़ रुपए और पूरी तरह बंद करने पर 1600 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। तीसरा विकल्प चुना गया और इसमें सबसे अधिक खर्च कर्मचारियों को वीआरएस की एकमुश्त राशि देने पर किया गया।
जिन रूट पर प्राइवेट बसें नहीं चल रही हैं, पहले वहां निगम की बसें चलेंगी। शुरुआत इंटर डिस्ट्रिक्ट से होगी। फिर पड़ोसी राज्यों तक सेवा पर विचार किया जाएगा। सरकारी बसें भी अत्याधुनिक होंगी। ईवी पर बात की गई है। इसे पीपीपी मॉडल या सरकारी नियंत्रण में चलाना है, इसका निर्णय उच्च स्तर से लिया जाएगा। जितने भी बस स्टैंड हैं, उन्हें भी पीपीपी मॉडल पर देने पर सहमति बनानी है। जिस कंपनी को बस स्टैंड देंगे, वह उसके कुछ हिस्से का कमर्शियल उपयोग कर सकेगी। जब परिवहन निगम बंद किया गया तो इसकी करीब 700 बसें, 11500 कर्मचारी थे, तब निगम की संपत्ति करीब 29 हजार करोड़ रुपए थी।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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