भोपाल। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)ने नर्मदा नदी के तटों पर बाढ़ क्षेत्रों का सीमांकन न होने और अतिक्रमण नहीं हटाने पर गंभीर चिंता जताई है. तीन सालों से लंबित इस कार्य पर एनजीटी ने कड़ा रुख अपनाते हुए 15 जिलों के कलेक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा है. यह मामला नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की याचिका के आधार पर उठाया गया,जिसमें बताया गया कि एनजीटी के पूर्व आदेशों का पालन नहीं किया गया है।
एनजीटी की भोपाल बेंच के न्यायमूर्ति बी.अमित स्थालेकर और डॉ.ए.सेंथिल ने जबलपुर, नरसिंहपुर, डिंडौरी, अनूपपुर, होशंगाबाद, मंडला, सीहोर, खंडवा, रायसेन, देवास, हरदा, खरगोन, धार, बड़वानी और अलीराजपुर के कलेक्टरों से जवाब मांगा है. इन जिलों के प्रशासन पर कार्य में देरी और नदी किनारे हो रहे अतिक्रमण पर कार्रवाई न करने का आरोप है.मामले की अगली सुनवाई 15 मई 2025 को निर्धारित की गई है.
याचिकाकर्ता डॉ. पी.जी. नाजपांडे ने बताया कि 23 सितंबर, 2021 को एनजीटी ने स्पष्ट आदेश दिए थे, इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए. इस कारण अवमानना याचिका फिर से दायर की गई, जिसमें 15 जिलों के कलेक्टरों को प्रतिवादी बनाया गया है.
एसटीपी परियोजनाओं पर सख्त निर्देश
सुनवाई के दौरान एनजीटी ने नर्मदा नदी पर स्वच्छता बनाए रखने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने के आदेश भी दिए. डिंडौरी, मंडला और नरसिंहपुर में एसटीपी का कार्य 15 मई, 2025 तक पूरा करने का निर्देश दिया गया, जबकि नर्मदापुरम में यह कार्य 31 दिसंबर, 2025 तक पूरा करना होगा.एनजीटी के इन आदेशों ने प्रशासन को जल्द कार्रवाई के लिए बाध्य कर दिया है. अब यह देखना होगा कि संबंधित जिले इस बार समय पर निर्देशों का पालन करते हैं या फिर यह मामला और लंबा खींचता है.