MP कटनी की झिन्ना खदान: राजस्व की जमीन पर वन विभाग का अड़ंगा, न्यायालय के आदेश ताक पर, खदान का काम बंद, राजस्व की हानि..

भोपाल। वन-राजस्व के कथित सीमा विवाद के चलते कटनी की झिन्ना  खदान के प्रकरण का निराकरण नहीं हो पाया है। इस मसले पर राज्य शासन और वन विभाग असमंजस में है, या  क्षेत्रीय राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते इस खदान को शुरू नही होने दिया जा रहा है ? फरवरी 2020 में तत्कालीन मुख्य सचिव स्पष्ट निर्देश दे चुके हैं कि इस प्रकरण में न्यायालयीन प्रक्रिया से प्रदेश के राजस्व में सतत हानि हो रही है, इसलिए इसे बंद किया जाए। बावजूद इसके 2017 से सुप्रीम कोर्ट में कटनी का झिन्ना खदान विवाद लंबित है। इससे जहां सरकार को करोड़ों की रेती का नुकसान हो रहा है वही 20 गांव के 2000 से अधिक लोग रोजगार से वंचित हैं।

इस मामले की खास बात यह है कि समय-समय पर अधिकारियों के सुर आदेश बदलते रहे हैं। ऐसे ही विभागीय मंत्री चाहे विजय शाह-उमंग सिधार या फिर हो नागर सिह चौहान एसएलपी वापस लेने पर अपनी सहमति देते रहे किन्तु ओहदान  कारोबारियों के बीच अहम की लड़ाई में वे बौने ही साबित हुए। शिकायती पत्र के मुताबिक, कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को मध्य प्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनिज करने का पट्टा मिला था। खनिज पट्टा आवटित होने की पीछे भी बहुत कुछ छिपा है। दरअसल मध्य प्रदेश शासन ने ग्राम झिन्ना तहसील दीमरखेड़ा जिला कटनी के वन क्षेत्र की 48.562 हेक्टेयर भूमि पुराना खसरा नम्बर 310, 311, 313, 314/1,314/2,315,316. 317, 318, 265, 320 में खनिज के लिए एक अप्रैल 1991 में 1994 से लेकर 2014 तक की अवधि के लिए निमेष बजाज के पक्ष में खनिज पट्टा स्वीकृत किया था। जिसे वर्ष 1999 में मध्य प्रदेश शासन के खनिज विभाग के आदेश से 13 जनवरी 1999 को उक्त खनिज पट्टा मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका प्रोप्राइटर: आनंद गोयनका के पक्ष में हस्तांतरित किया गया। लेकिन साल 2000 में वन मंडल अधिकारी कटनी के पत्र के आधार पर कलेक्टर कटनी ने आदेश पारित कर लेटेराइट फायर क्ले और अन्य खनिज के खनन पर रोक लगा दी।

डीएम न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक नहीं हो पा रहा है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्रकरण केंद्रीय जांच रिपोर्ट देने के लिए निर्देशित किया। कमेटी बनाई गई। सीईसी ने अपने फैसले में कहा कि भूमि राजस्व भूमि ही है। सीईसी के आदेश के बाद सितंबर 2019 में कलेक्टर कटनी के समक्ष डीएफओ द्वारा भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 17 के अंतर्गत अरीत की।फरवरी 2020 में मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि इस प्रकरण में न्यायालयीन प्रक्रिया से प्रदेश के राजस्व की हानि हो रही है। जबकि निवारण न्यायालय,  उच्च न्यायालय, एवम वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा विस्तृत आदेश पारित करते हुए वनविभाग के दावे को खारिज किया गया है। उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर करते समय भी विधि विभाग द्वारा अपने स्वयं के खर्च पर ही दायर करने का परामर्श दिया था। वन विभाग की याचिकाओं में कोई खास आधार या नथा तथ्य भी नहीं है। ऐसी स्थिति में मुख्य सचिव द्वारा निर्देशित किया गया कि वन विभाग दोनों याचिकाओं प्रकरणी की नियमानुसार वापसी किये जाने हेतु कार्यवाही करें। इस संबंध में विधि विभाग एवं राजस्व विभाग के अभिमत ले कर त्वरित कार्यवाही की जाए। मुख्य सचिव ने इस प्रकार के अन्य विवादों के स्थायी हल निकालने हेतु विभाग को आवश्यक प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए।  डीएफओ कटनी ने 2021 में कलेक्टर न्यायालय में एक शपथपत्र देकर अपील वापस ले ली। 2022 में तत्कालीन प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल  ने एसएलपी बापस लेने का निर्णय लिया। इसके वापस लेने के लिए याचिका  तैयार होकर शासकीय अधिवक्ता के पास भेजा गया किन्तु सुप्रीम कोर्ट में उसे प्रस्तुत नहीं किया गया। 2022 से एसएलपी वापस लेने की एक्सरसाइज शुरू होती है और रुक जाती है। यह प्रक्रिया जारी है।

नौकरशाह और आईएफएस अफसरों के सुर बदलते रहे

इस मामले में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि आईएएस अफसर या फिर आईएफएस समय-समय पर सभी के सुर बदलते रहे। मसलन जब अपर मुख्य सचिव वन अशोक कार्य दूसरी बार वन मंत्रालय संभाला तो एक आदेश जारी कर पूर्व एसीएस वन जेएन कसोटिया के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें कटनी जिले की तहसील दीमरखेड़ा के ग्राम की खदान के मामले में सुप्रीम कोर्ट एसएलपी वापस लेने का आदेश दिया था। अपने आदेश को तत्काल अमल में लाने के लिए कोटिया ने डीएफओ कटनी को कारण बताओ नोटिस को तलब किया था। यहां यह भी तथ्य भी गौरतलब है कि जब वर्णवाल प्रमुख सचिन थे तब उन्होंने भी एसएलपी वापस लेने का आदेश जारी किया।वे तब सही बे या फिर अब? फिलहाल  पिछले महीने वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने वन मुख्यालय को निर्देश दिये है कि यदि यह केस अब तक वापस नहीं लिया गया है तो वापस लेने की कार्रवाई आगामी आदेश तक रोक दी जाए। अब ये समझ नही आ रहा की इन्हीं अशोक वर्णवाल ने प्रमुख सचिव वन रहते पूर्व में एसएलपी वापस लेने पर सहमति व्यक्त की थी।

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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