MP: हेल्थ कमिश्नर, मेडिकल एजुकेशन के डायरेक्टर को नोटिस, हाईकोर्ट ने पूछा- एमबीबीएस करने के डेढ़ साल बाद नौकरी क्यों

जबलपुर। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान दोनों ही अधिकारियों से पूछा है कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद डॉक्टर को पोस्टिंग देने में डेढ़ साल की देरी की जा रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के सर्विस बॉन्ड का उल्लंघन होने पर 25 लाख रुपए की भारी भरकम पेनल्टी लगाएं, क्या यह सही है। कोर्ट ने इन सभी मामलों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

बता दें, हाईकोर्ट में यह याचिका भोपाल के डॉक्टर अंश पंड्या ने दायर की थी। इसमें कहा गया था कि एक तो डॉक्टर को एमबीबीएस के बाद पोस्टिंग देने में डेढ़ साल तक की देरी की जा रही है, दूसरी तरफ रूरल सर्विस बॉन्ड का उल्लंघन होने पर उन पर 25 लाख रुपए की पेनल्टी लगाई जा रही है।

याचिका में एकैडमिक करियर में पिछड़ने का भी हवाला
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को एमबीबीएस डॉक्टर के पोस्ट ग्रेजुएशन में करीब सात साल की देर होने और उनके एकैडमिक करियर में पिछड़ने का भी हवाला दिया है। याचिका में कहा गया कि संसद में चर्चा के बाद इंडियन मेडिकल काउंसिल ने भी 25 लाख की पेनल्टी को कम करने के सुझाव दिए थे, लेकिन मध्यप्रदेश में सरकार ने इस पर कोई विचार नहीं किया।

हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए प्रदेश के डीएमई और हेल्थ डायरेक्टर को नोटिस जारी कर मामले में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर यह बताने के लिए कहा कि ग्रामीण पोस्टिंग प्रदान करने में इतनी देरी क्यों हुई और छात्रों द्वारा ग्रामीण पोस्टिंग छोड़ने पर 25 लाख का शुल्क क्यों लिया गया।

हाईकोर्ट ने 4 हफ्ते में जवाब मांगा

याचिकाकर्ता अंश पंड्या के अधिवक्ता आदित्य संघी का कहना है कि नियम यह है कि जैसे ही छात्र एमबीबीएस करके निकलें, उसको तुरंत ही नौकरी दी जाए। लेकिन, ये नौकरी जो दी गई है, वो उसके रिजल्ट आने के डेढ़ साल बाद मिली है। इसका मतलब यह है कि पांच साल उसे ग्रामीण क्षेत्र में काम करना है, इसके बाद डेढ़ साल और नौकरी का इंतजार करते-करते बर्बाद हो गए।

अधिवक्ता का कहना है कि ये गलती है डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन और कमिश्नर हेल्थ की, इन्होंने बच्चों के करियर से खिलवाड़ करते हुए मान रहे हैं कि हमने बॉन्ड भरवा लिया है और अब हम ही सही हैं। बहरहाल, याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

Exit mobile version