MP: इधर निवेशक सम्मेलन उधर तेजी से बंद हो रहे कपास कारखाने, 50 से ज्यादा महाराष्ट्र-गुजरात चले गए, एक प्रतिशत टैक्स के लिए एमपी ने गंवाए 500 करोड़

भोपाल। एक तरफ मुख्यमंत्री मोहन यादव मध्यप्रदेश में निवेश के लिए कॉन्क्लेव अभियान चला रहे हैं, करोड़ों रुपए सरकार निवेशक सम्मेलन और विज्ञापन पर खर्च कर रही है, दूसरी तरफ राज्य के कपास कारखाने तेजी से बंद हो रहे हैं। आलम ये है कि 10 साल में 50 से ज्यादा कारखानों पर ताला लग चुका है। नए कारखाने नहीं खुल रहे हैं। जो खुल रहे हैं, वो पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और गुजरात में हैं जबकि इनके मालिक मध्यप्रदेश के ही हैं। यहां के कारोबारी अपना व्यापार शिफ्ट करने पर इसलिए मजबूर हाे रहे हैं क्योंकि एमपी में कपास पर एक प्रतिशत मंडी टैक्स लगता है।

पहली नजर में बेहद कम लगने वाला ये मंडी टैक्स कारोबारियों के लिए बहुत मायने रखता है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि यहां के कारोबारियों ने करीब 500 करोड़ रुपए का निवेश दूसरे राज्यों में करना पसंद किया लेकिन मध्यप्रदेश में नहीं।
अकेले पांढुर्णा में 10 साल पहले तक 12 जिनिंग मिलें थीं

रेडिमेड गारमेंट उद्योग पॉलिसी की बात करें तो हमारे यहां काफी कपास होता है। यहीं से कपास तमिलनाडु और अन्य राज्यों में जाता है, जहां वे धागे से कपड़ा तक बनाते हैं। फिर निर्यात होता है। मैंने निवेशकों से कहा कि हमारे यहां ही कपड़ा बनाइए। यहां कपास उपलब्ध होगी, जमीन-मजदूर भी मिलेंगे।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में दिल्ली में एक कार्यक्रम में ये बात कही थी। हालांकि, जमीनी हकीकत एकदम अलग है। पिछले 10 साल में ही प्रदेश से 50 से अधिक मिलें गुजरात और महाराष्ट्र चली गईं। मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र की सीमा पर कपास पट्‌टी कहे जाने वाले पांढुर्णा में 10 साल पहले तक 12 जिनिंग मिलें थीं। इनमें हजारों कर्मचारी काम करते थे। आज जिले में केवल दो मिलें बची हैं और यह हाल केवल पांढुर्णा का नहीं है बल्कि पूरे प्रदेश का है।
एक मिल की औसत लागत 10 करोड़ भी मानें तो 500 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश महाराष्ट्र चला गया। मध्यप्रदेश में हजारों लोगों को मिलने वाला रोजगार भी छिन गया।
मध्यप्रदेश में मंडी टैक्स का गणित
मध्यप्रदेश में कपास पर मंडी टैक्स लंबे समय से 2.5 प्रतिशत रहा है जबकि महाराष्ट्र में यह मात्र 0.1 प्रतिशत है। प्रदेश सरकार ने कपास की घटती बिक्री और उद्योगों के लगातार पलायन के बाद भी टैक्स नहीं हटाया। हालांकि, इसे 2 प्रतिशत और फिर बाद में 1 प्रतिशत कर दिया, लेकिन महाराष्ट्र–गुजरात के मुकाबले बड़ा अंतर बरकरार है।

चुनावी साल में माफ किया था टैक्स
चुनावी वर्ष 2023 में सरकार ने मंडी टैक्स माफ किया तो प्रदेश की मंडियों में कई गुना अधिक कपास की बिक्री हुई। चुनाव बीतने के बाद एक बार फिर टैक्स लागू कर दिया गया और मंडी में बिकने वाले कपास पर एक प्रतिशत की दर से टैक्स लगाया जाने लगा।
बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी चुका रहे कारोबारी
महाराष्ट्र में जहां मंडी टैक्स 10 पैसे से लेकर अधिकतम 25 पैसा है, वहीं मध्यप्रदेश में एक रुपए मंडी टैक्स के साथ उपज पर 20 पैसे बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी लगाया जा रहा है। बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के समय शरणार्थियों के भारत में आने पर 1971 में यह टैक्स लगाया गया था। आज 53 साल बाद भी यह टैक्स वसूला जा रहा है।
मध्यांचल कॉटन जिनिंग एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जैन बताते हैं कि इस टैक्स के बाद हमारे यहां उपज पर कुल टैक्स 1 रुपए 20 पैसे हो जाता है। ऐसे में पड़ोसी राज्यों से मुकाबला कैसे करेंगे?

महाराष्ट्र के मुकाबले ऐसे महंगा पड़ता है कारोबार
जैन बताते हैं कि मध्यप्रदेश में कपास से रुई बनाने पर यह 53 हजार रुपए प्रति खंडी पड़ती है। एक खंडी यानी 356 किलो रुई। महाराष्ट्र में रुई बनाने पर 52 हजार 400 रुपए पड़ती है। एमपी में एक खंडी पर 600 रुपए मंडी टैक्स ज्यादा भरना पड़ रहा है।
80 फीसदी मिलें शिफ्ट हो चुकीं
मध्यांचल कॉटन जिनिंग एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जैन का कहना है कि निमाड़ सफेद सोने यानी कपास का गढ़ हुआ करता था। 15-20 साल पहले तक यहां 200 से अधिक मिलें थीं। लेकिन मंडी टैक्स, सरकार की नीतियों, महाराष्ट्र और गुजरात में निवेश की आकर्षक शर्तों के कारण 80 फीसदी मिलें वहां चली गई हैं।

इस मामले को लेकर हम कई बार सरकार के प्रतिनिधियों और अधिकारियों से मिले लेकिन कोई हल नहीं निकला।

दम तोड़ रही पुरानी मिलें
श्रीनाथ काॅटन इंडस्ट्री के संचालक हितेन भाटिया बताते हैं कि मध्यप्रदेश में जिनिंग संचालकों को मंडी से माल खरीदने पर जो टैक्स देना पड़ता है, वह महाराष्ट्र में आधे से भी कम है। महाराष्ट्र में मंडी से कपास खरीदने पर मात्र 50 पैसे टैक्स है। वहां अपने फैक्ट्री परिसर को भी मंडी डिक्लेयर कराया जा सकता है, ऐसा होने पर टैक्स मात्र 10 पैसे लगता है।

किसान भी महाराष्ट्र में कपास बेचने चले जाते हैं। वहीं, आंध्र प्रदेश का कपास भी वहां आसानी से आ पाता है। इसी तरह गुजरात में टैक्स 0.30 पैसे है।
उद्योगों को रियायत दे रहे पड़ोसी प्रदेश
हितेन भाटिया कहते हैं कि मामला केवल मंडी टैक्स का नहीं है। महाराष्ट्र में नई फैक्ट्री लगाने पर बिजली के बिल में छूट सहित कई सुविधाएं मिलती हैं।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए जैन बताते हैं कि महाराष्ट्र में स्पिनिंग यूनिट पर दो रुपए प्रति यूनिट की सब्सिडी दी जाती है, गुजरात में भी सब्सिडी मिलती है। इंडस्ट्री फ्रेंडली पाॅलिसी के कारण यहां की अधिकतर जिनिंग महाराष्ट्र चली गई हैं। वहीं खंडवा, खरगोन और बड़वानी जिले के जिनिंग मालिकों में से अधिकतर ने महाराष्ट्र या गुजरात शिफ्ट कर लिया है।

दाम नहीं मिलने से किसान भी मायूस
पांढुर्णा जिले के सौंसर में कपास की खेती करने वाले किसान यश कुमार बताते हैं कि चार साल पहले कपास का भाव सात हजार रुपए था। इस साल भी सात हजार रुपए ही देख रहे हैं। लेकिन हमने तेल 90 रुपए देखा, वो आज 140 रुपए हो गया है।
टैक्स का बोझ किसानों पर कैसे
किसान ने दो एकड़ में कपास की खेती की। हर एकड़ में करीब 13 क्विंटल कपास पैदा हुआ यानी कुल 26 क्विवंटल कपास। वो मंडी पहुंचा, जहां उसे 6900 रुपए प्रति क्विवंटल का रेट मिला। एक लाख 79 हजार 400 रुपए के बिल पर व्यापारी को एक प्रतिशत टैक्स देना था यानी एक हजार 790 रुपए। ये रकम व्यापारी ने किसान के कपास से पहले ही काटकर कम का रेट दिया।
इस तरह टैक्स का बोझ आखिरकार किसानों पर ही पड़ता है। किसानों के पास नजदीकी मंडी या प्राइवेट जिनिंग में माल बेचने के अलावा विकल्प भी नहीं होता क्योंकि परिवहन का खर्च बढ़ जाता है।

विधानसभा में सवाल पर मंत्री ने दिया जवाब
मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पानसेमल विधायक श्याम बरडे ने पड़ोसी राज्यों से अधिक मंडी टैक्स होने के चलते किसानों को प्रति क्विंटल 100 से 130 रुपए क्विंटल के नुकसान का मामला उठाया।
इस पर मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना ने महाराष्ट्र, गुजरात की दरें बताते हुए जवाब दिया कि मंडी शुल्क व्यापारी देता है, ऐसे में किसान को नुकसान होने का प्रश्न ही नहीं उठता।

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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