भोपाल । प्रदेश के तीन पूर्व आइएएस और आइएफएस अफसर भ्रष्टाचार के मामले में फंस गए हैं। मप्र राज्य आजीविका मिशन में 2017 में की गई नियुक्तियों के मामले में इन अधिकारियों की गड़बड़ी, जांच रिपोर्ट में भी उजागर हो चुकी है। हालांकि सरकार ने इसके बाद भी पूर्व आइएएस और आइएफएस अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं की लेकिन इसके लिए शिकंजा कसा जा रहा है। पूर्व आइएएस और आइएफएस अफसरों की गड़बड़ी सामने लाते हुए एक अन्य आइएफएस अफसर ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
आजाद सिंह डबास ने अपने पत्र में लिखा कि मप्र राज्य आजीविका मिशन में 2017 में की गई नियुक्तियों के संबंध में ये शिकायत की गई थी। आरोप है कि इन नियुक्तियों में अधिकारियों ने न केवल नियमों की अनदेखी की बल्कि विभागीय मंत्री के आदेशों को भी नहीं माना।
शिकायत में बताया गया कि मिशन के तत्कालीन सीईओ द्वारा 15 जिलों में कर्मियों की नियुक्ति करने के संबंध में 8 मार्च 2017 को प्रशासकीय मंजूरी के लिए फाइल पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन एसीएस को भेजी गई थी। रिक्त पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करने की बात कही गई। एक अन्य विभागीय अधिकारी ने चयन प्रक्रिया में 5 सदस्यीय समिति बनाने के लिए टीप लिखी जिसे तत्कालीन एसीएस ने नकार दिया।
डबास ने अपने पत्र में दावा किया कि ईओडब्लू में हुई शिकायत के पूर्व विभागीय तौर पर नियुक्तियों में धांधली की जांच आइएएस नेहा मराव्या ने की थी। उन्होंने 8 जून 2022 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में धांधली की बात स्वीकारी थी। इसके बावजूद दो वरिष्ठ आइएएस अफसरों ने मामले में कार्रवाई नहीं की और तत्कालीन सीईओ से इस्तीफा दिलवाकर मामला दबाने की कोशिश की गई।
मप्र राज्य रोजगार गारंटी की तत्कालीन सीईओ नेहा मारव्या ने 8 जून 2022 को जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन भोपाल द्वारा संविदा नीति का पालन नहीं किया गया। तत्कालीन एसआरएलएम सीईओ ललित मोहन बेलवाल और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी विकास अवस्थी ने कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर सुषमा रानी शुक्ला को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायत राज (एनआईआरडी) हैदराबाद भेजा था। एसआरएलएम की कर्मचारी होने के बाद भी उन्हें एनआईआरडी हैदराबाद में काम करने की अनुमति दी गई। इसी प्रकार राज्य परियोजना प्रबंधक के पद पर नियुक्ति के लिए एनआईआरडी से चोरी किए गए लैटरहेड पर वहां के डायरेक्टर के फर्जी हस्ताक्षर करके नौकरी हासिल की गई। अनुभव प्रमाण पत्र और शैक्षणिक दस्तावेज भी गलत लगाए गए।
दूसरी जांच रिपोर्ट
मामला पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव के सामने गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जांच अधिकारी ने ललित मोहन बेलवाल को उनका पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया, लेकिन वे नहीं आए। रिपोर्ट से साफ लगता है कि गड़बड़ी की जानकारी उन्हें थी। इसके बाद मामला विभागीय मंत्री को और फिर मुख्यमंत्री समन्वय में चला गया।
भोपाल कोर्ट पहुंचा मामला
आजीविका मिशन में नियम विरुद्ध नियुक्ति और इसमें हुए भ्रष्टाचार के मामले में विभागीय अफसरों पर शिकंजा कसने की तैयारी है। भोपाल कोर्ट ने EOW से जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया है। मामले में तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, पूर्व IAS मनोज श्रीवास्तव, ललित मोहन व अशोक शाह सहित अन्य अफसरों के नाम शामिल हैं।
EOW से स्टेटस रिपोर्ट तलब
2017-18 में हुई मिशनकर्मियों की नियम विरुद्ध नियुक्ति और भ्रष्टाचार की शिकायत EOW से की गई थी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद आवेदक आरके मिश्रा ने सीजेएम कोर्ट में परिवाद दायर किया है। कोर्ट ने जांच और स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मांगे जाने के बाद EOW ने मप्र सामान्य प्रशासन विभाग ( GAD) से कार्रवाई की अनुमति मांगी है। फिलहाल मामला पेंडिंग है।
पूरा मामला
आजीविका मिशन के तहत 15 नए जिलों में मिशनकर्मियों की नियुक्ति हुई थी। जिसमें नियमों की अनदेखी व विभागीय मंत्री के आदेश न मानने का आरोप लगाते हुए EOW से शिकायत की गई थी। बताया कि तत्कालीन परियोजना प्रबंधक ललित मोहन बेलवाल ने 8 मार्च 2017 को प्रशासकीय स्वीकृति के लिए फाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ग्रामीण विकास इकबाल सिंह बैंस को भेजी थी। इसमें विज्ञापन जारी करने व चयन प्रक्रिया के लिए कमेटी बनाने की टीप लिखी गई, लेकिन बैंस ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए विभागीय मंत्री के पास फाइल ही नहीं भेजी। उनके ओदशों की भी अवहेलना की।
बीमा राशि घोटाला
सबसे बड़ा घोटाला बीमा राशि को लेकर किया गया था. साथ ही नियुक्ति,अगरबत्ती मशीन खरीदी, स्कूल यूनिफार्म खरीदी सहित कई अन्य घोटालों को भी अंजाम दिया है. याचिकाकर्ता के पास इसके पुख्ता सबूत हैं. इसके बावजूद सरकार की ओर से ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
पूर्व मंत्री और विधायक तक उठा चुके हैं भ्रष्टाचार का मामला
याचिका में बताया गया था कि रिटायर्ड आईएफएस ललित मोहन बेलवाल समेत कई अन्य अधिकारियों-कर्मचारियों पर गंभीर आरोप हैं. पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल और बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने यह मुद्दा विधानसभा में भी उठाया था. इसके बावजूद सरकार ने अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. इसलिए जनहित याचिका दायर की गई.