Editorial
राज्य महिला आयोग.. हाल बेहाल..

देश के तमाम हिस्सों में महिला को लेकर तमाम अपराध हो रहे हैं। देश भर में महिला आंदोलन भी चल रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जो महिला अपराधों में लगातार तीन टाप राज्यों में रहने के बाद भी यहां महिला आयोग लगभग बंद की हालत में है।
महिलाओं की सामान्य से लेकर गंभीर शिकायतों और मामलों की सुनवाई के लिए महिला आयोग का गठन हुआ था। यहां अधिकारी सहित लगभग 30 कर्मचारी काम करते हैं। हर महीने करीब 300 से शिकायतें आती हैं, यानी सालाना 3 हजार से ज्यादा शिकायतें। बिना अध्यक्ष के आयोग के अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों की ताकत सीमित रह जाती है। पिछले कुछ सालों में आयोग में सिविल न्यायालय नहीं लग रहा है। इसे लगाने का अधिकार अध्यक्ष को होता है। अध्यक्ष ही नहीं है, सो अब पीडि़तों की सुनवाई नहीं हो रही है। इसी वजह से अप्रैल 23 से दिसंबर 23 के बीच 2787 मामले लंबित थे, अब उनकी संख्या 25 हजार से ज्यादा हो चुकी है।
असल में वर्ष 2016 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने लता वानखेड़े को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। उन्होंने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया। 19 जनवरी 2019 को उनका कार्यकाल खत्म हो गया। साल 2018 में मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक साल तक आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की। साल 2020 में मप्र के सियासी समीकरण बदले। कांग्रेस की सरकार गिर गई। लेकिन सरकार गिरने से पांच दिन पहले ही तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने शोभा ओझा को राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया। इसके साथ ही सदस्यों की भी नियुक्ति कर दी।
कमलनाथ सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह फिर मुख्यमंत्री बने। सरकार ने आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां रद्द कर दी। वजह बताई गई कि कमलनाथ सरकार अल्पमत में थी, इसलिए ये नियुक्तियां अवैध हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन अध्यक्ष शोभा ओझा और सदस्यों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने नियुक्तियां रद्द करने पर रोक लगा दी। जब पूर्व अध्यक्ष और सदस्य कोर्ट का स्थगन आदेश लेकर दफ्तर पहुंचे, तो वहां केबिन में ताला लगा हुआ था। उन लोगों ने हॉल में बैठकर काम शुरू किया तो कर्मचारियों पर छुट्टी लेने का दबाव बनाया गया। इन हालात में तत्कालीन अध्यक्ष ने 2022 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि मामला अब भी कोर्ट में जारी है, लेकिन अभी तक महिला आयोग में नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई है।
इस तरह महिला आयोग तो है और वहां शिकायतें लेकर पीडि़त महिलाएं भी पहुंच रही हैं, लेकिन शिकायतों का निपटारा नहीं हो पा रहा है। असल में  शिकायतों को निपटाने की एक प्रक्रिया होती है। इन्हें संबंधित विभागों को भेजा जाता है और उनसे जांच रिपोर्ट मांगी जाती है। इन शिकायतों की एक फाइल तैयार कर रखी जाती है। ज्यादातर फाइलें ऐसे ही पड़ी हुई हैं, क्योंकि विभाग जांच रिपोर्ट ही नहीं भेजते। जो बचे हुए मामले हैं उन पर अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के बाद ही कार्रवाई हो सकती है।
आयोग में मौजूद अधिकारी और कर्मचारी कहते हैं कि अध्यक्ष न होने से आयोग का दायरा सीमित हो गया है। कोर्ट और अध्यक्ष के पास ताकत होती है कि वे किसी भी अधिकारी को तलब कर सकते हैं। दोनों पक्षों को साथ बुलाकर सुनवाई कर सकते हैं। लेकिन, इन सब का अधिकार हमें नहीं है। सबसे ज्यादा मामले ऐसे आते हैं, जिनमें स्थानीय पुलिस और थाना महिलाओं की शिकायतें सुनते ही नहीं। एफआईआर दर्ज नहीं करते या समझौता करने का दबाव बनाते हैं। पहले जब ऐसे मामले आयोग की बेंच के पास आते थे तो त्वरित सुनवाई शुरू हो जाती थी। एफआईआर भी दर्ज हो जाती थी।
आयोग के अधिकार सीमित होने के कारण बहुत से मामलों में थानों में समझौता हो जाता है। इन लोगों के पास दूसरे पक्ष को बुलाने का अधिकार नहीं है। आयोग बहुत से गंभीर मामलों में या मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर स्वत: संज्ञान लेता था, लेकिन फिलहाल यह सिलसिला भी बंद पड़ा हुआ है। सो फिलहाल प्रदेश का महिला आयोग शून्य की स्थिति में है, जबकि महिला प्रताडऩा और अन्य मामले लगातार बढ़ रहे हैं। राजनीतिक परिस्थितियां कुछ ऐसी बताई जाती हैं कि मुख्यमंत्री कोई भी राजनीतिक नियुक्ति की फाइल लेकर जाते हैं, उसे रख लिया जाता है। फिलहाल तमाम राजनीतिक नियुक्तियों की सूची हाईकमान के पास फैसले के लिए लंबित पड़ी हुई हैं, इनमें संभवत: महिला आयोग भी शामिल है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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