स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी का बेटा और परिवहन विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति मिली। यानि शुरूआत ही भ्रष्टाचार से हुई तो ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती थी। यह कहानी है उस सौरभ शर्मा की, जिसके यहां करोड़ों की सम्पत्ति मिली। सोना और चांदी तो इतना कि आज के दौर में सोचा भी नहीं जा सकता। छापे के पहले ही विदेश भी चला गया। कई मंत्रियों का चहेता और अफसरों का भी। हवलदार की नौकरी छोड़ कर बन गया बिल्डर।
कहानी बड़ी दिलचस्प होती जा रही है। जब छापा मारा गया, तब एजेंसी के अधिकारियों को भी उम्मीद नहीं होगी कि कहानी इतनी लंबी हो जाएगी। खबर के अनुसार लोकायुक्त की टीम ने आरटीओ के पूर्व कॉन्स्टेबल सौरभ शर्मा के भोपाल के ई-7 अरेरा कॉलोनी स्थित घर और ऑफिस पर गुरुवार सुबह करीब 7 बजे छापा मारा था। ताजा सर्च करीब 17 घंटे रात 12.30 बजे तक चली। इस दौरान पुलिस को नोट गिनने की सात मशीन, कुल 2.95 करोड़ कैश, दो क्विंटल चांदी की सिल्ली, दस किलो चांदी के जेवरात और पचास लाख रुपए का सोना मिला है। फिर जो लावारिस कार में चौवन किलो सोना और करीब दस करोड़ नकदी मिली, वह भी इसी अरबपति हवलदार की बताई जा रही है।
छापे की कार्रवाई में दो कारें, एक स्कूल, एक निर्माणाधीन बंगला, लग्जरी लाइफ स्टाइल का करीब दो करोड़ रुपए कीमत का सामान भी मिला है। जिसमें महंगे कपड़े, कीमती झूमर और धातु की मूर्तियां शामिल हैं। आरोपी के ऑफिस से भोपाल, इंदौर और ग्वालियर सहित कई शहरों में प्रॉपर्टी के दस्तावेज, एग्रीमेंट मिले हैं। अब तक आरोपी के तीन बैंक अकाउंट की जानकारी लोकायुक्त टीम को मिली है। इनमें कितना कैश है, इसकी जानकारी जुटाई जाएगी। सौरभ फिलहाल भोपाल में नहीं हैं। कार्रवाई से पहले ही वह दुबई में था। कह सकते हैं, दुबई चला गया था।
सौरभ शर्मा परिवहन विभाग यानि आरटीओ में आरक्षक था और एक साल पहले ही उसने वीआरएस लिया और रियल एस्टेट कारोबार से जुड़ गया। उसका एक होटल भी बताया जा रहा है। सौरभ ने महज 7 साल की नौकरी में प्रदेश भर में करोड़ों का अवैध साम्राज्य खड़ा किया है। अरेरा कॉलोनी के ई-7/17 नंबर के जिस बंगले में सौरभ रह रहा है, उसे साल 2015 में सवा दो करोड़ रुपए में खरीदा गया। यह बंगला सौरभ अपने जीजा का होना बताता है। अब इस बंगले की वर्तमान कीमत करीब 7 करोड़ रुपए है। जब बंगला लिया गया, तब सौरभ नौकरी पर था। नजर में न आए इसलिए उसने दूसरे के नाम से बंगले को खरीदा था।
सौरभ ने चार साल पहले अपने ग्वालियर में रहने वाले चेतन सिंह गौर नाम के दोस्त को भोपाल बुला लिया। यहां उसके नाम से संपत्तियां खरीदी। मेंडोरी के जंगल में जो इनोवा कार 54 किलो सोने और 10 करोड़ रुपए कैश के साथ आईटी को लावारिस हालत में मिली, वह कार चेतन इस्तेमाल करता था। इस पर एमपी आरटीओ लिखा है। इस कार के साथ चेतन का एक फोटो भी सामने आया है।
मूल रूप से ग्वालियर के रहने वाला सौरभ साधारण परिवार से था। चंद साल की नौकरी में ही उसका रहन-सहन बदल गया था। इसकी शिकायत विभाग सहित अन्य स्थानों पर की जाने लगी। इस पर सौरभ ने वीआरएस लेने का फैसला लिया। इसके बाद भोपाल के कई नामचीन बिल्डरों के साथ प्रॉपर्टी में इन्वेस्टमेंट करने लगा। कहने को वह एक कॉन्स्टेबल था, लेकिन मंत्री और अफसरों का सबसे चहेता था।
जो कहानी फिलहाल सामने आई है, उसके अनुसार उसके पास एमपी के आधे परिवहन चेक पोस्ट की जिम्मेदारी थी। इन चेकपोस्ट में आने वाले पूरी नकदी को वो खुद डील करता था। चेकपोस्ट पर तैनात इंस्पेक्टर और दूसरे अफसरों का ‘शेयर’ वो खुद तय करता था। उसके काम में कोई अफसर और इंस्पेक्टर दखल नहीं देता था। उसने सरकारी चेकपोस्ट चेकपोस्ट को ही ठेके पर दे दिया था। हर चेकपोस्ट से हर दिन की निर्धारित रकम तय थी। चेकपोस्ट से वह खुद ये पैसे ले जाता था। 1 जुलाई 2024 से पहले प्रदेश में कुल 47 परिवहन चेकपोस्ट थे, इसमें से 23 को सौरभ संभालता था। मार्च 2020 में जब मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का तख्तापलट हुआ और शिवराज सरकार की वापसी हुई, तो मंत्रालय में भी फेरबदल हुए। लेकिन इसमें अधिकारियों को भरोसे में नहीं लिया गया। कॉन्स्टेबल सौरभ का दखल सीधे हाई लेवल पर हो गया। वह सरकार के एजेंट के तौर पर अफसरों को दरकिनार कर मनमाफिक व्यवस्था बनाने लगा। 2016 से 2023 तक सरकार और मंत्री जरूर बदलते रहे, लेकिन सौरभ हर सरकार का चहेता ही बना रहा।
सबसे मजेदार बात तो यह रही कि सौरभ के पिता स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ थे। उनकी मृत्यु के बाद जब अनुकंपा नियुक्ति की फाइल चली तो स्वास्थ्य विभाग ने पद खाली न होने की स्पेशल नोटशीट लिखी गई, ताकि उसे उसके मनचाहे विभाग में अनुकंपा नियुक्ति मिल सके। यानि कहानी यहीं से शुरू हो गई थी। इसके बाद उसे परिवहन विभाग में अनुकंपा नियुक्ति दी गई। आमतौर पर ऐसा नहीं होता। 2016 की तत्कालीन सरकार में भी सौरभ के हाई लेवल पर संबंध थे। यही वजह थी कि उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया बहुत तेजी से पूरी हुई।
सवाल तो उठेगा ही, सबसे पहले तो अनुकंपा नियुक्ति में गड़बड़ी हुई, क्यों? परिवहन विभाग में नियुक्ति कैसे हो गई? फिर, हवलदार रहते हुए ऊपर तक पहुंच कैसे हो गई? क्या भ्रष्टाचार का जीरो टालरेंस यही होता है? वह भी लंबे समय तक। सरकारें बदलती रहीं, इस हवलदार का जलवा वैसा का वैसा ही बना रहा। यानि, सब कुछ पैसे के दम पर ही हो रहा था। और नौकरी छोडऩे के बाद भी उसका जलवा न केवल बरकरार रहा, अपितु और बढ़ गया। अब वह दलाल के बजाय रियल स्टेट का कारोबारी बन गया।
यहां एक और महत्वपूर्ण सवाल, क्या सरकारी भ्रष्टाचार का पैसा रियल स्टेट के कारोबारी ही निवेश कर रहे हैं, एक और आयकर छापे के दौरान पूर्व मुख्य सचिव का करीबी भी बिल्डर है और उसने भी भ्रष्टाचार का पैसा अपने कारोबार में लगा रखा है, ऐसा छापों के दौरान सामने आ रहा है। कहानियां बहुत लंबी हैं। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि ये तो ट्रेलर है। फिल्म बाकी है…!
– संजय सक्सेना