भोपाल। राजधानी भोपाल में ईडी ने बड़ी कार्रवाई करते हुए बैंक ऑफ इंडिया के असिस्टेंट मैनेजर पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है। जांच में कई तथ्य सामने आए हैं। जिसमें पता चला है कि आरोपी ने लोन देने के नाम पर रिश्वत लेता था। उसने रिश्वत के पैसों से अपनी पत्नी और बेटे के नाम पर निवेश किया था।
आरोपी ने पद का दुरुपयोग करते हुए 1 करोड़ 58 लाख रुपए अवैध तरीके से जुटाए हैं। ED के भोपाल जोनल ऑफिस ने प्रोसिक्यूशन कम्प्लेंट (PC) स्पेशल कोर्ट (PMLA) में 24 सितंबर को फाइल की थी। इसका स्पेशल कोर्ट ने संज्ञान ले लिया है। अब 14 साल पुराने मामले में ईडी जांच करेगी।
दैनिक भास्कर ने 14 साल पुराने मामले की जानकारी जुटाई। पता चला कि 2010 में तत्कालीन असिस्टेंट मैनेजर पावसे के पास सीबीआई ने छापा मारा था। उसके पास 400 गुना ज्यादा संपत्ति मिली थी। उसे 5 साल की सजा भी हो चुकी है।
चेक, जमा पर्चियों पर फर्जी दस्तखत कर जुटाए रुपए
ED की जांच में पता चला कि वसंत पावसे ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, अरेरा हिल्स, भोपाल में सहायक प्रबंधक के रूप में पद का दुरुपयोग किया था। उन्होंने 1.58 करोड़ रुपए की संपत्ति फर्जीवाड़ा कर अर्जित की है। जांच में पता चला कि असिस्टेंट मैनेजर पावसे पार्टियों को लोन मंजूर करने के लिए नकदी रिश्वत भी लेते थे।
2010 में CBI ने किया था केस दर्ज
बात फरवरी 2010 की है। सीबीआई ने भोपाल के अरेरा हिल्स स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन ब्रांच मैनेजर केके चौरसिया, असिस्टेंट मैनेजर वसंत पावसे पर बैंक लोन देने में धोखाधड़ी करने और अवैध तरीके से आय जुटाने के मामले में केस दर्ज किया था। सीबीआई ने वसंत पावसे के घर छापा भी मारा था। उसके घर से बड़ी मात्रा में नकदी, ज्वेलरी, म्यूचुअल फंड और अचल संपत्तियों में निवेश का ब्योरा मिला था।
सीबीआई के आरोप पत्र के अनुसार वसंत पावसे की संपत्ति उसकी आय से 400 गुना अधिक है।
CBI की स्पेशल कोर्ट ने सुनाई थी सजा
दिसंबर 2013 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 23 दिसंबर को केके चौरसिया और बसंत पावसे को दोषी पाते हुए पांच साल की सजा सुनाई। साथ ही, डेढ़ करोड़ का जुर्माना लगाया। इसके बाद दोनों को जेल भेज दिया गया। फैसला सीबीआई के तत्कालीन विशेष न्यायाधीश संजीव कुमार सरिया ने सुनाया था।
बिल्डर्स को गलत तरीके से लोन किया था मंजूर
पावसे ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बिल्डर्स को करोड़ों रुपए का लोन मंजूर किए थे। एनपीए के ऑडिट के दौरान यह मामला प्रकाश में आया। मामले में तत्कालीन वरिष्ठ प्रबंधक के के चौरसिया और सहायक प्रबंधक (ऋण और अग्रिम) पावसे को 6 महीने से अधिक समय के लिए निलंबित कर दिया गया था। आगे की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।
आईजी के PA की सुसाइड के बाद सामने आया था मामला
साल 2011 में मामला तब सुर्खियों में आया, जब होशंगाबाद के तत्कालीन आईजी विनय कटारिया के निजी सहायक अरुण तिवारी ने आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में लिखा था कि उन पर बैंकर पावसे 32.50 लाख रुपये वापस करने का दबाव बना रहा था। यह रुपए उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले को निपटाने के लिए “सीबीआई कर्मचारी” से जुटाए थे।