BHOPAL: अफसोस…. अपने भोपाल की कई धरोहरें वक्त के साथ जर्जर हो चली

अलीम बज्मी

विश्व धरोहर दिवस हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है। शुरुआत में इसे विश्व स्मारक दिवस के तौर पर मनाया जाता था लेकिन यूनेस्को ने इस दिन को विश्व विरासत दिवस या धरोहर दिवस के रूप में बदल दिया। अब बात भोपाल की।
अपने भोपाल शहर में कई ऐसी विरासत या धरोहरें हैं, जो वक्त के साथ जर्जर हो गई है। समुचित देखरेख और संरक्षण की कमी से अपना वजूद खो रही है। अफसोस इसकी फिक्र सरकार को नहीं है। न ही ये कोई मुद्दा है। न इनके संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर राजनेताओं को कोई चिंता है। हमारे नुमाइंदों की चुप्पी भी हैरान करने वाली है। सालों पहले हुए निर्माण अब वक्त के साथ बूढ़े हो गए हैं। अपनी चमक खो रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि वह अपनी निर्मित स्थिति में बने रहें और उनकी जर्जर होती अवस्था को सुधारकर उन्हें मूल स्वरुप में लाया जा सके। ऐसा हम कर सके तो यह सार्थक होगा।
दरअसल हमारे पास पूर्वजों की सौगात के रूप में जल अभियांत्रिकी के बेजोड़ नमूने के रूप में तीन सीढ़ी तालाब ( मोतिया तालाब, सिद्दीक हस खां तालाब, मुंशी हुसैन खां तालाब) है। लेकिन अफसोस। ये तीनों तालाब अवैध निर्माण, अतिक्रमण और सीवरेज की भेंट चढ़ चुके हैं। इन तीन तालाबों को सहजने, बचाने की किसी भी स्तर पर ठोस कोशिश नहीं हुई। अगर ऐसा होता तो पुराने शहर की पेयजल समाधान का एक वैकल्पिक स्त्रोत मिलता। सैलानियों के लिए ये तालाब आकर्षण का केंद्र होते। वहीं, मत्स्य पालन के रूप में मछुआरों को रोजगार भी मिलता। इसी तरह छोटा तालाब भी हमारे पूर्वजों की निशानी है। ये भी अब एक सीवरेज टैंक के रूप में परिवर्तित हो चुका है। यद्यपि भोज वैट लैंड परियोजना के अंतर्गत इसका काम हाथ में लिया जरुर गया लेकिन वो रस्मी साबित हुआ। ऐसी स्थिति परिस्थिति में ये भी अब मृत्यु शैया पर है। इसके पास से निकलने पर पानी से सड़ांध आती है। जलकुंभी ने यहां अपना घर बनाया हुआ है। शहर के कुछ स्थानों से इसमें गंदगी का मिलना बदस्तूर जारी है।
अब ये भी जानिये। अपने भोपाल में भी ताज है। जी हुजूर ताज महल। ये आगरा जैसा खूबसूरत तो नहीं लेकिन नवाब शाहजहां बेगम के सुनहरे दौर का गवाह है। नवाब शाहजहां बेगम भोपाल की पहली टाउन प्लानर होने के साथ ही कुशल प्रशासक थी। उनके द्वारा बनाए ताजमहल को हम मोहब्बत की एक यादगार भी कह सकते है क्योंकि उनका सिद्दीक हसन खां से इश्क इसी इमारत में परवान चढ़ा। दोनों की शादी भी हुई। ताजमहल की इमारत कई मायनों में अनूठी है। इसका दाखिल दरवाजा तो अब मौलिक रूप और स्वरूप खो चुका है तो मेन गेट अभी बाकी है। ताजमहल के निर्माण में कुल 13 वर्ष लग गए थे। नवाब शाहजहां बेगम ने इस महल के गेट को इतना वजनी बनवाया था कि हाथी की टक्कर से भी न टूट पाए। इस गेट के ऊपर लोहे की कीलें लगी हुई हैं। साथ ही, इसका वजन भी हाथी से ज्यादा है।
ताज महल में तीन गेट थे। पूर्व की तरफ स्थित गेट से सुबह के समय बाहरी लोगों का आना जाना था। बाहरी लोगों से ताज महल की खूबसूरती को नजर न लग जाए इसलिए बेगम ने पूर्वी गेट के ऊपर एक बड़ा शीशा लगवा दिया था। सूरज की रोशनी इस शीशे पर पड़ती थी और चकाचौंध की वजह से लोग ताज महल का दीदार नहीं करवा पाते थे। इस तरह से उन्होंने इसे नजर लगने से बचाया था। 120 कमरों वाले इस महल के बनने की खुशी में 3 साल तक भोपाल में जश्न चला था। 1870 में यह महल बना था। इसको बनने में 13 साल लगे थे। 17 एकड़ में फैले इस महल को बनवाने पर उस दौर में लगभग 30 लाख रुपए का खर्च आया था। लेकिन अब ये उजाड़ है।
हांलाकि ताजमहल को हैरिटेज होटल के रूप में विकसित करने का निर्णय तो राज्य शासन ने लिया लेकिन अब तक न ये होटल बना और न ही पुरातत्व दृष्टि से इसके संरक्षण के लिए ठोस काम हुआ। कुछ ऐसी ही हालत अन्य धरोहर की है। जैसे समरिस्तान यानी बेनजीर पैलेस उजाड़ अवस्था में है तो गोलघर की स्थिति कुछ बेहतर है तो रानी कमलापति के गिन्नौरगढ़ स्थित महल की हालत सबसे ज्यादा खराब है। इसी तरह नजर पैलेस, राहत मंजिल का तो अब वजूद भी नहीं बचा। वहीं, मकबरों और बावड़ियों की हालत को देखकर दिल लरजता है। करीब ढाई दशक पहले हवा महल तोड़ दिया गया तो पांच-छह दशक पहले फतेहगढ़ किले का अस्तित्व खत्म हो गया। ताजा कुल्हाड़ा परी पार्क यानी परवीन मंजिल पर चला। तमाम हरे-भरे पूर्वजों के काल के पेड़ काट दिए गए। यहां नवाबी दौर में महिला बाजार लगा करता था। अब ये निशानी खत्म हो गई हैं। इसे देखकर दिल दुखता है। यहां जल्दी ही बड़ा काम्प्लेक्स बनने वाला है।
दूसरी ओर सरकार की कोशिशों से गौहर महल अवश्य ही अभी जीवित अवस्था में है। दरअसल, गौहर महल एक हवेली की शक्ल में है। ये भोपाल की पहली महिला शासक नवाब कुदसिया जहां बेगम के नाम से जाना जाता है। उन्हें गौहर बेगम के नाम से शहर में अत्यंत आदर के साथ संबोधित किया जाता था। गौहर महल बड़े तालाब के किनारे पर स्थित है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। भोपाल के नजदीक है भीमबेटिका। भीम बेटिका की गुफाएं देखने के लिए आपको शहर से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी। यहां की गुफाएं विंध्य पर्वत की तलहटी पर स्थित है। आपको बताता चलूं कि ये एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। इस जगह पर आपको रॉक पेंटिंग और खूबसूरत नक्काशी देखने को मिलेगी। ये आपको पसंद आएगी। यहां भी अभी सैलानियों की खातिर कई तरह के प्रबंध और परिवहन के इंतजाम की जरुरत है।
शहर की अन्य धरोहर का जिक्र विस्तार से करुंगा तो ये पोस्ट काफी लंबी हो जाएगी। अंत में राज्य सरकार और हमारे नुमाइंदों से विनम्र आग्रह है कि हमारी, संस्कृति, सभ्यता को बनाए रखने इनकी तरफ ध्यान दिया जाए। ये सभी अपनी अनूठी निर्माण शैली के कारण काफी महत्वपूर्ण है। इमारतों और स्मारकों को बचाने की ईमानदारी से कोशिश किए जाने की जरुरत है ताकि आने वाली पीढ़ी को इनके महत्व के बारे में पता चल सके। इनको बचाए जाने के कारगर प्रयास होने से भोपाल पर्यटन के मानचित्र पर अपना बेहतर मुकाम हासिल कर सकेगा। लोगों को रोजगार भी मिलेगा। सरकार ऐसा करेगी तो उसे मिलेगी तारीफ।
अंत में दुष्यंत कुमार की एक गजल
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

फेसबुक वाल से साभार

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