BHOPAL History: सर राजा अवध नारायण बिसारिया ने लंदन में हुई गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भोपाल की नुमाइदंगी की..
रियासतकाल की ताजदार शख्सियत
अलीम बजमी
भोपाल। अवध नारायण बिसारिया भोपाल की एक ताजदार शख्सियत। आज उनका जिक्र। वजह भी है। नई पीढ़ी उनसे ज्यादा परिचित नहीं है। उनके अवदान को भी बहुत कम लोग जानते हैं। पहले यह जानिए। पराधीन भारत में संवैधानिक सुधारों को लेकर वर्ष 1930 में लंदन में हुई गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भोपाल रियासत का प्रतिनिधित्व किया। तब देश के कई ख्यातनाम राजे-रजवाड़ों के नुमाइंदों ने भी इसमें शिरकत की थी। इसके इतर उनका दूसरा परिचय भोपाल में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा खड़ा करने को लेकर है। इसका श्रेय उन्होंने स्वंय कभी नहीं लिया।
उनके पौत्र 77 वर्षीय पुष्पेंद्र बिसारिया बताते हैं कि दादाजी (अवध नारायण बिसारिया) का प्रभावशाली व्यक्तित्व रहा। शोहरत की कभी ख्वाहिश नहीं रखीं। उनका पूरा जीवन प्रेरक और दृढ़ संकल्प की कहानी है। चेहरे पर चमकती मुस्कान के साथ वे हमेशा बहुत विनम्र, सौम्य रहते। हरेक से आत्मीयता से बात करते तो लोग उनके मुरीद हो जाते।
पुष्पेंद्र ने अपने पूर्वजों से जाना कि सर, राजा जैसी उपाधि, भोपाल रियासत के प्रधानमंत्री होने पर भी दादाजी में अंहकार नहीं था। अनुशासन प्रिय दादाजी नौ भाषाओं के जानकार रहे। उन्होंने भोपाल में हमीदिया अस्पताल (लाल बिल्डिंग) और सुल्तानिया जनाना अस्पताल (आबिदा वार्ड) की परिकल्पना की। नवाब सुल्तान जहां बेगम और नवाब हमीदुल्ला खां को इसके लिए तैयार किया। दोनों अस्पताल भवन में उनकी रूह है। सिर्फ इतना ही नहीं, रियासत के दौर में माडल रोड की शक्ल में तकरीबन 180 फीट चौड़ी हमीदिया रोड का निर्माण कराया। सड़क के दोनों तरफ पांच-पांच हजार वर्ग फीट के रिहायशी प्लॉट काटकर बेचे। इसका फायदा ये हुआ कि रियासतकाल में ठंडी सड़क के नाम से आबाद इस सड़क पर चहल-पहल बढ़ने से रात में यात्रियों को लूटे जाने का खतरा खत्म हो गया।
मश्क कल्चर रहा
एक जमाने में भोपाल में घर-घर में नल कनेक्शन नहीं थे। मश्की (चमड़े की थैली) के जरिये घर-घर में पानी का परिवहन होता था। इसी तरह बिजली रोशनी से शहर के चौराहे और प्रमुख मार्ग आबाद नहीं थे। इसको लेकर दादाजी ने नवाब सुल्तान जहां बेगम से विमर्श करने के बाद भोपाल में वाटर सप्लाई, इलेक्ट्रिक सप्लाई नेटवर्क कायम करने में काफी योगदान दिया।
पिता पीएम तो बेटा चीफसेक्रेटी
जब उनके दादाजी पीएम थे तो पिताजी स्व. राजेंद्र नारायण स्टेट के चीफ सेक्रेट्री थे। चाचाजी बृजेश नारायण स्टेट के डीआईजी के ओहदे पर थे। दादाजी और पिताजी का दफ्तर संयोग एक ही भवन यानी पुराना सचिवालय में था। आज यहां कलेक्टर ऑफिस है।
मौलाना आजाद से रिश्ते रहे
मौलाना अबुल कलाम आजाद से दादाजी के काफी आत्मीय रिश्ते रहे। उनकी बहनें आबरू बेगम और आरजू बेगम तब यहीं रहती थीं। आबरू बेगम प्रिंस ऑफ वेल्स लेडीज क्लब की सेक्रेटरी भी रहीं।
दो टाइगर मारे
दादाजी को शिकार का भी शौक ता। वे चिकलोद, देलाबाड़ी तरफ शिकार खेलते थे। इसके चलते 256 मैग्नम राइफल से दो टाइगर को उन्होंने मार गिराया था। इसकी ट्राफी आज भी हमारे पास सुरक्षित है।
अंग्रेजों ने दिया था सर का खिताब
दादाजी की योग्यता से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें सर का खिताब दिया था। वे प्राय: शेरवानी और अलीगढ़ी पाजाम पहनते थे। फेसबुक वाल से साभार।