BHOPAL  इतिहास के झरोखे से: आजादी मिलने के बाद लाल कोठी पहले चीफ कमिश्नर हाउस फिर राजभवन बन गई..

अलीम बजमी
मध्य प्रदेश के राजनीतिक एवं प्रशासनिक इतिहास से रिश्ता रखने वाली एक कोठी भोपाल में ऐसी है कि इसका नाम तीन कालखंडों में बदला। कोठी करीब 143 वर्ष पुरानी है। भोपाल रियासत काल में इसे लाल कोठी के नाम से जाना गया। बाद में स्टेट चीफ कमिश्नर हाउस के नाम से पहचान मिली। मध्य प्रदेश गठन के साथ ही करीब आठ वर्ष बाद इसका नाम फिर बदल कर राजभवन हो गया।
जहांगीराबाद और रोशनपुरा के बीच में स्थित ये लालकोठी यानी राजभवन काफी भव्य है। इसके निचले छोर पर छोटा तालाब है। ये पुरानी विधानसभा (अब कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर) के सामने है। ये अलग-अलग कालखंडों की कई कहानियों और किस्सों को अपने अंदर समेटे है। यह करीब 6 एकड़ में है। लेकिन कंस्ट्रक्शन एरिया 15,423 वर्ग फीट में है। इसकी पहचान यहां लाल कवेलू से है। हांलाकि काफी कुछ नया निर्माण यहां हो गया है।
पहले जानिए, इसे लाल कोठी नाम कैसे पढ़ा…
दरअसल इसको लाल कोठी कहने की एक बड़ी वजह है। यह भोपाल रियासत की पहली ऐसी कोठी थी, जिसकी छत लाल चीनी मिट्टी के ‘कवेलू’ से बनी थी। कोठी का रंग भी लाल था। इन कारणों से, आम बोलचाल में इसे लाल कोठी कहा जाने लगा। इस नाम से अब भी शहर के पुराने बाशिंदे इसे पुकारते है।
143 साल पुराना इतिहास अपने अंदर समेटे
लालकोठी (अब राजभवन) का कंस्ट्रक्शन यूरोपीय वास्तुकला पर आधारित है। इसका निर्माण 1880 में भोपाल राज्य की नवाब शाहजहां बेगम ने अंग्रेज अफसरों के रहवास की खातिर कराया था। उस दौर में इसके निर्माण पर 72 हजार 878 रुपए का खर्च आया था।
साज सज्जा और आंतरिक बनावट के लिए मांगी सलाह
नवाब शाहजहां बेगम ने लाल कोठी को यूरोपीय तर्ज पर सजाने के लिए ब्रिटिश अफसरों का सहयोग लिया था। लेकिन फ्रांसीसी इंजीनियर (वॉटर वर्क्स) ऑस्टेट कुक के परामर्श से लाल कोठी का नक्शा तैयार हुआ था। उनसे नवाब बेगम इतनी प्रभावित हुई कि लाल कोठी निर्माण की जिम्मेदारी ऑस्टेट कुक को सौंपी थीं। यहां दालान में आर्च है तो उसका रंग भी लाल है। इसके पुराने कवेलू वाले हिस्से में भी आपको लाल रंग दिखाई देगा।
स्टेट चीफ कमिश्नर हाउस बना
भोपाल रियासत का भारत संघ शासन में विलय होने पर 1 जून 1949 से यह स्टेट चीफ कमिश्नर हाउस बन गया। तब भोपाल को पार्ट सी स्टेट के नाम से जाना गया। यहां पहले स्टेट चीफ कमिश्नर के रूप में एनबी बोनर्जी ने कार्यभार संभाला। उनके बाद तीन स्टेट चीफ कमिश्नर भी इसमें 31 अक्टूबर 1956 तक रहे। आखिरी स्टेट चीफ कमिश्नर के रूप में भगवान सहाय का यह निवास रहा।
राजभवन बना
1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश का गठन होने पर पहले राज्यपाल के रूप में डॉ. पट्टाभि सीता रमैया की नियुक्ति हुई थी। यह उनका निवास बना। तब से इस कोठी को राजभवन के नाम से पुकारा जाने लगा। प्रशासनिक एवं राजनीतिक हल्कों में इसे राजभवन ही कहा गया। अगर मैं गलत नहीं तो एक नवंबर 1956 से अब तक यहां 23 राज्यपाल रहे हैं। प्रदेश के 24 वें राज्यपाल के रूप में अब यह मंगु पटेल का निवास हैं। इस भवन की खासियत में एक बात ये भी है कि डॉ. बीपी सीतारमैया ने राज्यपाल के रूप में मिंटो हाल (पुराना विधानसभा भवन) में शपथ ली थी जबकि शेष राज्यपालों ने राजभवन में ही शपथ ली थीं। पूर्णकालिक राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल सबसे कम यानी 7 महीने 12 दिन का रहा। यहां पहली महिला राज्यपाल के रूप में सरला ग्रेवाल जबकि दूसरी महिला राज्यपाल आनंदी बेन पटेल भी रही।
राजभवन में प्रेसिडेंट, पीएम सुइट
यहां प्रेसिडेंट और पीएम के लिए अलग-अलग सुइट है। शान-शौकत से घिरा दरबार हॉल भी है। इसका उपयोग मूलत: शपथ ग्रहण समारोह, प्रतिनिधिमंडलों और मंत्रियों से मिलने के लिए होता है। दरबार हॉल की तर्ज पर यहां बैंकेट हॉल भी है। इसके अलावा दो गेस्ट हाउस भी है। इनका उपयोग अमूमन केंद्रीय मंत्री अथवा देशी- विदेशी मेहमान आदि के लिए होता है। यहां एक बड़ा खुला लॉन भी है। कई अवसरों पर शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन भी यहां हुआ है। वैसे राजभवन के कुछ कार्यक्रम भी यहां होते है। इस लॉन में कई प्रजाति के पेड़, पौधे भी लगे है।
और क्या है
डाक बंगला किनारा, बड़ी लायब्रेरी,अफसरों एवं अन्य कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मियों के क्वार्टर, पुलिस बैरक। इसके बड़ा हिस्सा वन क्षेत्र के रूप में है।
रिनोवेशन की शुरुआत कब हुई
जानकारों की मानें तो राजभवन के भीतर पहला अतिरिक्त निर्माण 1975 में शुरू हुआ। उस वक्त गेस्ट हाउस, डिस्पेंसरी, कॉन्फ्रेंस हाल, नया सचिवालय भवन अस्तित्व में आया।
टेनिस कोर्ट का इस्तेमाल नहीं
राजभवन में भोपाल रियासत का टेनिस कोर्ट भी था। बिलियर्ड्स टेबल भी थी। हालांकि,इनका उपयोग काफी समय से नहीं हो रहा है।
मेहमाननवाजी का लुत्फ लिया
भोपाल रियासत काल में लालकोठी की मेहमान नवाजी का लुत्फ लेने वालों में गवर्नर-जनरल के एजेंट सर लेपेल ग्रिफिन का नाम सबसे ऊपर बताया जाता है। वे यहां 1881 में आए थे। इसके बाद लॉर्ड फ्रेडरिक रॉबर्ट्स ने 25 फरवरी 1889 को दौरा किया। वह भारत में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ थे। 20 नवंबर 1891 को लैंसडाउन के ब्रिटिश वायसराय मार्क्वेस आए तो 4 नवम्बर 1895 को वायसराय अर्ल ऑफ एल्गिन भी यहां रुके थे। 1899 में लार्ड मार्क्वेस कर्जन का संक्षिप्त दौरा हुआ तो लॉर्ड मिंटो 12 नवंबर 1909 को पहुंचे। पेनहर्स्ट के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और लेडी हार्डिंग ने 1911 में यहां की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाया तो 1911 में ब्रिटिश विदेश कार्यालय के मुख्य सचिव सर हेनरी मैक महोन आए। लॉर्ड क्रीचर, सर ग्रोमोरी और मोंटगोमरी ने 1912 में जबकि 4 फरवरी 1922 को प्रिंस ऑफ वेल्स और 1927 में लार्ड इरविन यहां रुके थे।
नेहरू, शास्त्री, कलाम भी रुके
राजभवन में राज्य अतिथि के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पं. जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, पं. गोविंद वल्लभ पंत, सुश्री राज कुमारी अमृत कौर, रफी अहमद किदवई, वी. वी. गिरि, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, प्रणब मुखर्जी आदि भी यहां ठहरे हैं।
विदेशी भी मेहमान बने
राजभवन में विदेशी अतिथि के रूप में श्रीलंका के पूर्व प्रधान मंत्री भंडार नायके, बर्मा के पूर्व पीएम उनु, दलाई लामा, नेपाल, सिक्किम, भूटान आदि के राजा, इंडोनेशिया के स्वतंत्रता सेनानी डॉ. हट्टा, पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ चाइना से मंत्री शुंग चिन लिंग, यू. थांट, पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव, मार्शल जोसेप ब्रोज़ टीटो यूगोस्लाविया, फ्रंटियर गांधी के नाम से लोकप्रिय रहे खान अब्दुल गफ्फार खान, श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति हर्षवर्द्धन आदि उल्लेखनीय नाम है।
फेसबुक वाल से साभार।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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