Satsang: पुलिस की नौकरी से वीआरएस, फिर भगवान से साक्षात्कार, कौन है भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि…?


हाथरस। जिन भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ से सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वो अचानक चर्चाओं में आ आ गए। स्वयंभू संत भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि बाबा खुद को लेकर कई दावे करते हैं। बकौल बाबा, वो कासगंज के पटियाली गांव के रहने वाले हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस में 18 साल की नौकरी के बाद वीआरएस ले लिया था। वीआरएस के बाद उन्हें भगवान से साक्षात्कार हुआ। इसके बाद उनका झुकाव अध्यात्म की ओर हुआ। मंगलवार को भी सिकंदरा राऊ के फुलरई गांव में स्वयंभू संत भोले बाबा का प्रवचन चल रहा था। कई राज्यों के हजारों लोग इसमें पहुंचे थेI सत्संग खत्म हुआ तो भीषण उमस और गर्मी से बेहाल लोग वहां से जाने लगे। निकलने की जल्दी में भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे निकलने लगेI सूत्रों के मुताबिक हाथरस में आरोपी बाबा जो सत्संग कर रहा था उसके ऊपर कई सारे आपराधिक मुक़दमे दर्ज बताए जा रहे हैं।  

छोड़ी आईबी की नौकरी, सियासत से भी कनेक्शन

जिनके सत्संग में ये हादसा हुआ उनका नाम नारायण हरि है और कहा जा रहा है कि उनका कनेक्शन सियासत से भी है। कुछ मौकों पर यूपी के कई बड़े नेताओं को उनके मंच पर देखा जा चुका है। नारायण साकार हरि मूल रूप से उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बहादुर नगरी गांव के रहने वाले हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा यहीं हुई है। पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने आईबी यानी गुप्तचर विभाग की नौकरी कर ली और काफी समय तक नौकरी में रहे, फिर उनका ध्यान आध्यात्म में रम गया। आध्यात्मिक जीवन में आने के बाद उन्होंने अपना नाम भी बदल लिया और अपने भक्तों के बीच नारायण साकार हरि के नाम से जाने जाने लगे।

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सफेद सूट और टाई-जूते में नजर आते हैं बाबा साकार हरि


नारायण साकार हरि अन्य धार्मिक बाबाओं की तरफ गेरुआ वस्त्र या कोई अलग पोशाक में नजर नहीं आते हैं। नारायण हरि अक्सर सफेद सूट, टाई और जूते पहने रहते हैं तो  कई बार कुर्ता-पायजामा भी पहने दिखाई देते हैं। साकार हरि खुद बताते हैं कि नौकरी के दिनों में उनका मन बार-बार आध्यात्म की तरफ भागता था, इसीलिए उन्होंने निस्वार्थ भाव से सेवा कार्य शुरू कर दिया। साकार हरि ने बताया कि 1990 के दशक में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। उनके समागम या सत्संग में जो भी दान, दक्षिणा, चढावा आता है, वे अपने पास नहीं रखते, भक्तों के लिए खर्च कर देते हैं।

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