भोपाल। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो चुका है। पहले चरण के चुनाव के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने मंत्री और विधायकों को अपनी-अपनी सीटों पर वोटिंग पर्सेंट बढ़ाने की हिदायत दी थी। कहा था- यदि किसी मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में कम वोटिंग होती है तो उनका मंत्री पद चला जाएगा। उन विधायकों को मंत्री बनने का मौका मिलेगा, जिनके क्षेत्र में ज्यादा वोटिंग हुई है।शाह के वोटिंग टेस्ट में प्रदेश के 30 में से 9 मंत्री खरे नहीं उतरे हैं। इन मंत्रियों की विधानसभा सीटों पर संसदीय क्षेत्र के औसत से कम मतदान हुआ है। जबकि, 6 मंत्री बाउंड्री पर हैं। अब राजनीतिक गलियारों में ये सवाल गूंज रहा है कि क्या वाकई इस फार्मूले के अनुसार मोहन मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जाएगा?
प्रदेश में बीजेपी के 163 विधायक हैं। इनमें मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को हटा दिया जाए, तो विधायकों की संख्या होती है 161, इनमें भी 30 मंत्री हैं। यानी बचे हुए 131 विधायकों के साथ 30 मंत्रियों को शाह ने हिदायत दी थी।
मंत्रियों की बात करें तो शाह के वोटिंग टेस्ट में प्रदेश के 30 में से 9 मंत्री खरे नहीं उतरे हैं। इन मंत्रियों की विधानसभा सीटों पर संसदीय क्षेत्र के औसत से कम मतदान हुआ है। जबकि, 6 मंत्री बाउंड्री पर हैं। इनकी विधानसभा सीट पर वोटिंग में मामूली कमी हुई है। वहीं, 15 मंत्रियों का इस चुनाव में अच्छा परफॉर्मेंस रहा है। विधायकों की बात करें तो 131 विधायकों में 50 से ज्यादा विधायक ऐसे हैं जिनकी सीट पर संसदीय क्षेत्र में हुए औसत मतदान से ज्यादा वोटिंग हुई है। अब शाह अपनी कही बात पर कितना अमल करेंगे? इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल कहते हैं कि शाह ने विधायक और मंत्रियों को डराने के लिए ऐसा कहा था, ताकि वे चुनाव की प्रक्रिया में सक्रियता से हिस्सा ले सकें।शाह की चेतावनी के बाद जोर लगाया फिर भी 4 फीसदी कम रहा मतदान
मप्र में पिछले दो लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत देखें तो 2014 के मुकाबले 2019 के चुनाव में दस फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई थी। 2014 में सभी 29 सीटों पर मतदान प्रतिशत करीब 61 प्रतिशत था, तो 2019 में ये बढक़र 71 प्रतिशत हो गया।
इस बार बीजेपी ने कार्यकर्ताओं को ज्यादा वोट प्रतिशत का टारगेट दिया था। हर बूथ पर 370 ज्यादा वोट डलवाने के निर्देश थे, लेकिन चारों चरणों में वोटिंग पर्सेंट पिछले चुनाव के मुकाबले कम ही रहा। मप्र में चारों चरणों को मिलाकर करीब 67 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछले चुनाव के मुकाबले 4 फीसदी कम है। साथ ही 23 लोकसभा सीटो पर पिछली बार के मुकाबले कम मतदान हुआ है। जबकि, 6 सीटों पर ज्यादा हुआ है।
हालांकि, शाह के निर्देश देने के बाद बीजेपी ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कवायद शुरू की थी। ये भी तय किया था कि मतदान के दिन, मतदान जागरण अभियान चलाया जाएगा। संगठन ने सीएम और प्रदेश अध्यक्ष समेत बड़े नेताओं को ये जिम्मेदारी दी कि वे बूथस्तर के कार्यकर्ताओं को सुबह फोन करेंगे। इसके बाद ये कार्यकर्ता अपने निचले स्तर के कार्यकर्ताओं फोन कर मतदान के लिए प्रेरित करेंगे।
7 मई को हुए तीसरे चरण के चुनाव में ये कवायद कामयाब रही। सुबह 9 बजे से 11 बजे के बीच सबसे ज्यादा मतदान हुआ, लेकिन चौथे चरण में ऐसा नजर नहीं आया। इंदौर लोकसभा सीट पर मतदान को लेकर वोटरों की बेरुखी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शाम के वक्त पोलिंग बूथ लगभग खाली थे।
नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को वीडियो संदेश के माध्यम से लोगों को मतदान के लिए अपील करना पड़ी। उसके बाद भी वोटिंग पर्सेंट नहीं बढ़ा। इंदौर में पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 8 फीसदी कम मतदान हुआ। बाकी सीटों पर ये आंकड़ा 2 से 5 फीसदी के बीच है।
शाह के वोटिंग टेस्ट में 2 मंत्री डेंजर जोन में, 4 सेफ, 1 बाउंड्री पर
चौथे चरण में 7 मंत्रियों का वोटिंग टेस्ट हुआ। इनमें से 2 मंत्री नागर सिंह चौहान और चैतन्य काश्यप इस टेस्ट में खरे नहीं उतरे। जबकि, 4 मंत्री इंदर सिंह परमार, जगदीश देवड़ा, तुलसी सिलावट और निर्मला भूरिया ने उम्मीद से बेहतर परफॉर्मेंस किया है। एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय बाउंड्री पर हैं। उनकी विधानसभा सीट पर औसत से मात्र – 0.74फीसदी कम वोट पड़े।
30 मंत्रियों में राजस्व मंत्री टॉप पर, वन राज्य मंत्री की सीट पर सबसे कम वोटिंग
प्रदेश सरकार के 30 मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में वोटिंग के आंकड़े देखें तो करण सिंह वर्मा इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। वर्मा के विधानसभा क्षेत्र इछावर में विदिशा लोकसभा क्षेत्र के औसत से 5.79 फीसदी ज्यादा वोट पड़े। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव मैदान में हैं। जबकि खजुराहो सीट के चंदला में औसत से 6.81 फीसदी कम वोटिंग हुई। यहां से दिलीप अहिरवार मंत्री हैं। डॉ. मोहन यादव की कैबिनेट में पांच महिला मंत्री हैं। इनमें से सिर्फ एक निर्मला भूरिया की विधानसभा में 1.14 फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं। जबकि राधा सिंह के क्षेत्र में औसत के बराबर वोटिंग हुई। बाकी तीन मंत्री कृष्णा गौर, प्रतिमा बागरी और संपतिया उइके के विधानसभा क्षेत्र में औसत से कम वोटिंग हुई, लेकिन यह आंकड़ा 1 फीसदी से भी कम रहा।
विधायकों में सबसे ज्यादा और कम वोटिंग भोपाल लोकसभा सीट पर
विधायकों में सबसे कम वोटिंग भोपाल दक्षिण पश्चिम (-7.73%) और सागर (-7.69%) में हुई। सागर के विधायक के शैलेंद्र जैन का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि लोकसभा में वोटिंग कम हुई हो। पिछले कई चुनावों में यही ट्रेंड रहा है।
इसी तरह सबसे ज्यादा वोटिंग सीहोर में (+11.57%) हुई। यहां से विधायक सुदेश राय कहते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को मतदान करने करने के लिए अहम भूमिका निभाई।