MP: कभी था सागर में भौकाल, अब मंच से पुकारते रहे मोहन, नजर नहीं आए गोपाल….बच्चों के साथ फोटो किया शेयर…
भोपाल। उम्र के चौथे पड़ाव में मोह-माया से विरक्ति आम बात है। लगता है बुंदेलखंड के कद्दावर नेता, जिनका सागर में भौकाल रहा, लगता है उनका भी राजनीति से मोहभंग हो रहा है। ऐसा ही वाकया शुक्रवार को सागर में हुआ। सब हैरान हैं। बुंदेलखंड रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव में पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव पहुंचे तो सही, लेकिन ज्यादा रुके नहीं। कॉन्क्लेव से ज्यादा ठीक उन्हें स्कूल लगा, जहां वे अपने पोते को लेने पहुंच गए। अब भार्गव की एक पोस्ट भी चर्चा में है। इधर भार्गव की तरह ही एक और कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह भी कार्यक्रम बीच में ही छोडक़र चल दिए। इस रूठा-रूठी के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
जूनियर नेताओं को प्राथमिकता
चर्चा है कि इस कार्यक्रम में बीजेपी के शीर्ष नेताओं के बीच कलह दिखाई दी। बुंदेलखंड के दो प्रमुख नेता, पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह, जो कभी क्षेत्र में दूसरे मुख्यमंत्री के तौर पर माने जाते थे, उन्हें कार्यक्रम में उचित सम्मान नहीं मिला। मंच पर उन्हें स्थान तो दिया गया, लेकिन उनकी वरिष्ठता के मुकाबले यह सम्मान नाकाफी था। दोनों नेताओं को सीएम के दाएं-बाएं नौवें नंबर की कुर्सियों पर बिठाया गया था, जबकि उनसे जूनियर नेताओं को ज्यादा प्राथमिकता दी गई।
चर्चा में ये तस्वीर, जिसके कई मायने
मंच पर बोलते हुए सीएम ने खुद सीनियर नेताओं के अनुपस्थित होने का जिक्र किया। दरअसल, गोपाल भार्गव और खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह दोनों ही सीएम के बोलने से पहले ही मंच से उठकर चले गए। माना जा रहा है कि दोनों नेताओं को उचित सम्मान न मिलने की वजह से वे आहत हुए और कार्यक्रम छोडक़र बाहर निकल गए। खास बात यह रही कि वे एक ही गाड़ी में सवार होकर गए, जिसमें गोपाल भार्गव आगे की सीट पर और भूपेंद्र सिंह पीछे बैठे थे। यह तस्वीर पूरे दिन सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी रही।
कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री के साथ केवल सागर जिले से मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और सागर विधायक शैलेंद्र जैन ही नजर आए। बाकी बुंदेलखंड के अन्य मंत्री, जैसे लखन पटेल, धर्मेंद्र लोधी और दिलीप अहिरवार को मंच पर जगह तो मिली, लेकिन वे सीएम के ज्यादा करीब नहीं दिखे।
सीएम ने तो भरपूर सम्मान दिया, मगर…
मुख्यमंत्री ने अपने भाषण के दौरान कई बार सीनियर नेताओं को बुलाने की कोशिश की। दीप प्रज्जवलन के समय उन्होंने गोपाल भार्गव का हाथ पकडक़र उन्हें आगे किया था। इसके अलावा, जब सम्मान पत्र बांटे जा रहे थे, तब भी सीएम ने गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और लता वानखेड़े को अपने पास बुलाकर सम्मान दिया।
इधर भार्गव की पोस्ट वायरल- राजनीति ने छीना बहुत कुछ
अपने पोते के साथ फोटो शेयर करते हुए गोपाल भार्गव फेसबुक पर एक पोस्ट कर लिखा, जो काफी चर्चा में है.. आप भी पढि़ए इसे और एक सीनियर नेता की मनोदशा का अंदाजा लगाइए… (पोस्ट जस की तस है)
भौर होते ही बच्चों को तैयार कर स्कूल छोडऩे तथा बाद में वापिस लाने का आनंद और अनुभव बहुत ही अलग होता है, जिसका आज मुझे पहली बार एहसास हुआ। आज सागर में मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में मुझे सम्मिलित होना था, सागर के ही एक स्कूल में मेरा नाति आशुतोष पहली कक्षा में पढ़ता है, सुबह स्कूल जाते समय उसने मुझसे कहा दादू आप सागर जा रहें हैं? लौटते समय मुझे स्कूल से लेते आना, मैंने कहा ठीक है, समय मिला तो तुम्हे साथ ले आऊंगा।
कार्यक्रम से फुर्सत होते ही जीवन में पहली बार बच्चे को लेने स्कूल पहुंचा, स्कूल की छुट्टी होते ही बाहर निकलते मुझे देख आशुतोष मुझसे आकर लिपट गया। मेरे 71 साल के जीवन में यह पहला अनुभव था, क्योंकि मैं कभी अपने पुत्र अभिषेक और तीनो बेटियों को बचपन में एक बार भी कभी स्कूल भेजनें या लेने नहीं गया, न ही कभी साथ घुमाने ले गया, अवकाश या जन्मदिन उस समय कोई जानता ही नहीं था!
राजनीति के कठोर धरातल पर चलते हुए परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं लगभग शून्य हो चुकी थी, इस बीच आज एक हल्का सा पारिवारिक एहसास हुआ। मैं सन 1974 में जय प्रकाश जी के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के माध्यम से राजनीती में आया था तथा इस वर्ष सक्रिय राजीनीति में मुझे पूरे 50 वर्ष हो चुके है। यह भी सही है कि राजनीति और पद यदि आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा देते है तो आपसे उससे कई गुना ज्यादा छीन भी लेते हैं।