Editorial: ऊर्जावान अध्यक्ष की बोझिल टीम…नई पीसीसी…
जैसे तैसे तो दस महीने बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस की 177 सदस्यीय कार्यकारिणी की घोषणा हो पाई, उसका भी विरोध शुरू हो गया है। भाजपा ने भी इसकी जमकर आलोचना की है। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कार्यकारिणी बनाई है या हाईकमान ने, लेकिन एक तो बहुत बड़ी कार्यकारिणी है, दूसरे विधायकों की फौज जिस तरह से भर ली है, लगता नहीं कि वे अपने क्षेत्र के साथ- साथ संगठन को भी समय दे पाएंगे।
मध्यप्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने तंज कसते हुए कहा कि मैंने तो ऐसी कार्यकारिणी नहीं देखी जिसमें 17 तो उपाध्यक्ष और 50 महासचिव हो गए। सीएम ने कांग्रेस को सलाह दी है कि वह अपनी कार्यकारिणी को भंग कर अच्छे और नए लोगों को भर्ती करे। और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ को कार्यकारिणी में न शामिल किए जाने पर चुटकी ली है।
पहले सरसरी नजर डालते हैं प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी पर। अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के करीब 10 महीने बाद घोषित जीतू पटवारी की इस टीम में 17 उपाध्यक्ष, 71 महासचिव, 16 कार्यकारिणी सदस्य, 33 स्थाई आमंत्रित सदस्य और 40 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। अभी इसमें सचिव और नियुक्त किए जाने हैं। इसमें खास बात ये है कि पूर्व सीएम कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव और विवेक तन्खा, मीनाक्षी नटराजन जैसे सीनियर लीडर्स को कार्यकारी सदस्य बनाया गया है। दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को उपाध्यक्ष बनाया गया है। लेकिन कार्यकारिणी में कमलनाथ के बेटे और पूर्व सांसद नकुलनाथ का नाम नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया महासचिव बनाया गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव कार्यकारी सदस्य और उनके भाई सचिन यादव को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
इस टीम में 20 महिलाओं को जगह दी गई है। जो कार्यकारिणी के कुल 177 सदस्यों का करीब 11 प्रतिशत ही है। इनमें 2 उपाध्यक्ष, 12 महासचिव, 1 कार्यकारी सदस्य, 2 स्थाई आमंत्रित सदस्य और 3 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। जबकि राहुल गांधी लगातार महिलाओं के लिए एक तिहाई हिस्से की बात करते आ रहे हैं। जीतू पटवारी ने इसे अच्छी कार्यकारिणी बताते हुए कहा है कि सचिव के पदों पर भी बेहतर लोगों को मौका दिया जाएगा। अभी सचिवों की निुयक्ति नहीं की गई है।
सामान्य तौर पर जब चुनाव का समय आता है, उस समय ही बड़ी कार्यकारिणी बनाई जाती है। लेकिन अभी कोई चुनाव नहीं है, फिर भी जम्बो कार्यकारिणी के गठन की बात गले नहीं उतर पा रही है। इसके साथ ही जिस तरह जीतू पटवारी, उमंग सिंघार और हेमंत कटारे को अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष व उपनेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई, युवा कार्यकर्ताओं को उम्मीद हो गई थी कि अब उनका नंबर भी आ जाएगा। लेकिन इस कार्यकारिणी में पुराने नेताओं को बेलेंस करने का प्रयास ज्यादसा किया गया दिखता है। शायद यही कारण है कि सोशल मीडिया पर कांग्रेस कार्यकारिणी को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी आलोचना शुरू कर दी है।
कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान केवल विधायकों पर गया, जबकि चुनाव जीतने वाले पंचायती राज के जन प्रतिनधियों को एक बार फिर से नकार दिया गया। विधायकों की बात करें तो उनके पास अपनी विधानसभा के अलावा बहुत कम समय बचता है। संगठन को कितना समय दे पाएंगे, कहा नहीं जा सकता। जबकि होना यह था कि जो अधिक समय दे सकते हैं, उन्हें संगठन में महत्वपूर्ण पद देना था। वैसे एक बात तय है कि यह सूची पूरी तरह से नेताओं को संतुलित करने, बड़े नेताओं को संतुष्ट करने वाली अधिक लग रही है।
कांग्रेस में वैसे भी कार्यकर्ता गिने चुने होते हैं, सभी नेता बन जाते हैं। और नेता जमीन की तरफ कम ही देखता है। ऐसे में संगठन प्रदेश में सत्ता की वापसी की जमीन कैसे तैयार कर पाएगा, यह सवाल खुद कांग्रेस के लोग उठा रहे हैं। भाजपा के पास न केवल उसका मजबूत संगठन है, अपितु उसके साथ संघ के आनुषांगिक संगठनों के मैदानी कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज है, जिनके सहारे वह हर घर में पहुंचने का प्रयास करती है।
कांग्रेस में ऐसी परंपरा ही नहीं रही। संगठन को हमेशा दोयम दर्जे पर रखा गया है। यही कारण है कि नेताओं के पास अपना समानांतर संगठन बन जाता है। उनके अपने समर्थक होते हैं, और उन्हीं के दम पर वह राजनीति भी करता है। जब भी कांग्रेस टूटती है या नेता पार्टी छोड़ते हैं, तो उनके इलाके में जैसे कांग्रेस शून्य हो जाती है। कांग्रेस के पास कोई संगठन नहीं है। ऐसे कार्यकर्ता बहुत कम ही बचे हैं, जो कहते हों कि वे कांग्रेसी हैं। और जो अपने आप को कांग्रेसी कहते हैं, उन्हें न तो टिकट दिया जाता और न ही संगठन में कोई पद। फिर भी, देखते हैं कि ऊर्जावान जीतू पटवारी की भारी-भरकम टीम की परफार्मेंस क्या रहती है?
– संजय सक्सेना