Editorial: MP में आखिर कौन से शार्क हैं, जो दूसरों का हिस्सा हड़प रहे हैं..?

मध्य प्रदेश में वो कौन से शार्क हैं, जो दूसरों का हक लील रहे हैं,  झपट रहे हैं? ये छोटी मछलियां नहीं हैं, शार्क हैं। शार्क … ऐसी मछली, जो विशालकाय होती है और मछलियों का हिस्सा भी खा जाती है। ये बात कोई और नहीं कह रहा है, ये विकास के साथ कंगाली की खाई की तरफ बढ़ रहे मध्य प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के शब्द हैं। और जब मुखिया कह रहा है तो बेवजह नहीं।

असल में मुख्य सचिव अनुराग जैन ने विभागाध्यक्षों से कहा कि आप लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। लेकिन यह भी पता है कि आपके यहां ‘शार्क’ बैठे हैं। अपन काम कर रहे हैं और पैसा उनकी जेब में डल रहा है। पारदर्शिता लाइए। जनता के प्रति गंभीर होना होगा। जैन शुक्रवार को सभी विभागाध्यक्षों और निगम-मंडल के एमडी की बैठक ले रहे थे।
पहले इस खबर पर नजर डालते हैं। बैठक में महिला बाल विकास कमिश्नर सूफिया फारूकी वली ने पोषण आहार की जानकारी देते हुए कहा कि बच्चे कम आते हैं। अटेंडेंस कम हो रही है। इस पर जैन ने कड़ा रुख अपनाया। मुख्य सचिव ने बाकी अधिकारियों को साफ कर दिया कि सलाह देना आसान काम है। नोट बनाकर उसे लागू कराना चाहिए। कौन सी समस्या है जो आप सुलझा नहीं सकते। आप स्कूल के टॉपर होंगे, नगर के टॉपर होंगे, आईएएस बने हैं।
मुख्य सचिव ने हेल्थ और स्कूल के कामकाज को लेकर असंतोष जताया। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे सभी सरकार के महत्वपूर्ण अंग हैं और योजनाओं का सफल क्रियान्वयन तथा नियमों का पालन सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है। जैन ने यह भी निर्देशित किया कि एक जनवरी 2025 तक सभी विभागों में ई-ऑफिस प्रणाली लागू की जाए, जिससे पारदर्शिता और गतिशीलता बढ़ेगी।
जैन ने शहरीकरण में विकास और माइनिंग क्षेत्र में आगे बढऩे की आवश्यकता पर जोर दिया, यह बताते हुए कि ओडिशा में माइनिंग इंडस्ट्री का कारोबार 36 हजार करोड़ रुपये है। उन्होंने मध्य प्रदेश में भी इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं का उल्लेख किया। मुख्य सचिव ने सभी सुझाव मांगे तो पिछड़ा वर्ग विभाग में आईएएस अफसर कुमार पुरुषोत्तम ने कहा कि उनके पास काम नहीं है। पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम जैसी संस्था तो बंद होनी चाहिए।
आईएएस अफसर भास्कर लक्षकार ने कहा-निगम-मंडलों में फाइनेंसिंग की हालत खराब है। हाथों से कैशबुक भरी जा रही है। खाद्य एवं आपूर्ति निगम में तो 2016 से बैलेंसशीट फाइनल नहीं हुई है। इनकी वित्तीय स्थिति ऑनलाइन हो। एमपीएसईडीसी इस पर काम करे। एमपी आरडीसी के एमडी अविनाश लवानिया ने कहा- वे इंटीग्रेटेड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सिस्टम बना रहे हैं। सीएस ने कहा- कब तक कर लेंगे। इससे क्या रिजल्ट मिलेगा। एक्साइज कमिश्नर अभिजीत अग्रवाल ने सूचना प्रोद्यौगिकी से जुड़े विषयों पर सुझाव दिए तो जैन ने कहा, आप आबकारी में क्या कर रहे हैं, आपको तो आईटी में होना चाहिए।
मुख्य सचिव का कहना था कि किसी की भी सिफारिश होती है, तो हम उसे आगे बढ़ा देते हैं। सीएम ऑफिस से आई नोटशीट पर भी हम वैसा ही रिकमडेंशन डालते हैं। कम से कम इतना तो लिखो कि क्या सही है, क्या गलत?  सीधी बात है, मुख्य सचिव की मंशा यह है कि अधिकारी केवल डाकिये का काम न करें। चिट्ठी आई और उसे डिलीवर कर दिया। हर नोटशीट को पढऩा भी होगा और यह भी देखना होगा कि उसके अनुसार काम हो सकता है या नहीं।  सामान्य तौर पर अधिकारी मंत्री या सीएम के यहां से आने वाली नोटशीट को आगे ही बढ़ा देते हैं।
मुख्य सचिव अनुराग जैन अपनी इसी तरह की कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं। पीएमओ तक का अनुभव रखने वाले अनुराग जैन की मध्यप्रदेश में वापसी के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि अब प्रशासन में कसावट आने वाली है। और उन्होंने इस पर अमल भी शुरू कर दिया है। उन्होंने अब तक जितनी बैठकें की हैं, सभी में अधिकरियों को एक संदेश साफ दिया है कि वे अपनी योग्यता और कुशलता का प्रयोग करें। आंखें बंद करके काम नहीं करना है। जहां भी कमजोरी दिखाई दे, वहां मामला ठीक किया जाए।
मंत्रालय से लेकर मैदानी प्रशासनिक हलकों तक में मुख्य सचिव का यह संदेश जा चुका है। हालांकि अभी मुख्य सचिव के हिसाब से कुछ परिवर्तन होने की बात चल रही है। मंत्रालय से लेकर जिलों तक में आवश्यकता के अनुसार फेरबदल की कवायद भी चल रही है। राज्य में प्रशासनिक कसावट की आवश्यकता तो लंबे समय से महसूस की जा रही थी, अब उसे व्यवहार में लाया जा रहा है। यह प्रदेश की सेहत के लिए बेहतर संकेत माने जा सकते हैं।
वित्तीय प्रबंधन में माहिर अनुराग जैन से ऐसी ही उम्मीद की जा रही थी। हो सकता है कि इस कसावट से कुछ लोगों को दिक्कत भी हो, लेकिन कुल मिलाकर यह प्रदेश के हित में ही होगा। और हां, सरकार का पैसा शार्क की तरफ न जाए, उसका सदुपयोग होगा, इसकी भी पूरी उम्मीद है।
– संजय सक्सेना

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