फोगाट की तथा- कथा
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सुदेश वाघमारे की वाल से
जो लोग जीवन में थोड़ा बहुत भी खेले हैं (और लगभग सभी खेले हैं ) वह जानते हैं कि किसी भी खेल में पसीना सिर से निकलकर तशरीफ के जोड़ से होता हुआ एड़ी तक चुचुआता है और ऐसा एक नहीं हज़ारों बार होता है तभी किसी खेल में थोड़ा सा परफेक्शन आता है। शीर्ष खिलाड़ियों का शरीर ही नहीं दिमाग़ भी लोह-स्नायुओं में ढल जाता है।
              विनेश फोगाट को लेकर लोग जितनी अपरिपक्व, भावुक और टेसुए बहाती  लिजलिजी कवितानुमा बातें कर रहे हैं वे प्रसूति वैराग्य है। मुझे तीन बार शक्तितोलन की एशिया प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला है। तीन बार मैंने अपना वजन ७५ किलो, ८२.५ किलो और ९० किलो की कैटेगरी में करके कम्पीटिशन किया है। इसमें खाने पर नियंत्रण के साथ ही-
१. दिन भर थूकते(spitting) रहना पड़ता है।
२. नहाना बंद करना होता है और सोना बाथ केवल भाप का लेना पड़ता है।बीच बीच में रस्सी भी कूदना होता है।
३. कुछ डाईयूरेटिक लेना पड़ता है जो परीक्षण में न आयें और पेशियों से पेशाब के रास्ते पानी निचोड़ दें।हालाँकि इसमें कमजोरी बहुत आती है।
वजन बढ़ाना भी इतना ही मुश्किल होता है। उसमें शहद, केला और पानी का इस्तेमाल होता है जो वोमिट के रास्ते बाहर निकलता है।
कम वजन की कैटेगरी में मुक़ाबला तुलनात्मक रूप से कम होता है। एक बार अधिकृत वजन होने के बाद आप खा-पी सकते हो,मगर इससे रुधिर का प्रवाह पेट की तरफ़ हो जाता है इसलिए खिलाड़ी ज़्यादा कुछ नहीं खाते।
अधिकृत वजन होने के पहले आप अपना वजन मशीन पर बारम्बार कर सकते हो और उसे कम या ज्यादा कर सकते हो परन्तु एक निश्चित समय पर आपको अधिकृत वजन देना होगा और उसे कम ज्यादा नहीं कर सकते।वजन करने वाली जूरी अलग होती है। सामान्य रूप से वजन अण्डरगर्मेंट में होता है परन्तु कभी- कभी जूरी मादरजात नग्न भी करवाकर वजन करते हैं और ऐसा नियमों में है। फोगाट के मामले में ऐसा ही हुआ होगा। इससे खिलाड़ी को फायदा ही मिलता है।
              शरीर की एक प्रवृत्ति होती है कि पिछले कई सालों से जो आपका स्थिर वजन रहता है वह उस ओर लौटना चाहता है।यदि फोगाट का वजन ५५ किलो रहा होगा तो उसी ओर जाना चाहेगा। इसे तकनीकी रूप से ‘यो- यो इफेक्ट’ कहते हैं। फोगाट ने एक दिन पहले तीन मुश्किल मुकाबले(bout) खेले इसलिये उनमें भी वजन कम होना था। मगर बीच-बीच में ली गई कैलोरीज शायद वजन बढ़ा गईं। पचास किलो वाले को आधा किलो घटाना भी पहाड़ चढ़ने जैसा है।
             मैडल मिलने से आपकी टीम का कोई साथी खुश नहीं होता। सब चाहते हैं यह भी गर्त में गिरे। टीम स्पिरिट की बात वही करते हैं जो किसी टीम में नहीं रहे।जिन्हें इस बात पर भरोसा न हो वो क्रिकेटर प्रसन्ना की किताब ‘वन मोर ओवर’ पढ़ें।कप्तान ने उन्हें एक और ओवर नहीं दिया क्योंकि वे विश्व रिकॉर्ड तोड़ सकते थे। फोगाट के साथ  वाली टीम डायटीशियन-डॉक्टर-मैनेजर आदिके विरुद्ध त्वरित टिप्पणी करना वो भी बिना सबूत के जल्दबाजी है। मगर घटना असाधारण है। ये लोग अन्य विकल्पों पर जा सकते थे जो रजत के रास्ते पर ले जाते।
       ओलम्पिक के नियमों पर टिप्पणी मत करिये। वहाँ मंडी की रानी जैसे घटिया और बिजभूषण जैसे गलीज नहीं हैं।

वो तो खुश्बू है हवाओं में बिखर जायेगा
मसअला फूल का है फूल किधर जायेगा
आखिरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा।
-परवीन शाकिर

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