उत्तर प्रदेश में संगम के तट पर प्रयागराज में महाकुम्भ के रूप में पृथ्वी का सबसे बड़ा धार्मिक समागम चल रहा है। यह भले ही धार्मिक समागम है, परंतु रसद और बुनियादी ढांचे से लेकर भीड़-प्रबंधन और सुरक्षा तक की मिसाल देता है। वहीं महाकुम्भ मानवता की एक साझा उद्देश्य की दिशा में एक साथ काम करने की अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है। यह उपलब्धि एकता, समन्वय और प्रतिबद्धता की शक्ति का प्रमाण है, इसका मूल आधार धर्म और आस्था है।
महाकुम्भ मात्र एक धर्मावलंबियों की भीड़ नहीं है और न ही इसे एक मेला कहा जा सकता है, अपितु यह बताता है कि जब मनुष्य साझा लक्ष्य से प्रेरित होकर आगे बढ़ता है तो वह क्या कुछ हासिल कर सकता है। इस समागम को सम्भव बनाने के लिए हजारों सरकारी अधिकारी, स्वयंसेवक, सुरक्षाकर्मी, सफाईकर्मी अथक परिश्रम करते हैं। इसे हम अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भी समझ सकते हैं और यह भी सोच सकते हैं कि अगर हम मनुष्य आध्यात्मिक समागम के लिए एकजुट हो सकते हैं तो जलवायु संकट या पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
पर्यावरण के चितेरे इस मुद्दे को उठा रहे हैं, तो यह गलत नहीं, अपितु हमारे धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक है। देखा जाए तो धर्म हमें केवल किसी की भक्ति का मार्ग ही नहीं दिखाता्र हमें जीना सिखाता है। हमें मानवता सिखाता है। यह सिखाता है कि हमें अपनी भूमि, जल, वायु से कैसे जुड़े रहना है। उनके लिए हमारी क्या प्रतिबद्धताएं होना चाहिए। तभी तो कहा जा रहा है कि पर्यावरण संरक्षण हमारी दुनिया का आधुनिक धर्म बन सकता है और बनना भी चाहिए। धर्म की तरह, इसके लिए साझा मूल्यों की आवश्यकता है- करुणा, प्रबंधन और प्रकृति के प्रति सम्मान।
पर्यावरण की बात करें तो इसकी सुरक्षा के लिए ऊर्जा की खपत घटाना, जल-संरक्षण, पेड़ लगाना और कचरे का जिम्मेदारी से प्रबंधन आवश्यक हैं। पवित्र नदी और प्राकृतिक संसाधन दोनों है। गंगा, यमुना, सरस्वती से लेकर नर्मदा, ताप्ती, बेतवा, अलकनंदा, रावी, चिनाब, ब्रह्मपुत्र और अन्य तमाम नदियों की रक्षा आध्यात्मिक कार्य ही नहीं, पर्यावरणीय आवश्यकता भी है। महाकुम्भ के लिए जिस तरह से हम गंगा सहित तीनों नदियों की सफाई करते हैं, उन्हें लगातार साफ रखने का प्रयत्न करते हैं, ये प्रयास हर समय होते रहना चाहिए। हम नदियों को पवित्र या पूज्य इसलिए मानते हैं, इन्हें मां का दर्जा इसलिए देते हैं, क्योंकि ये हमारा पालन-पोषण करती हैं। ये जीवनदायिनी हैं।
तो ये पर्यावरण का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। असल में जलवायु सुधार की जरूरत पहले कभी इतनी नहीं थी, जितनी अब है। वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया है। दुनिया भर में दुनिया कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन हर साल बढ़ते जा रहा है। पिछले वर्ष 40 अरब मीट्रिक टन से ज्यादा उत्सर्जन हुआ। इस कारण दुनिया भर में आपदाओं की संख्या और तीव्रता भी बढ़ती जा रही।
कल रात को ही अमेरिका के राष्ट्रपति की शपथ लेने के साथ ही ट्रंप ने एक बार फिर देश को ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने का ऐलान करके एक प्रकार से वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने के लिए दुनिया भर के प्रयासों को झटका पहुंचाया है। इससे एक बार फिर अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगियों से दूर हो जाएगा, यह एक पहलू है, परंतु सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जलवायु संरक्षण के लिए जो प्रयास दुनिया भर में चल रहे हैं, उन प्रयासों में निश्चित तौर पर कमी आ जाएगी।
हालांकि अमेरिका के लॉस एंजेलेस में लगी भीषण आग से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। इस समय धरती पर 2 अरब से ज्यादा लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। साथ ही जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण पिछले साल ही 300 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है। ये मुद्दे अमेरिका के लिए भी महत्वपूर्ण हैं और बाकी दुनिया के लिए भी। ट्रम्प से ऐसी ही उम्मीद थी, लेकिन बाकी विश्व को इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्कयता है।
अभी तो हमारा महाकुम्भ चल रहा है। इसकी ओर देखें और सीखें कि बड़े पैमाने पर सहयोग सम्भव है। अगर हम लाखों लोगों को गंगा में डुबकी लगाने के लिए संगठित कर सकते हैं तो हम अपनी नदियों को स्वस्थ करने, हवा को साफ करने और जंगलों की रक्षा करने के लिए क्यों नहीं इक_ा हो सकते? हालांकि यह धर्म के नाम पर ही होता है और हो सकता है, फिर भी धर्म के नाम पर ही हम अपने पर्यावरण को बचाने की पहल तो कर ही सकते हैं। हम जिन नदियों को अपनी मां कहते हैं, उन्हें स्वच्छ रखने के प्रयास करें। उनका जल जितना निर्मल होगा, हमारा जीवन उतना ही लंबा और बेहतर होगा। जिस धरती को मां कहते हैं, उसकी उर्वरा शक्ति को कम होने से बचाना हमारा कर्तव्य है। जिन वृक्षों को हम अपना बंधु कहते हैं, उनकी रक्षा करना भी हमारा धर्म होना चाहिए।
कुल मिलाकर महाकुम्भ को यदि हम पर्यावरण की रक्षा का एक मानक बना लें, तो हम जलवायु परिवर्तन का सामना आसानी से कर पायेंगे। हम अपने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लें। सहयोग की भावना को अपनाएं। परिवार की इकाई को धर्म और पर्यावरण से जोड़ें। मानवता की शिक्षा लें। हमारा महाकुम्भ सफल होगा।
– संजय सक्सेना