पिछले सात सालों से एक्स आईएएस अफसरों + उनके द्वारा पोषित समाज से कटे कथित वामी लिक्खाडो की एक संस्था सोसाइटी फॉर कल्चरल एंड एनवायरनमेंट, द्वारा भोपाल के भारत भवन में भोपाल लिटरेरी फेस्टिवल (BFL) का आयोजन किया जाता है। शुरुआती साल में इस सोसाइटी ने कुछ अच्छे कार्यक्रम किये किंतु शीघ्र ही अपनी ‘सत्ता मुगल’ वाली औकात पर आ गई। चूंकि इन्हें मालूम था कि ऐसे आयोजनों के लिये पैसा कहाँ से इकठ्ठा किया जाता है इसलिये धनवर्षा में कोई कमी नहीं होती। इनके प्रायोजकों की सूची देखिए तो पता चल जायेगा कि लक्ष्मी कहाँ से आती है। अब इनके अटपटे विषय देखिये- वाइल्ड वीमेन ऑफ इण्डिया (राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सोनिया गांधी की टिप्पणी पुअर वीमेन की याद आती है), भीष्मपितामह ऑन बेड ऑफ़ एरोज़, द लूर ऑफ ओल्ड ट्यून्स, नेचर राइटिंग एंड इट्स केथार्टिक यानि हर विषय को इतना जटिल बनाओ कि यदि कोई सुनने वाला चला आये तो उससे हड़प्पा की उस लिपि में ‘बात’ करो जो आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
इन कार्यक्रमों में दर्शक आते हैं श्रोता नहीं। ऊपर से इसे सोसाइटी ने नॉलेज कुम्भ का नाम दे दिया और पाप छिपाने एक प्रबुद्ध मंत्री और एक साहित्यकार को भी आमंत्रित कर लिया। कई सत्र तो ऐसे थे कि मंच पर पाँच वक्ता थे और श्रोताओं में चार। वे पाँच भी एक- दूसरे की पीठ खुजाते रहे।भीड़ जैसा कुछ दिखाने स्थानीय नामी एलीट संस्थाओं के छात्रों को भाड़े पर(?) लाया गया था जिनके लिये साहित्य काला अक्षर भैंस बराबर था।
ऐसा कार्यक्रम जो स्थानीय जन को न जोड़ सके, स्थानीय भाषा में न हो सके, स्थानीय भावनाओं को अभिव्यक्त न कर सके वह चूँ- चूँ का मुरब्बा हो सकता है साहित्य नहीं। सोसाइटी अपने इस उद्देश्य में पूरी सफलता प्राप्त कर गई है। आयोजकों को कच्चे धागे से हाँथ बांधकर भोपाल के बड़े तालाब की परिक्रमा कर प्रायश्चित करना चाहिये कि लाखों रुपया और समय ऐसे कार्यक्रम पर बरबाद कर दिये जिसे कोई कभी याद भी नहीं करना चाहेगा।
भूख के अहसास को शेरो सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
मुझको सब्रो ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरण तक ले चलो
ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं गैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो।
– सुदेश वाघमारे की वाल से साभार