विनम्र श्रद्धांजलि
भोपाल में जनसंघर्षों के अगुआ रहे
अब्दुल जब्बार का पुष्य स्मरण

जन्म 01 जून 1957
मृत्यु 14 नवंबर 2019
अलीम बजमी
भोपाल। गैस पीड़ितों की तकलीफ को अपनाकर खुद का दर्द भूलने वाले अब्दुल जब्बार भाई की बरसी है। 14 नवंबर की रात को ही उन्होंने फानी दुनिया को अलविदा कहा था। मृत्यु पूर्व तक भोपाल गैस पीड़ितों को वाजिब मुआवजा और इंसाफ दिलाने उनका संघर्ष जारी था। आखिरी लम्हों में उन्हें यादगार-ए-शाहजहांनी पार्क की काफी फिक्र थी। नैतिक  मूल्यों के पतन, सामाजिक मूल्यों में गिरावट, बढ़ती सांप्रदायिकता को लेकर वे चिंतित रहे। भोपाल की ऐतिहासिक इमारतों, शहरी विकास,  बड़ा तालाब, वीआईपी रोड, हमीदिया रोड, फ्लाईओवर जैसे मुद्दे पर वे काफी मुखर रहते। हांलाकि उनके संघर्ष की दास्तान 35 बरस की है।
ये कहानी उस शख्स की है, जिसने भोपाल गैस त्रासदी में अपने माता-पिता और बड़े भाई को खोया था। इस निजी क्षति के खिलाफ सामूहिक संघर्ष का रास्ता चुना। वे देश-दुनिया में भोपाल गैस पीड़ितों के संघर्ष का चेहरा रहे। वे स्वाभाविक रूप से सत्ता विरोधी थे। किसी भी दल की सरकार हो। वे हमेशा गैस पीड़ितों की आवाज बुलंद करते। वे  भोपाल में जनसंघर्षों के अगुआ रहे। अपने निजी हितों को सामाजिक एवं सेवा के सरोकारों से दूर रखा। इंसाफ के लड़ाका की शक्ल में वे अंतिम सांस तक दूसरों के मददगार ही बने रहे।
भोपाल गैस कांड के मुद्दे पर महिलाओं को संगठित करके भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन बनाया। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को आंदोलन का बड़ा रूप दिया। वे संघर्ष के बूते पर 5 लाख 76 हजार गैस पीड़ितों को मुआवजा और यूनियन काबाईड के मालिकों के खिलाफ कोर्ट में मामला दर्ज कराना उनकी सफलता का  बड़ा कारनामा है। उनके संघर्ष की बदौलत भोपाल के गैस पीड़ितों को मुआवजा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मिली। लगभग 3000 महिलाओं को वोकेशन ट्रेनिंग दिलाई। अपने सेवा कार्यों में मिली उपलब्धियों को लेकर उनमें अहंकार नहीं था। न ही अपने संघर्ष को लेकर वे कभी अहसान जताते और न कभी इतराते। न ही उनमें घमंड था।
अल मस्त, फक्कड़ मिजाज के जब्बार भाई आखिरी वक्त में सुप्रीम कोर्ट में गैस पीड़ितों के आंकड़े और मुआवजे को लेकर लंबी लड़ाई लड़ रहे थे। उनका कहना था कि गैस पीड़ितों को मुआवजा कम मिला है। गैस पीड़ितों के पक्ष में सेवा निवृत सरकारी अफसरों, विधि विशेषज्ञों, सामाजिक एवं जन संगठनों के पदाधिकारियों, डॉक्टरों से उनका विमर्श निरंतर चलता। उनके संघर्ष और सरोकार का दायरा काफी व्यापक था।
यद्यपि यूका से 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात रिसी मिथाइल आइसोसायनाइड यानी ज़हरीली गैस के वे भी अन्य लाखों लोगों की तरह शिकार हुए थे। दूसरों के संघर्ष के लिए अपनी ज़िंदगी का सुख-चैन भूलने वाले जब्बार भाई अपनी सेहत को लेकर कभी संजीदा नहीं रहे। अपने अंतिम समय तक वे गैस पीड़ितों के मुआवजे, आर्थिक एवं सामाजिक पुनर्वास और चिकित्सकीय सुविधाओं के लिए लगातार लड़ते रहे। अप्रैल 2019 में ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गैस पीड़ितों के लंबित पड़े मामलों पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के नाम 5,000 से अधिक पोस्टकार्ड भेजे थे। वर्ष 2017 में उनकी एंजियोग्राफी भी हुई थीं।
वर्ष 2018 में उनके बाएं पैर में एक चोट लगी, जिसने गैंगरीन का रूप ले लिया। इसके इलाज के सिलसिले में वे कमला नेहरू गैस राहत अस्पपताल में भर्ती हुए। कुछ दिन यहां इलाज के बाद वे डिस्चार्ज हो गए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उनकी सेहत बिगड़ने पर वे भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र में भी भर्ती रहे। बाद में उन्हें मालीपुरा स्थित चिरायु में दाखिल कराया गया। अलग-अलग अस्पतालों में इलाज कराते -कराते और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते वे आर्थिक रूप से तंग हाल हो गए।  गुरबत के चलते शहर के राजेंद्र नगर के अपने दो कमरों के पुराने मकान में ही बने रहे। उनके आखिरी वक्त में गिरती सेहत के चलते पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह की पहल पर तत्कालीन राज्य सरकार ने इलाज के लिए उन्हें मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट भेजने की तैयारी की थी। 15 नवंबर की सुबह उन्हें एयर एम्बुलेंस से मुंबई जाना था, लेकिन इसके पहले ही 14 नवंबर की रात करीब 10:15 बजे वे चल बसे। भारत सरकार ने उन्हें 2020 में मरणोपरांत पद्मश्री से जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 2019 में सामाजिक सेवा के लिए राज्य के सर्वोच्च इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया था। जब्बार भाई को घर के नजदीक स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्देखाक किया गया। 
जब्बार भाई को मैं अपनी खिराजे अकीदत पेश करता हूं।

फेसबुक वाल से साभार

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