Vishleshan

Editorial: आत्महत्याओं का ग्राफ

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दो बच्चियों के पिता ने डिप्रेशन के चलते आत्महत्या कर ली। बच्चे को मोबाइल नहीं दिया तो चौथी मंजिल से कूद गया…। इस तरह की दो-चार खबरें रोजाना पढऩे-सुनने को मिल जाती हैं। क्या ये आत्महत्याओं का दौर चल रहा है…? सवाल अजीब से अवश्य लगेगा, लेकिन ऐसा हो रहा है। ऐसा लगता है कि लोगों के संघर्ष की क्षमता कम होती जा रही है। ऐसा लग रहा है कि लोग जरा-जरा में उत्तेजित होकर कोई भी कदम उठाने लगे हैं।
कारण कुछ भी हो, लेकिन आज विश्व आत्महत्या निषेध दिवस पर जो आंकड़े पढऩे को मिले वो चिंताजनक हैं। एनसीआरबी के अनुसार 2022 के डेटा के अनुसार देशभर में कुल 1 लाख 70 हजार लोगों ने आत्महत्या की है। वहीं मध्य प्रदेश में इसका आंकड़ा 15 हजार 386 है। देश के राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, जहां लोग सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। इससे पहले तमिलनाडु और महाराष्ट्र हैं। इसके अलावा प्रदेश के चार सबसे बड़े शहरों में इंदौर पहला और भोपाल दूसरे स्थान पर है।
साल 2022 में 1 लाख 70 हजार लोगों ने आत्महत्या की है, यानी हर 184 सेकेंड में एक व्यक्ति सुसाइड कर रहा है। वहीं एक घंटे में 20 लोग आत्महत्या कर चुके होते हैं। जब एक सुसाइड करता है तब उस समय 20 लोग आत्महत्या का प्रयास कर चुके होते हैं। उसी समय 200 लोग इस बारे में सोच रहे होते हैं। वहीं विश्व में 7 लाख लोगों की जान सुसाइड की वजह से जाती हैं। इसमें भारत की दर 12 प्रतिशत से अधिक है। और हमारा देश आत्महत्या के मामले में दुनिया में संभवत: सबसे आगे निकल गया है।
मध्य प्रदेश में सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी की बात कही गई थी और यहां लाखों रुपए खर्च करके एक आनंद विभाग भी खोला गया था। उस विभाग ने कागजों में बहुत कुछ किया होगा, लेकिन मैदान में कुछ कार्यक्रमों के माध्यम से कतिपय संस्थाओं को अनुदान देने के अलावा कुछ नहीं किया।  हम प्रदेश की ही बात करते हैं। 2023 के शुरूआती छह महीनों में प्रदेश में 7 हजार से ज्यादा लोगों ने अपना जीवन त्याग दिया था। यानी प्रदेश में हर दिन करीब 40 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। आत्महत्या के जो मुख्य कारण सामने आए हैं, उनमें घरेलू कलह से  32 प्रतिशत, विवाह से संबंधित 4.8 प्रतिशत, लंबी बीमारी के कारण 20 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें दैनिक मजदूर 25.6 फीसदी, जो सबसे ज्यादा है। इसके अलावा आत्महत्या करने वालों में गृहिणी 14.1 फीसदी, व्यवसायी 12.3 फीसदी, नौकरीपेशा 9.7 फीसदी, बेरोजगार 8.4 फीसदी, छात्र 8 फीसदी,
किसान 6.6 फीसदी, रिटायर्ड 0.9 फीसदी, अन्य 14.4 फीसदी रहे हैं।
मनोचिकित्सकों का दावा है कि भारत जैसे विकासशील देशों में 50 प्रतिशत मामले मेंटल हेल्थ से जुड़े होते हैं। इसमें ज्यादातर वर्ग 20 से 50 साल का है, जिसमें सबसे ज्यादा इसके रिस्क में है। बाकी के मामले में दूसरे कारण जिम्मेदार होते हैं, इसकी रोकथाम पर सभी पहलुओं को ध्यान रखना होगा। संवाद के तरीके को बदलना होगा, हमें देखना होगा आत्म हत्या का प्रयास है सिर्फ अटैंशन सीकिंग नहीं है, यहां किसी व्यक्ति को सहायता चाहिए। 15 से 40 साल के लोगों के कारणों की बात की जाए तो आपाधापी भरा युग, बदलता लाइफ स्टाइल और सोशल मीडिया के कारण आत्म हत्या की दर में वृद्धि हुई है।
यहां बात आंकड़ों से या रोज आ रही खबरों से डरने की नहीं हो रही है। यह केवल सरकार की चिंता का विषय भी नहीं है। यह सरकार के साथ ही पूरे समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। कोचिंग संस्थानों के बच्चों में बढ़ती आत्महत्या दर अगर एक अलग विषय है, तो व्यापारी वर्ग और किसानों की आत्महत्या अलग मुद्दा। इसी तरह गृहणियों और कामकाजी महिलाओं के लिए अलग कारण हैं और बच्चों, खासकर किशोर वय के लोगों में अलग। युवा वर्ग मिले-जुले कारणों से आत्महत्या कर रहा है।
इनमें अधिकांश कारण सामाजिक, पारिवारिक या व्यावसायिक होते हैं। नौकरी वाले मामलों को व्यावसायिक में गिना जा सकता है। कहीं न कहीं परिवारों के विघटन और समाज में आ रही विभिन्न विकृतियां एक बड़ा कारण हैं, जिस पर हम कतई ध्यान नहीं दे रहे हैं। यदि बच्चा मोबाइल न मिलने या टीवी देखने से मना करने पर आत्महत्या जैसा कदम उठा रहा है, तो यह बच्चे की नहीं, पूरे परिवार की समस्या है और इसके लिए वही जिम्मेदार होगा। हम इसे संवेदनशीलता नहीं, असहनशीलता कहूेंगे। सबसे पहले तो हमें घरों में माहौल बदलना होगा। उन्हें परिवार बनाने की कोशिश करनी होगी।
आत्महत्या के लिए विस्तार से शोध की आवश्यकता है। और उन कारणों को तलाश कर सरकार के साथ ही सामाजिक और स्वैच्छिक संगठनों को एकजुट होकर आत्महत्या रोकने के लिए प्रयास करने होंगे। हर मामले में काउंसिलिंग की बात की जाती है, लेकिन इसकी शुरुआत हमें अपने-अपने घर से ही करनी होगी। परिवार और आस-पड़ौस का माहौल बदलना होगा। संवाद की सीमाएं थोड़ा बढ़ानी होंगी। पुराना समय तो वापस नहीं आ सकता, लेकिन हम हर मुद्दे पर यदि किसी से या कुछ लोगों से खुलकर संवाद कर लेते हैं, तो कठिन से कठिन समस्याओं का हल निकल आता है। नहीं भी निकलता तो कम से कम आत्महत्या जैसे खयाल तो टल ही जाते हैं। तनाव के बजाय परिवार में सहज और हंसी-खुशी का माहौल बनाने के प्रयास किए जाएं, तो बहुत राहत मिल सकती है।
– संजय सक्सेना

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