देश में भले ही मशहूर बॉलीवुड फिल्म नायक जैसा कोई नायक नहीं दिखता, लेकिन इस फिल्म का ये डायलॉग अवश्य हमारी राजनीति पर लागू हो रहा है- ऐसी प्रॉब्लम सॉल्व नहीं करनी चाहिए, बल्कि इनका इश्यू बनाकर राजनीति खेलनी चाहिए… वो चिल्लाते हैं तो चिल्लाने दो, पहले चिल्लाएंगे, बाद में थक जाएंगे फिर घर चले जाएंगे…। संसद से लेकर हर जगह राजनीतिक दलों की नूरा कुश्ती चलती रहती है और आम आदमी बस ऐसे ही देखता रह जाता है। एक समस्या हल नहीं हो पाती, तब तक दूसरी आ जाती है।
राजधानी दिल्ली का उदाहरण सामने है। यहां हाल ही में बारिश से जहां-तहां जलभराव हो गया, सडक़ें पानी से लबालब हो गईं। लंबा जाम देखने को मिला। कई हादसे हुए। बारिश जनित घटनाओं में 10 लोगों की जान चली गई। मयूर विहार के फेस-थ्री में खुले नाले में गिरने से हुई मां-बेटे मौत हो गई। इस मामले में किसी की जवाबदेही तय नहीं की जा रही है। देश की राजधानी में खुले नाले में गिरने से मौत कोई छोटी घटना नहीं है। इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की बजाय सरकार और प्रशासन तू-तू-मैं-मैं का खेल करने में लग गए। आम आदमी पार्टी सरकार एलजी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है, एलजी एमसीडी को जिम्मेदार बता रहे हैं, बीजेपी आम आदमी पार्टी को घेर रही है और कांग्रेस, बीजेपी और आप पर निशाना साध रही है। लेकिन पीडि़त परिवार को न्याय दिलाना तो दूर की बात कोई जवाबदेही तक तय नहीं कर पा रहा। सब अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं।
दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी मां-बेटे की दुखद मौत के मामले राजनिवास पर विरोध प्रदर्शन करेगी। मजेदार बात ये है कि आम आदमी पार्टी की न सिर्फ दिल्ली में सरकार है बल्कि अब एमसीडी भी उसी के पास है। नालों की साफ-सफाई, सीवेज, ड्रेनेज वगैरह की जिम्मेदारी सीधे तौर पर एमसीडी और दिल्ली सरकार की है। लेकिन जवाबदेही तय करके कार्रवाई करना और आगे ऐसे हादसों से बचने के उपाय करने को छोडक़र आम आदमी पार्टी भाजपा और एलजी को घेरने में लगी है। गौर करने वाली ये है कि कुछ दिन पहले ही ओल्ड राजेंद्र नगर में हुए हादसे में तीन छात्रों ने अपनी जान गंवा दी थी। इसके बाद भी सरकार और प्रशासन की कान पर जूं नहीं रेंगा। इसी का नतीजा है कि राजधानी में नाले में गिरकर मां-बेटे की दुखद मौत हो गई।
दूसरी ओर एलजी ऑफिस से भी इस मामले में बयान सामने आया है। मां-बेटे की मौत पर एलजी ऑफिस ने आप नेताओं पर भ्रामक बयानबाजी करने का आरोप लगाया है। एलजी ऑफिस ने कहा है कि नाले में जिस जगह ये हादसा हुआ, वह डीडीए नहीं, बल्कि दिल्ली नगर निगम के नियंत्रण में है। सांसद संजय कुमार, विधायक कुलदीप कुमार, पार्टी प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ और आम आदमी पार्टी ने गुरुवार को गलत, भ्रामक और स्पष्ट रूप से अनुचित बयान जारी किए हैं। एलजी ऑफिस डीडीए का पक्ष रखता हुआ दिखा। लेकिन जवाबदेही एलजी ऑफिस ने भी तय नहीं की। एलजी की भूमिका तो वैसे भी पूरी तरह से भाजपा के एजेंट जैसी ही है। जो निर्देश मिलता है, उसी के हिसाब से वो चलते हैं।
अब बात आती है बीजेपी की। दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने मयूर विहार के नाले में मां और बच्चे के डूबने के मामले को गंभीर बताया। उनका कहना है कि मामले की जांच होनी चाहिए। जिससे कि यह पता चल सके कि किन परिस्थितियों में मां और बच्चे नाले में गिर गए। जांच होना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि हादसे के लिए कौन सी एजेंसी जिम्मेदार है। हादसे के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई भी होनी चाहिए। आम आदमी पार्टी नेता असंवेदनशील बने हुए हैं। अब देखा जाए तो पूरी दिल्ली में उनके सांसद हैं। जनप्रतिनिधियों की अपनी कोई भूमिका नहीं? फिर, एलजी भाजपा के इशारे पर ही काम करते हैं, तो वे क्या कर रहे हैं? क्या उनकी भूमिका केवल केजरीवाल सरकार का परेशान करने तक की रह गई है? क्या वो राजनीति ही कर रहे हैं, या उनकी भी कोई जिम्मेदारी है?
सब राजनीति कर रहे हैं तो कांग्रेस क्यों चूके। कांग्रेस ने सीधे तौर पर तो इस हादसे को लेकर कुछ नहीं बोला। लेकिन दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा कि भाजपा की केंद्र सरकार और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार अपना मुख्य दायित्व निभाने की जगह जनता के खिलाफ नीतियों के तहत काम कर रही है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में राजधानी में मौजूदा सरकार ने रोड, सडक़ नहीं बनाए हैं। कोई बिल्डिंग नहीं बनाई और जो इन्फ्रास्ट्रक्चर कांग्रेस की सरकार ने 15 वर्षों में खड़ा किया था उसकी देखभाल और रख-रखाव भी नही कर पाई, जिसके चलते पूरा का पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर धराशाही हो गया है। उन्होंने कहा कि एक सरकार अपने मुख्यमंत्री को बचाने में व्यस्त है और दूसरी क्चछ्वक्क की केंद्र सरकार बड़ी-बड़ी बातें तो करती है, लेकिन हर मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारी से भागती नजर आई है। दिल्ली वालों का सवाल यही है कि सरकारें कितने हादसों का इंतजार कर रही हैं? कब तक दिल्ली में लोग मरते रहेंगे? कब सरकारें और प्रशासन कुंभकरण की नींद से जागेंगे और एक्शन करेंगे? कब दिल्ली असल में राजधानी कहला पाएगी?
ये देश ही राजधानी का हाल है, तो बाकी हिस्सों का क्या होगा? देख रहे हैं। वायनाड की दुखद घटना पर भी राजनीति होने लगी। बयानबाजी के बजाय राहत कार्यों को और तेज किया जा सकता है। भविष्य के लिए ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड के भी यही हाल हैं। जहां भारी बारिश हो रही है, वहां सरकारों की पोल खुल रही है। लगभग हर जगह भ्रष्टाचार के कारण सैकड़ों मौतें हो जाती हैं, हो रही हैं। और लाखों लोग सफर करते हैं। परेशानी झेलते हैं। ये एक-दूसरे पर कीचड़ उछालकर अपनी कमीज साफ दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं।
वैसे उनकी गलती नहीं है। आम आदमी जो सफर करता है, वही शायद इसके लिए जिम्मेदार है। हम ही तो उनकी बयानबाजी पर ताली बजाते हैं। हम ही तो उन्हीं को चुन रहे हैं, जो हमें ज्यादा मूर्ख बनाकर वोट ले जाते हैं। भुगतो। उन्हें राजनीति के लिए ही चुना गया है, वो कर रहे हैं।
– संजय सक्सेना