Edirorial: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में लापरवाही की हद !
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 हािथयों की मौत का राज अब तक नहीं खुला है। दूसरी तरफ, एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि बांधवगढ़ में हाथी और बाघों की अस्वाभाविक मौतों का सिलसिला नया नहीं है। एनटीसीए के अनुसार 2021 से सितंबर 2024 तक यानि पिछले तीन सालों के दौरान बांधवगढ़ में 93 बाघों की मौत हुई। यह देश के किसी भी टाइगर रिजर्व से अधिक हैं। इस साल भी रिजर्व में 12 बाघ मर चुके हैं। लगभग सभी की मौत रिजर्व के अंदर हुई हैं।
तात्कालिक मामला हाथियों की मौतों का है, जिसमें रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर गौरव चौधरी व सहायक वन संरक्षक फतेसिंह निनामा को सस्पेंड कर दिया गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर सोमवार को हाथियों के मूवमेंट की निगरानी के लिए 6 विशेष दल गठित कर दिए हैं। मानव-हाथी द्वंद व वन्य-प्राणी प्रबंधन के लिए गांवों में मुनादी कराकर जागरूक किया जा रहा है। मुख्य वन संरक्षक ने 35 स्टाफ की ड्यूटी लगाई है।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 हाथियों की मौत के मामले में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन की लापरवाही उजागर होने लगी है। प्रारंभिक पड़ताल में सामने आया है कि 28 अक्टूबर की रात को बांधवगढ़ के खितौली और पतोर रेंज में रातभर हाथी दर्द से तड़पने के कारण जोर-जोर से चिंघाड़ते रहे। लेकिन रात को किसी ने ध्यान नहीं दिया, या अधिकारियों को सूचना तक नहीं पहुंच पाई। सुबह होने पर ग्रामीणों ने वन विभाग के अधिकारियों को इसकी सूचना भी दी, लेकिन इस सूचना पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।
वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी दोपहर में मौके पर पहुंचे, लेकिन बांधवगढ़ पार्क का वाइल्ड लाइफ वेटरनरी स्टाफ साथ में नहीं होने से वे केवल तमाशबीन बने रहे और हाथियों की मौत होते देखते रहे। वन मुख्यालय को सूचना मिलने के बाद ही पार्क प्रबंधन सक्रिय हुआ था। इसी कारण एसीएफ फतेह सिंह निनामा को निलंबित किया गया है। निनामा पर एक हाथी की मौत के बाद बिना प्रोटोकॉल पूरा किए उसके अवशेष जलाकर नष्ट करने का भी आरोप है, जिसकी जांच चल रही है।
ऐसी लापरवाही पहली बार नहीं हुई है। वर्ष 2022 में भी बांधवगढ़ में पनपथा रेंज में एक मृत हाथी के अवशेष मिले थे। हैरत की बात है कि स्थानीय रेंजर और दो फारेस्ट गार्ड ने बिना वरिष्ठों को सूचना दिए अवशेष जला दिए थे। मामला कोर्ट तक आया था, कई जांचें हुईं पर ये स्पष्ट नहीं हुआ कि मृत हाथी कहां से आया था? यह मामला फाइलों में ही दब गया।
यहां नियमित डायरेक्टर की पदस्थापना भी विवादों में रहती आई है। इसी साल 2 सितंबर को आईएफएस गौरव चौधरी ने बांधवगढ़ में फील्ड डायरेक्टर का पदभार संभाला था। इससे पहले चल रहे तमाम विवादों के बावजूद सरकार एक साल तक नियमित डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं कर पाई और प्रभारी पर ही रिजर्व की जिम्मेदारी छोड़ दी गई। जबकि केंद्र नियमित डायरेक्टर नियुक्त करने के लिए कहता रहा। पूर्व डायरेक्टर विंसेंट रहीम के कार्यकाल में ही 13 से अधिक बाघों की मौत दर्ज हुई थी। तब जंगल में भयंकर आग भी लगी। तब भी फतेह सिंह निनामा ही एसडीओ थे। उनके पास एसीएफ का प्रभार था।
बता दें कि सर्वाधिक टाइगर डेंसिटी बांधवगढ़ में ही है। साल 2023 के ऑंकड़ों के अनुसार, बांधवगढ़ में 165 टाइगर पाए गए थे, जबकि मप्र के 6 टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 259 ही बढ़ी थी। 4 सालों में 41 बाघ कुनबे में जुड़े जिसे वन विभाग की कार्यकुशलता माना गया। लेकिन बाघों के प्रबंधन में विभाग कुछ ज्यादा ही फिसड्डी रहा। अधिकारियों की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में ही रहती आई है। डायरेक्टर से लेकर अन्य अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतें भी होती रही हैं।
सबसे खास बात यह रही है कि न तो पहले हुई बाघों की मौतों की सही जांच की गई और न ही हाथियों की मौतों को लेकर विभाग के अधिकारियों ने बहुत गंभीरता दिखाई है। उनका व्यवहार ऐसा ही रहा है, मानो ये स्वाभाविक मौतें हैं और इस तरह की घटनाएं बहुत सामान्य बात है। राजधानी ने भी बाघों की मौतों तक को बहुत गंभीरता से नहीं लिया। सही जांच करने के बजाय असल कारणों और असल जिम्मेदारों की भूमिका को दबाने का काम ज्यादा किया जाता रहा है।
जब हमें बाघ प्रदेश का तमगा मिल चुका है, और दूसरी ओर बांधवगढ़ में बाघों की लगातार मौत हो रही है, इस बीच हाथियों की मौतों का भी सिलसिला चल निकला। ऐसे में कहीं न कहीं वन विभाग और सरकार को बहुत गंभीरता से पहले तो जांच करानी होगी। फिर वहां प्रभार देने के बजाय नियमित डायरेक्टर की नियुक्ति करनी चाहिए। जो अधिकारी संदेह के दायरे में हैं, या जिनके खिलाफ शिकायतें हैं, उन्हें वहां क्यों लगातार पदस्थ रखा गया है, यह बात गले नहीं उतरती। हम बात तो बाघों के संरक्षण की करते हैं, लेकिन उनका संरक्षण कर नहीं पा रहे हैं।
– संजय सक्सेना