Edirorial: जीडीपी ग्रोथ का निराशाजनक अनुमान….

क्या हमारी अर्थव्यवस्था की रफ्तार को ब्रेक लग रहा है? क्या तमाम कथित प्रयासों के बावजूद आर्थिक विकास की गति कम हो रही है? कम से कम राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानि नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) की रिपोर्ट तो यही कह रही है। एनएसओ के पहले अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2025 में देश की सकल विकास दर जीडीपी ग्रोथ के 6.4 प्रतिशत रहने की बात कही गई है। ये हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है। यह आरबीआई के 6.6 प्रतिशत  के अनुमान और वित्त वर्ष 2024 की 8.2 प्रतिशत  की ग्रोथ से काफी कम है।
एनएसओ के इन आंकड़ों के आने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव सरकार की ओर से बढ़ सकता है। दूसरी ओर, 1 फरवरी को आने वाले बजट पर भी निगाहें होंगी कि सरकार अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने के लिए क्या कदम उठाती है? वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन तो लगातार कहती रही हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम नहीं होगी, लेकिन यहां तो उनका दावा गलत ही साबित होता दिख रहा है।
एनएसओ का मानना है कि उत्पादन और निवेश घटने से विकास पर बुरा असर पडऩे जा रहा है। वित्त वर्ष 2025 में अप्रैल से नवंबर के बीच कैपिटल एक्सपेंडिचर में 12.3 प्रतिशत की सालाना गिरावट आई। लोकसभा चुनाव और फिर भारी बारिश की वजह से सरकार यह पैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट पर खर्च नहीं कर पाई, जिससे अर्थव्यवस्था पर दबाव बना। वित्त वर्ष के बचे हुए महीनों में इसमें तेजी आने की आशा है, जिससे अर्थव्यवस्था को सपोर्ट मिल सकता है। लेकिन ऐसा होगा, इसमें संदेह ही है।
एनएसओ ने रिपोर्ट के आधार पर जो अनुमान लगाया है उसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2025 में कृषि क्षेत्र की ग्रोथ अच्छी रहेगी और निजी खपत में भी साल भर पहले की तुलना में अच्छा सुधार दिखेगा, लेकिन कैपिटल एक्सपेंडिचर में गिरावट के कारण स्थिति अच्छी नहीं दिख रही है। वहीं, कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन की वजह से रूरल डिमांड में रिकवरी हुई है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में मांग कमजोर है। देखना होगा कि शहरी क्षेत्रों में डिमांड को बढ़ावा देने के लिए सरकार क्या उपाय करती है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज बनाए रखने के लिए सरकार को मांग और निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। इसका एक विकल्प यह बताया जा रहा है कि सरकार टैक्स में रियायत दे ताकि लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए अधिक पैसा बचे। जब लोग यह पैसा खर्च करेंगे तो इकॉनमी को सपोर्ट मिलेगा। लकिन ऐसा होने की उम्मीद बहुत ही कम बताई जा रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक यदि आगामी फरवरी की बैठक में ब्याज दरों में कटौती करता है तो उससे भी शहरी उपभोक्ता वर्ग को कम ईएमआई के रूप में राहत मिलेगी। इससे जो बचत होगी, उससे भी डिमांड में बढ़ोतरी हो सकती है। ब्याज दरें कम होती हैं तो कॉरपोरेट सेक्टर की दिलचस्पी भी निवेश में बढ़ती है। वह अपनी क्षमता बढ़ाता है, जिससे रोजगार के मौके बढ़ते हैं, लिहाजा डिमांड मजबूत होती है।
कुल मिलाकर सरकार यदि 2047 तक पूर्ण विकसित भारत का सपना पूरा करना है तो आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार तेज करनी होगी। यह प्रधानमंत्री मोदी का नारा है और संकल्प भी। लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था का एक तो संतुलन नहीं बन पा रहा है। एक तरफ करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ मध्यम वर्ग लगातार कमजोर होता जा रहा है। बीपीएल का अधिकांश हिस्सा भले ही सरकारी योजनाओं और रेवडिय़ों का लाभ ले रहा है, लेकिन मध्यम वर्ग बढ़ते टैक्स और बढ़ती महंगाई का सबसे बड़ा शिकार है।
जबकि यही मध्यम वर्ग बाजार की ग्रोथ में सबसे बड़ा हिस्सेदार भी है। इस पर संभवत: हमारे नीति निर्धारक ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। समस्या यह है कि अमीरों के सबसे उच्च वर्ग के पास अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा प्रतिशत है, जबकि आबादी के रूप में उनके पास सबसे कम ताकत है। पर सरकार उन पर ही अधिक निर्भर रहती है। और, निम्न वर्ग, जिसमें बीपीएल के साथ ही निम्न मध्यम वर्ग भी आ गया है, वह सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसलिए इस वर्ग को फ्रीबीज योजनाओं यानि चुनावी रेवडिय़ों से सरकार गले-गले तक उपकृत कर देती है। टैक्स से यह वर्ग लगभग पूरी तरह मुक्त है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हमारी नीतियों में कहीं न कहीं कुछ बदलाव तो करना ही होगा। हम शेयर बाजार के हजारों-लाखों करोड़ को अपनी अर्थव्यवस्था का आधार नहीं बना सकते। भौतिक रूप से जब निवेश होगा, तभी विकास का सही स्वरूप सामने आएगा। निचले नहीं, मध्यम वर्ग को जब तक राहत नहीं मिलेगी, अर्थव्यवस्था की रफ्तार बहुत तेज होने की उम्मीद कम ही रहेगी। ये अलग बात है कि सरकार जीडीपी के आंकड़ों को ही बदल कर बेहतरी का दावा कर दे।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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