मध्यप्रदेश की राजधानी में मिली ड्रग फैक्ट्री ने एक बात तो साफ कर दी है। वो ये कि यहां कुछ भी बड़ी आसानी से किया जा सकता है। पहले नक्सलियों की हथियार बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई थी और तब तो पुलिस अफसरों को पुरस्कृत भी कर दिया गया था। जबकि होना यह था कि सालों से कोई अवैध हथियार फैक्ट्री चल कैसे रही थी? अब ऐसे पुरस्कृत करने का एक परिणाम यहां चल रही फैक्ट्री से मिलता है। हम फिर भी अपनी कमजोरी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। गुजरात एटीएस डेढ़ महीने रह कर जा चुकी। यहां उसने पूरी तहकीकात की, हम बेखबर ही रहे। फैक्ट्री में क्या चल रहा है, यह जानने की जरूरत न तो उद्योग विभाग को पड़ी और न ही श्रम विभाग को। इनके पास तो हफ्ता पहुंचता रहे, इसकी चिंता रहती है।
असल में भोपाल के बगरौदा गांव स्थित प्लॉट नंबर एफ-63 में ड्रग्स की फैक्ट्री चल रही थी। इसकी भनक भोपाल पुलिस को तब लगी जब गुजरात एटीएस और एनसीबी की 15 सदस्यीय टीम ने फैक्ट्री पर दबिश दी। कवर देने कटारा हिल्स पुलिस फैक्ट्री के बाहर तैनात थी। शनिवार दोपहर 12 बजे शुरू हुई इस कार्रवाई ने एटीएस अधिकारियों के भी होश उड़ा दिए। ड्रग्स बनाने के केमिकल को तौलना शुरू किया तो मात्रा 907 किलो तक पहुंच गई। यह कार्रवाई रात करीब नौ बजे तक चलती रही।
बरामद ड्रग्स की कीमत 1814.18 करोड़ रुपए बताई जा रही है। पुलिस की दबिश के दौरान फैक्ट्री में अमित प्रकाशचंद्र चतुर्वेदी निवासी सुल्तानाबाद भोपाल और सान्याल बाने निवासी नासिक महाराष्ट्र मौजूद थे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया है। मामले में तीसरे आरोपी हरीश आंजना (32) को भी पकड़ा गया है। फैक्ट्री के दो मजदूरों को पुलिस ने पूछताछ के बाद छोड़ दिया। उन्हें पता नहीं था कि फैक्ट्री में केमिकल के नाम पर ड्रग्स तैयार की जाती है।
फिलहाल की जांच में पता चला है कि ड्रग्स तस्करी का ये इंटरनेशनल नेटवर्क जेल में तैयार हुआ। आरोपी ड्रग्स खरीदने के लिए क्रिप्टो करेंसी का भी इस्तेमाल करते थे। आरोपी प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी साइंस ग्रेजुएट है। पहले वो प्राइवेट जॉब करता था। बाद में दो बार खुद का अलग-अलग कारोबार शुरू किया। दोनों बार बिजनेस में नाकाम रहा। पूछताछ में पहले आरोपी ने बताया कि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि उसकी फैक्ट्री में तैयार होने वाला केमिकल नशे के लिए इस्तेमाल होता है। एटीएस ने सख्ती से पूछताछ की तब उसने बताया कि सान्याल बाने से उसका पुराना परिचय था। एक दोस्त के जरिए उसकी सान्याल से पहली मुलाकात मुंबई में हुई। इसके बाद कई बार दोनों नासिक में भी मिले। पांच साल पहले एनडीपीएस एक्ट केस में सान्याल को पांच साल की सजा हुई। ऑर्थर रोड जेल मुंबई में उसने सजा काटी है।
सजा के दौरान सान्याल की मुंबई की ऑर्थर जेल में बंद अलग-अलग प्रदेशों के ड्रग्स तस्करों से मुलाकात हुई। इन तस्करों में तुषार गोयल नाम का कुख्यात तस्कर भी शामिल था, जो दिल्ली का रहने वाला है। हालांकि पंजाब, हरियाणा, नेपाल, गुजरात में उसके कई ठिकाने थे। यहीं से सान्याल को एमडी ड्रग्स की तस्करी का रास्ता मिला। इससे पहले वह कोकिन और चरस जैसे मादक पदार्थ बेचता रहा था। प्रकाश कोई खास काम नहीं कर रहा था। वह हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल का शौकीन था। इसी का फायदा उठाते हुए सान्याल ने जेल में रहते हुए अपने गुर्गे और केस के तीसरे आरोपी हरीश आंजना (32) को प्रकाश के पास पहुंचाया। हरीश और सान्याल भी ऑर्थर रोड जेल में साथ रहे हैं। हरीश ने ही प्रकाशचंद्र को शॉर्ट कट से अमीर बनने का सपना दिखाया।
सान्याल के मैसेज के तहत उसे भोपाल के आउटर में फैक्ट्री की जमीन तलाशने को कहा गया। प्रकाश ने बगरौदा में जयदीप सिंह की फैक्ट्री को किराए पर लिया। इस फैक्ट्री का अलॉटमेंट एके सिंह नाम के व्यक्ति को था। जिसे बाद में जयदीप ने खरीद लिया था। आरोपी ने फैक्ट्री को फर्नीचर बनाने के नाम पर लिया था। बताया था कि इसमें लकड़ी पर होने वाला पॉलिश भी बनाया जाएगा। फैक्ट्री शुरू करने के लिए एडवांस और किराए से लेकर सामान मंगाने तक का पूरा इनवेस्टमेंट सान्याल ने किया था। हरीश ही सान्याल के इशारे पर हवाला से आई रकम को प्रकाश तक पहुंचाता था।
जब इसमें ड्रग्स प्रोडक्शन शुरू हुआ तो हरीश ही इस ड्रग्स को अलग-अलग तरीकों से मंदसौर फिर वहां के रास्ते ग्राहकों तक भेजा करता था। इस काम के लिए उसे हर खेप से कमाई रकम का 10 फीसदी हिस्सा मिलता था। सान्याल जेल से रिहाई के बाद प्रकाश के साथ ही फैक्ट्री चलाने लगा था। भोपाल में वो होटल में ठहरता था। गुजरात एटीएस के मुताबिक महाराष्ट्र के एक किलो एमडी ड्रग्स केस में 2022 में जमानत पर छूटे आरोपी सान्याल बाने पर छह महीने से नजर रखी जा रही थी। वह लगातार भोपाल-इंदौर और उज्जैन के बीच आना-जाना कर रहा था। भोपाल के पास इंडस्ट्रियल इलाके में उसकी गतिविधियां बढ़ीं तो जांच शुरू की गई।
तब पुलिस के ध्यान में आया कि इलाके में एक फैक्ट्री है, जिसका वेंटिलेशन ग्राउंड लेवल से लगा हुआ है। आमतौर पर ऐसा केमिकल वाली फैक्ट्री में ही होता है। क्योंकि, अन्य फैक्ट्रियों में धुएं की निकासी के लिए चिमनी या वेंटिलेशन छत पर होता है। इससे जांच टीम का शक बढ़ा। 17 पुलिसकर्मियों की टीम जांच के लिए एक महीने तक भोपाल में रुकी। इस दौरान अहमदाबाद एटीएस ऑफिस से सर्विलांस किया जा रहा था। इस तरह तीन मोर्चों पर जांच कर एटीएस गुजरात देश की सबसे बड़ी ड्रग्स प्रोसेसिंग फैक्ट्री तक पहुंच सकी।
गुजरात एटीएस और एनसीबी इस गिरोह से जुड़े तुषार गोयल, जितेंद्र पाल सिंह उर्फ जस्सी, हिमांशु कुमार, औरंगजेब सिद्दीकी और भरत कुमार जैन को पहले ही पकड़ चुकी हैं। इन्हीं आरोपियों से पूछताछ में सान्याल की भोपाल में चल रही ड्रग्स की फैक्ट्री की जानकारी एनसीबी को मिली थी। सभी आरोपी विदेशों तक ड्रग की तस्करी करने में माहिर हैं।
एटीएस की पूछताछ में आरोपियों ने ्य और दुबई तक ड्रग्स की खेप भेजने की योजना की बात स्वीकार की है। आरोपी ड्रग्स हासिल करने के लिए क्रिप्टो करेंसी का भी इस्तेमाल करते थे। बताया जा रहा है कि फैक्ट्री की मशीनें और सिस्टम इतने आधुनिक और उच्च क्षमता वाले थे आरोपी पिछले छह महीने से रोजाना 25 से 30 किलो ड्रग्स तैयार कर रहे थे। आरोपियों ने फैक्ट्री 6 महीने पहले किराए पर ली थी। फैक्ट्री के मालिक का नाम जयदीप सिंह है। 8 साल पहले फैक्ट्री को निर्माण के लिए लीज पर लिया था। फर्नीचर निर्माण के नाम पर इस जमीन को लिया गया था।
सवाल बहुत उठ रहे हैं। उठने भी चाहिए। भोपाल के अंदर और आसपास जो औद्योगिक क्षेत्र हैं, वहां असली और नकली, दोनों ही तरह की फैक्ट्रियां चल रही हैं। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं। कोई जिम्मेदार नहीं। गोविंदपुरा फैक्ट्री एरिया के हाल तो बहुत बेहाल हैं। यहां के गोरखधंधे आम आदमी को पता हैं, लेकिन न तो उद्योग या श्रम विभाग के पास जानकारी है और न ही पुलिस के। हम अपनी और अपने विभागों की कमजोरियां छिपाने का आज भी प्रयास कर रहे हैं, जबकि सरकार को सीधे कड़ी कार्रवाई करना चाहिए। कम से कम उद्योग विभाग और श्रम विभाग पर तो होना ही चाहिए। और पुलिस…। इन्हें तो वीआईपी ड्यूटी से थोड़ा बहुत समय मिलता है तो चालान काट लेते हैं। फिर बाकी और ड्यूटियां भी रहती हैं। संदिग्ध गतिविधियां तो तभी पता चलती हैं, जब कोई गलती से हत्थे चढ़ जाता है, या कहीं और की पुलिस आकर छापा मारती है।