पिछले कुछ वर्षों से मौसम की अनिश्चितता लगातार बढ़ रही है। ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी के साथ कई बार भीषण ठंड पडऩे लगती है, तो बेमौसम बारिश हो जाती है। मावठा गिरने का समय भी बदलता रहता है। और इस बार तो दिल्ली सहित उत्तरी राज्यों में इस साल फरवरी में गर्मी का अहसास जल्दी शुरू हो गया है। ये पिछले 15 सालों के सबसे गर्म फरवरी महीनों में से एक होने वाला है। इससे उत्तर भारत में सर्दी के जल्दी खत्म होने का संकेत मिल रहा है। दूसरी तरफ हिमाचल से लेकर कश्मीर और उत्तराखंड में बर्फबारी का दौर चल रहा है।
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या इस साल हमें लंबी और कड़ी गर्मी का सामना करना पड़ेगा? मौसम विशेषज्ञों का माना है कि ऐसा कतई जरूरी नहीं। दरअसल पिछले सालों के आंकड़ों से पता चलता है कि फरवरी में गर्मी का मतलब ये नहीं है कि उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ेगी। 1971 से उत्तर भारत के मासिक औसत अधिकतम तापमान का विश्लेषण करने से पता चलता है कि फरवरी के 10 सबसे गर्म महीनों में से पांच सालों में, अप्रैल का महीना सामान्य से ज्यादा गर्म रहा। लेकिन बाकी के पांच सालों में, अप्रैल का तापमान या तो सामान्य के करीब रहा (चार साल) या सामान्य से कम रहा (एक साल)।
फरवरी और अप्रैल के महीनों को इस विश्लेषण के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि उत्तर भारत में फरवरी सर्दियों का आखिरी महीना होता है। अप्रैल में पूरी तरह से गर्मी शुरू हो जाती है। मार्च को आमतौर पर मौसमी बदलाव का महीना माना जाता है। वैसे मौसम में बदलाव फरवरी यानि वसंत ऋतु से ही शुरू हो जाता है और होली तक कमोबेश रात के समय हलकी सर्दी पड़ती रहती है।
मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि फरवरी और अप्रैल के तापमान में कोई सीधा संबंध नहीं है। इन दो महीनों का तापमान कई कारकों पर निर्भर करता है। इनमें अल नीनो या ला नीना जैसी बड़ी घटनाएं और पश्चिमी विक्षोभ जैसी मौसम संबंधी घटनाएं शामिल हैं, जो मौसम को सीधे प्रभावित करती हैं। 2023 में उत्तर भारत में फरवरी में रिकॉर्ड गर्मी पड़ी, लेकिन अप्रैल सामान्य से ठंडा था। 2023 का फरवरी 1901 के बाद से सबसे गर्म था, जिसका औसत अधिकतम तापमान 1971-2024 के औसत से 3.5 डिग्री ज़्यादा था। हालांकि, उस साल अप्रैल आठ सालों में सबसे ठंडा रहा, जिसका औसत अधिकतम तापमान 1971-2024 के औसत से लगभग 1 डिग्री कम था। इसके उलट 2022 में हुआ। उस साल उत्तर भारत में अप्रैल रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म था, जबकि फरवरी में तापमान सामान्य के करीब था।
मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल एक कमजोर ला नीना है, पर इससे तापमान प्रभावित होने की उम्मीद नहीं है। एक और कारक जो दोनों महीनों को सामान्य रूप से गर्म बनाने में भूमिका निभा रहा है, वह है जलवायु परिवर्तन। पिछले कुछ दशक रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहे हैं। इसलिए जलवायु परिवर्तन के कारण, किसी भी महीने के पहले से ज्यादा गर्म होने की संभावना अधिक है।
हां, इस परिवर्तन के चलते हमें भी अपने आप को बदलने की कोशिशें करनी होगी। हमारे देश की बात करें तो हिमालय क्षेत्र में जिस तेजी से भूगर्भीय परिवर्तन हो रहे हैं, पहाड़ दरकने और खिसकने की घटनाएं हो रही हैं, वह भूगर्भीय और जलवायु दोनों में बड़े परिवर्तन का संकेत कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन यदि तेजी से होता है, तो हमारा शरीर उतनी तेजी से अनुकूलन के लिए तैयार नहीं हो पाता है और बीमारियों का दौर भी तेज हो जाता है। फिर भी, हमें इन परिवर्तनों के लिए तैयार रहने के लिए अपनी क्षमताओं में और वृद्धि करनी होगी। साथ ही पर्यावरण संतुलन की और विशेष ध्यान देना होगा।
– संजय सक्सेना
Editorial : मौसम की अनिश्चितता…
