Editorial: बच्चियों और महिलाओं तस्करी…!
आज मानव तस्करी विरोध एवं जागरूकता दिवस है। साल में एक बार यह दिवस आता है, तो हम आंकड़ों पर बात कर लेते हैं और जागरूकता वगैरह, वगैरह की बात भी हो जाती है। कोई बड़ा मामला अचानक पकड़ में आता है, तब भी ऐसा ही कर लेते हैं। सामाजिक संगठनों में थोड़ा उबाल आता है, फिर मामला ठंडा हो जाता है।
आज फिर हम आंकड़ों और कुछ घटनाओं पर बात कर रहे हैं। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि देश के साथ-साथ मध्यप्रदेश में आज भी मानव तस्करी का दौर जारी है। सुबह-सुबह पढऩे में आई खबर के अनुसार तो प्रदेश में बड़े पैमाने पर नाबालिग बच्चियों और महिलाओं की तस्करी हो रही है। दलाल बिना डरे पुलिस चौकी के सामने और अस्पताल परिसर तक में बच्चियों और महिलाओं की डेढ़-डेढ़ लाख रुपए में खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। कई जगह तो दाम और कम हैं।
खबर के अनुसार ओडिशा-महाराष्ट्र के एजेंट शादी के नाम पर यह पूरा सौदा मोबाइल फोन पर करते हैं। कटनी, दमोह, सागर, छतरपुर, पन्ना, और नौगांव में इन महिलाओं और बच्चियों को उड़ीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से लाकर 90 हजार से 1.5 लाख रुपए में बेचा जा रहा है। पड़ताल में खुलासा हुआ है कि तस्कर 60 साल तक की महिलाओं को भी बेच रहे हैं। गिरोह के एजेंट बच्चियों और महिलाओं को रेलवे व बस स्टैंड से शिफ्ट कर दूसरे शहरों में भेजते हैं।
बच्चियों और महिलाओं की तस्करी के लिए ट्रैफिकिंग गिरोह के एजेंट बीना, कटनी, झांसी और गोंदिया रेलवे स्टेशन का उपयोग जंक्शन के रूप में करते हैं। वजह- इन शहरों की रेलवे कनेक्टिविटी ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से दूसरे शहरों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर है।
खबर में प्रदेश के कई शहरों में महिलाओं और बच्चियों को बेचे जाने के मामले बताए गए हैं। दमोह हो या अशोकनगर, रतलाम हो या मंडला, झाबुआ हो या शहडोल, तमाम शहरों और कस्बों में बाहर के लोग आते हैं और महिलाओं का सौदा करके ले जाते हैं। खास बात यह है कि बहुत ही मामूली संख्या इसमें ऐसी है, जिनमें लोग शादी करने के लिए खरीदते हैं। बाकी मामलों में तो इनसे बाकायदा वैश्यावृत्ति ही करवाई जाती है। कुछ मामलों में बंधुआ मजदूर भी बनाकर रखा जाता है। बंधुआ मजदूरी के लिए तो सभी तरह के बच्चों की खरीद फरोख्त की जाती है।
अगर पूरे देश की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा मानव तस्करी के मामले तेलंगाना में दर्ज हुए। यहां 2022 में 391 केस रिपोर्ट किए गए। मप्र में इसी अवधि में 81 केस दर्ज हुए। इस मामले में मप्र का स्थान 11वां है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, मप्र में 2018-2022 के बीच मानव तस्करी के 386 केस दर्ज हुए। 1756 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन कोर्ट में ट्रायल के दौरान 27 प्रतिशत आरोपी सबूतों की कमी से बरी हो गए, जबकि केवल 7 प्रतिशत को सजा मिली।
2022 में, सरकार ने आईपीसी के तहत 2,250 तस्करी मामलों की जांच की सूचना दी, जबकि 2021 में 2,189 तस्करी के मामले थे। सरकार ने यह नहीं बताया कि इन आँकड़ों में आईपीसी की कौन सी धाराएँ शामिल थीं। सरकार ने 2021 की तुलना में 2022 में अधिक तस्करी के मामलों में मुकदमा चलाया। 2022 में, सरकार ने 676 तस्करी मामलों में अभियोजन पूरा किया, 131 मामलों में 204 तस्करों को दोषी ठहराया और 545 मामलों में 1,134 संदिग्धों को बरी कर दिया। तस्करी के मामलों में बरी होने की दर 81 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में सरकार ने 201 मामलों में अभियोजन पूरा किया, 32 मामलों में 64 तस्करों को दोषी ठहराया और 2021 में 169 मामलों में 520 संदिग्धों को बरी किया, जिसमें 84 प्रतिशत मामलों में बरी कर दिया गया। भारत के 36 राज्यों और क्षेत्रों में से चार ने 2022 में सभी तस्करी के लगभग आधे मामलों की रिपोर्ट करना जारी रखा, जो संभवत: बड़ी तस्करी समस्याओं के बजाय उन राज्यों और क्षेत्रों में अधिक परिष्कृत रिपोर्टिंग के कारण था।
2022 में, कानून प्रवर्तन बीएलएसए के तहत बंधुआ मजदूरी के 1,421 मामले दर्ज किए, जो 2021 में 592 मामलों से अधिक है। 2022 में, अधिकारियों ने बीएलएसए के तहत 4,503 मामलों में 1,362 व्यक्तियों को दोषी ठहराया और 74 मामलों में 83 व्यक्तियों को बरी किया, जो लगभग 94 प्रतिशत बरी दर है। यह 2021 में बीएलएसए के तहत 38 मामलों में 40 व्यक्तियों को दोषी ठहराए जाने और 49 मामलों में 64 व्यक्तियों को बरी किए जाने की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि थी, जो लगभग 62 प्रतिशत बरी दर है। भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से इक्कीस ने 2022 में बीएलएसए के तहत किसी भी बंधुआ मजदूरी पीडि़त की पहचान करने या कोई मामला दर्ज करने की रिपोर्ट नहीं की, जबकि उनमें से कई राज्यों में बंधुआ मजदूरी पीडि़तों की लगातार रिपोर्ट आ रही हैं।
मानव तस्करी की शर्मनाक तस्वीर हमारे समाज पर कलंक ही है। लेकिन इसमें समाज के तमाम ठेकेदारों की शह ही होती है और संरक्षण भी मिलता है। तभी तो जो मामले बमुश्किल पकड़े जाते हैं, उनमें भी पांच से सात प्रतिशत तक को ही सजा मिल पाती है। बाकी बरी हो जाते हैं। यही कारण है कि मानव तस्करी जारी है। कुछ उंगलियों पर गिनने लायक संगठन ही इसे रोकने में और जागरूकता के लिए लगे हैं, बाकी लोग तो दिवस पर या कोई बड़ी घटना सामने आने पर कार्यक्रमों, बयानों के माध्यम से अपनी प्रचार की भूख मिटाते हैं और अपनी समाजसेवा की दुकान चलाते रहते हैं।
– संजय सक्सेना