आज अखबार में खबर का दूसरा हिस्सा छपा है, जिसमें राजस्व के भ्रष्टाचार की कहानी बताई गई है। केवल पटवारी या आरआई यानि राजस्व निरीक्षक ही क्या, उनसे बड़े अफसर भी प्राइवेट एजेंट रखते हैं। इनके बाकायदा दफ्तर होते हैं और यहीं से इन अफसरों की भ्रष्टाचार की दुकानें चलती हैं। और इन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि ऊपर वालों को सब पता है और कहीं न कहीं इन्हें शह या संरक्षण भी।
खबर से पहले एक वाकया और सुनाना चाहूंगा, राजधानी के पड़ौसी जिले नर्मदापुरम के एक तहसीलदार ने बाकायदा टाइपिंग की दुकान चलाने वाले को एजेंट बनाकर रखा था। तत्कालीन मंत्री के फोन के बाद भी उस दुकानदार ने पक्षकार को फोन किया और बाकायदा धमकाया कि नेतागिरी मत करो, बीस हजार भिजवा दो, काम हो जाएगा। इसकी शिकायत मंत्री को की गई। मंत्री ने प्रमुख सचिव को उचित कार्रवाई के लिए लिख भी दिया। प्रमुख सचिव ने मंत्री के निर्देश के बावजूद सलाह दे डाली कि एफआईआर दर्ज करवा दो। और सही में उक्त प्रमुख सचिव की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। वह तहसीलदार न केवल पदोन्नत हो चुका है, अपितु राजधानी में ही पदस्थ है।
अब बात करते हैं खबर की, जिसमें पटवारी और आरआई के कारनामों की फेहरिस्त है। सरकारी या आम लोगों के नाम पर एमपी लैंड रिकॉर्ड में दर्ज जमीनों के दस्तावेज यानि पटवारी शीट निजी सर्वेयरों के दफ्तरों में मौजूद है। सर्वेयरों को यह रिकॉर्ड खुद आरआई-पटवारियों ने सौंपा है। हकीकत यही है कि इन निजी सर्वेयरों के बिना जमीन से संंबंधित कोई भी काम नहीं होता।
नपती और सीमांकन के लिए भोपाल कलेक्टर कार्यालय में 20 इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (ईटीएस) मशीन हैं। लेकिन पटवारी इन मशीनों का उपयोग नहीं करते। वे इन कार्यों के लिए किसान और आम लोगों को सर्वेयर के पास भेज देते हैं। सर्वेयर हर काम के एवज में 4 हजार से 10 हजार रुपए वसूलता है। इनमें आरआई-पटवारी का हिस्सा भी शामिल होता है। खास बात है कि निजी सर्वेयरों की ये दुकानें कलेक्टर कार्यालय के सामने ही संचालित हो रही हैं।
भोपाल कलेक्टर कार्यालय में सीमांकन के लिए 20 ईटीएस मशीनें हैं। जमीनों के पुख्ता सीमांकन और जमीन मालिकों की सहूलियत के लिए इन्हें 2017 में खरीदा गया था। हर मशीन की कीमत 7 लाख रुपए थी। इन मशीनों के संचालन के लिए पटवारियों-आरआई को ट्रेनिंग भी दी गई, लेकिन इनका उपयोग नहीं किया जा रहा है। पटवारी किसानों को निजी सर्वेयरों के हवाले कर देते हैं। यहां जमीनों की सीमांकन की फीस के साथ ही अपनी फीस भी वसूलते हैं। हालात ये हैं कि ये निजी सर्वेयर हर सीमांकन के एवज में 8 से 15 हजार रुपए वसूल रहे हैं।
कलेक्ट्रेट के सामने एक दुकान के सेकंड फ्लोर पर ग्रीन लैंड सर्वे का ऑफिस है। यहां कंप्यूटर ऑपरेटर लैंड रिकॉर्ड के हिसाब से जमीनों का मौका, बटान व नामांतरण का जिम्मा लेते हैं। ऑफिस के कर्ताधर्ता को पटवारी ने सरकारी नक्शा दिया हुआ है। यहां आरआई और पटवारी कंप्यूटर पर नक्शे देखते हैं और सौदा यहीं पर तय होता है।
कलेक्ट्रेट के सामने ही ऑर्बिट सर्वे का ऑफिस भी है। यहां कहा जाता है कि आवेदन तहसील में करें। इसके बाद पटवारी से बात करके मौका-सीमांकन का काम हम कर देंगे। मौका उठवाने के 5 हजार, सीमांकन के 8 हजार रु. लगेंगे।
एयरपोर्ट रोड पर कई पटवारियों ने एक ऑफिस का पता देकर रखा हुआ है। इनके पास सरकारी पुख्ता रिकॉर्ड है। लेकिन यहां दी गई राशि में पटवारी-आरआई का हिस्सा नहीं है। उनसे अलग बात करनी होती है।
एक फैक्टर तो यहां यह भी है कि पटवारी और आरआई आठ-दस या और अधिक सालों से जमे हुए हैं। जमीनों की जानकारी जुबान पर है। कहां खेल है और कहां करना है, सब पता है। ये जादूगर हो गये हैं। जमीन गायब करने से लेकर जमीन निकालना जैसे इनके बायें हाथ का खेल है। इनसे मिलकर ही लोग सरकारी से लेकर निजी जमीन तक दबा लेते हैं और ये पीडि़त को टरकाते रहते हैं। बदले में ये खुद कई एकड़ जमीन के मालिक बन जाते हैं।
पटवारी इस नेक्सस की पहली कड़ी है और दूसरी आरआई। राजस्व के मामलों में इनकी विशेषज्ञता होती है और ये ही राजनेताओं से लेकर बड़े अफसरों की छाया में पनपते हैं। भोपाल में बीस साल से अधिक नौकरी करने वाले एक रिटायर्ड अफसर की इंदौर रोड पर दो सौ एकड़ से अधिक जमीन बताई जाती है। भोपाल के उन इलाकों में वर्तमान और पूर्व अफसरों से लेकर नेताओं ने कई एकड़ जमीनें इन पटवारियों और अन्य अधिकारियों की मदद से बना ली है। कहीं विवादित जमीनों को हथिया लिया जाता है तो कहीं सरकारी जमीन को निजी बनाने में सफल हो जाते हैं।
भोपाल में एक-दो हजार एकड़ नहीं, कई गुना सरकारी और डूब की जमीनों पर कालोनियां और बंगले तन गये हैं। चंूकि जिन्हें कार्रवाई करना होती है, वही शामिल होते हैं तो कोई कुछ नहीं बोलता और न ही करता। अनगिनत किस्से हैं, राजस्व के भ्रष्टाचार के, एकाध छोटे कर्मचारी या अधिकारी पर दिखाने के लिए कार्रवाई कर दी जाती है। या जांच शुरू कर दी जाती है, जो चलती रहती है। फिर ढाक के तीन पात…।
– संजय सक्सेना