Editorial: भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में तल्खी बढ़ी

जस्टिन ट्रूडो भारत से कुछ ज्यादा ही पंगा लेते नजर आ रहे हैं, यही कारण कि भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में तल्खी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि भारत ने कनाडा के बेतुके आरोपों के मद्देनजर ओटावा से अपने उच्चायुक्त और कुछ अन्य राजनयिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। यह फैसला राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। इसके साथ ही भारत ने नई दिल्ली में कनाडा के प्रभारी उच्चायुक्त समेत छह राजनयिकों को निष्कासित भी कर दिया है।
दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत के प्रति आक्रामकता के जो कारण दिख रहे हैं, उनमें कनाडाई प्रधानमंत्री की घरेलू स्तर पर गिरती लोकप्रियता और उनके खिलाफ बढ़ते असंतोष सबसे अहम मानी जा रही है। इसे अगले वर्ष कनाडा में संघीय चुनाव हैं और उससे पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिख समुदाय को लुभाने के लिए वह जो कर सकते हैं, वह कर रहे हैं। कनाडा में बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग, संकटग्रस्त हेल्थ सर्विस सिस्टम और बढ़ती अपराध दर पर शिकायतों के बीच, इप्सोस सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल 26 प्रतिशत लोग ही ट्रूडो को श्रेष्ठ पीएम उम्मीदवार के रूप में देखते है, जबकि विपक्षी कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे की लोकप्रियता उनके मुकाबले 19 प्रतिशत अंक अधिक आई है।
यह दो चुनावी झटकों के बाद आया है। पिछले महीने, सत्ता में मौजूद लिबरल पार्टी मॉन्ट्रियल में हार गई, जिसे उसकी सुरक्षित सीट माना जाता है। यह तीन दशकों तक सीट पर कब्जा करने के बाद टोरंटो में एक विशेष चुनाव में हारने के तीन महीने बाद हुआ। मामले को बदतर बनाने के लिए, मॉन्ट्रियल की हार से कुछ दिन पहले जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने पहले से अल्पसंख्यक लिबरल सरकार से समर्थन वापस ले लिया। जगमीत सिंह खालिस्तान के समर्थक रहे हैं।
अब ट्रूडो के पार्टी सहयोगी उनसे उनसे पद छोडऩे की मांग कर रहे हैं, क्योंकि कई राजनीतिक एक्सपर्ट्स यह भविष्यवाणी कर रहे हैं कि लिबरल्स को ब्रिटेन में कंजर्वेटिव्स की तरह ही दुर्दशा का सामना करना पड़ेगा। संसद में दो अविश्वास प्रस्तावों से बचने के बाद भी ट्रूडो पद पर बने हुए हैं। कनाडा में 7.7 लाख से अधिक सिख हैं, जो चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है, जिसमें एक वर्ग खालिस्तान की मांग का समर्थन करता है।
भारत हमेशा से ही खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों पर ट्रूडो की नीति को लेकर संशय में रहा है। 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के उच्चायोग में व्यवसायी जसपाल अटवाल को रात्रिभोज के लिए निमंत्रण दिए जाने पर विवाद के बीच देश की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के छठे दिन उनसे मुलाकात की थी। अटवाल को 1986 में वैंकूवर द्वीप में पंजाब के एक मंत्री की हत्या की साजिश रचने के मामले में दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में बरी कर दिया गया। निमंत्रण वापस लेने के बाद भी ट्रूडो ने खुद को विवाद से दूर रखने की कोशिश की।
हालांकि, उनके रुख में कोई बदलाव नहीं आया क्योंकि ट्रूडो सरकार ने भारतीय वाणिज्य दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इनमें से कुछ में प्रदर्शनकारियों ने भारतीय ध्वज को जलाया था। ऑपरेशन ब्लूस्टार की 40वीं वर्षगांठ पर, ओंटारियो और टोरंटो में जुलूसों में 1984 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा की गई हत्या को दर्शाती झांकियाँ देखी गईं। कनाडा सरकार ने खालिस्तान पर जनमत संग्रह को रोकने से इनकार कर दिया, जिसका समर्थन सिख फॉर जस्टिस ने किया था।
ट्रूडो द्वारा जून 2023 में आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने संबंधी आरोप लगाए जाने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तल्खी की शुरुआत हुई। कनाडा के प्रधानमंत्री ने सितंबर में जी20 शिखर सम्मेलन के बाद नई दिल्ली से लौटने के तुरंत बाद ये आरोप लगाए। भारत ने न केवल आरोपों का खंडन किया बल्कि ठोस सबूत भी मांगे, जिसे कनाडा ने देने से इनकार कर दिया। दोनों पक्षों ने व्यापार समझौते के लिए बातचीत रोक दी और भारत ने अस्थायी रूप से वीजा प्रक्रिया रोक दी क्योंकि उसे कनाडा में अपने मिशन के कर्मचारियों की सुरक्षा की चिंता थी।
भारत की तरफ से स्टाफिंग में पारस्परिकता के सिद्धांत को उठाए जाने के बाद 40 से अधिक कनाडाई राजनयिकों को भारत में मिशनों से वापस बुला लिया गया। कनाडा ने कथित चुनाव हस्तक्षेप की जांच में भारत को शामिल करने की भी मांग की। पिछले साल नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान, पीएम मोदी ने कनाडा में चरमपंथियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की थी।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि अलगाववादियों ने भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय संबंधों में बड़ी दरार पैदा की है। ट्रूडो के पिता, पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो पर नई दिल्ली के साथ संबंधों को ठीक से न संभालने का आरोप लगाया गया था, क्योंकि 1980 के दशक में कनाडा के अधिकारी खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे थे। इलियट ने बब्बर खालसा के सदस्य तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के भारत के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। परमार पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोप के बाद कनाडा भाग गया था। बब्बर कथित रूप से 1985 के कनिष्क बम विस्फोट का मास्टरमाइंड था। हालांकि, वह सात साल बाद पंजाब में मारा गया था।
अब भारत और कनाडा के बीच संबंधों की दरार और अधिक बढ़ती दिख रही है। भारत ने अधिक सख्त रवैया अपनाया है। हालांकि इसकी पहल जस्टिन की तरफ से ही हुई थी। अब देखना होगा कि भारत द्वारा उठाए गए कदम से कनाडा पर क्या असर पड़ता है और इसकी कनाडा में क्या प्रतिक्रिया होती है?
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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