Vishleshan

Editorial
स्मार्ट सिटी बनाम स्मार्ट भ्रष्टाचार!

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देश के कई शहरों में स्मार्ट सिटी की अवधारणा लागू की गई थी। कहीं और यह अवधारणा सफल हुई या नहीं, ये तो नहीं पता, लेकिन राजधानी भोपाल में तो यह पूूरी तरह असफल ही साबित हो रही है। यहां स्मार्ट सिटी के नाम पर हजारों पुराने, हरे-भरे विशालकाय वृक्षों की बलि देकर शहर का पर्यावरण बर्बाद करने की कोशिश की गई वो अलग, अब स्मार्ट सिटी के हिस्से भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे हैं, वो अलग।
आज फिर खबर आई। स्मार्ट सिटी की पहचान बनी एक सडक़ को लेकर। इसे बड़े जोर-शोर से अटल पथ नाम तो दे दिया गया, लेकिन वह इस नाम के करीब तक नहीं पहुंच सकी। यह सडक़ खुद भ्रष्टाचार की कहानी कहती नजर आ रही है। डेढ़ किलोमीटर से कुछ ज्यादा लंबा अटल पथ अव्यवस्थाओं का शिकार हो गया है। करीब चार साल पहले 40 करोड़ रुपए की लागत से स्मार्ट सिटी की ओर से इसका निर्माण कराया गया था। खूब प्रचार किया गया। लेकिन यह सडक़ आज आम सडक़ों की तरह ही बदहाल हो गई है। बारिश आते ही इसकी असलियत सामने आने लगती है। फिलहाल सडक़ में लगाई गई बारीक गिट्टी बाहर आ कर बिखरी हुई है और इस पर से फिसलकर दोपहिया वाहन चालक घायल हो रहे हैं।
सडक़ पर कई जगह गड्ढे हो गए हैं। साइकल ट्रैक का रंग उड़ गया है और डिवाइडर भी कई जगह टूटे पड़े हैं। फुटपाथ पर रखी गई कुर्सियां भी खराब हो चुकी हैं। सडक़ किनारे लगाए गए डस्टबिन समय पर खाली नहीं होने से कचरा इधर-उधर फैल रहा है। सेंट्रल वर्ज में लगाए गए बॉटल पाम के पेड़ लगभग गायब हो चुके हैं। कई बार इनकी गाडिय़ां फिसलकर सडक़ और साइकल ट्रैक के बीच बनाए गए डिवाइडर से टकराती हैं। ऐसे में डिवाइडर जगह-जगह से टूट गए हैं। स्मार्ट सिटी कंपनी इनका मेंटेनेंस भी नहीं कर रही है।
सडक़ किनारे बिछाई गई सीवेज लाइन बारबार चोक होती है। ऐसे में यहां सीवेज बहने की स्थिति बनती है। प्लेटिनम प्लाजा के पास सडक़ पर अभी भी सीवेज बह रहा है। आलम यह है कि इससे आने वाली बदबू के चलते लोगों का यहां से निकलना भी मुश्किल है। करीब चार साल पहले लोग इसे देखने आते थे। तब सडक़ किनारे लगाए गए बॉटल पाम के पेड़ और सडक़ किनारे लगाए गए आकर्षक फूलों के पेड़ लोगों को खूब लुभाते थे। सडक़ भी साफ रहती थी। अब न तो वह पेड़ और फूल बचे हैं और न सफाई। फुटपाथ और साइकल ट्रैक पर जगह-जगह गोबर नजर आता है।
स्मार्ट सिटी को लेकर पहले भी खबरें आती रही हैं। इसमें भ्रष्टाचार भी उजागर हो चुका है, लेकिन फाइल दफन कर दी गई और जिम्मेदार अधिकारी दूसरे मलाईदार विभागों में मौज कर रहे हैं। पहले तो भोपाल में स्मार्ट सिटी का चयन ही गलत किया गया। शहर के हरे-भरे हिस्से को बर्बाद किया गया। दूसरे, इसकी कहानी भ्रष्टाचार के इर्दगिर्द ही घूमती रही है। हर काम में अनियमितता हुई है। सडक़ का निर्माण तकनीकी तौर पर ही गलत हुआ, लेकिन अधिकारियों ने उसे सही ठहरा दिया। जब सडक़ खराब होने की बात आई तो यह नहीं कहा गया कि सडक़ निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ, यह कहा गया कि जिस कंपनी ने बनाया, वही इसकी मरम्मत भी कराएगी। यानि करोड़ों की सडक़ में बड़ा भ्रष्टाचार करो और फिर लाखों रुपए की मरम्मत कराते रहो। सडक़ों पर पैबंद लगाकर सुधारते रहो।
इससे तो सामान्य सडक़ ठीक रहती है, पता तो है कि उसमें चालीस प्रतिशत तक गड़बड़ होती है। हर बारिश में खराब होना ही है। फिर सुधारने के नाम अधिकारियों को और राशि मिलेगी, और कमीशन मिलेगा। फिलहाल स्मार्ट सिटी की बात करें तो सडक़ के साथ ही यहां लगे यातायात नियंत्रक तक तकनीकी रूप से गलत हैं। आधा किलोमीटर के अंदर ही लगातार दूसरा नियंत्रक लगा है। रोशनपुरा से देखें तो लगभग एक किलोमीटर से कम दूरी में ही तीन नियंत्रक लगे हैं और उनमें कोई समन्वय नहीं। सीधे जाने वाले को हर नियंत्रक पर खड़े होकर इंतजार करना पड़ता है।
स्मार्ट सिटी के पौधारोपण में भी लाखों का भ्रष्टाचार हुआ है। बड़े पेड़ों की बलि लेकर लगाए गए झाड़ बरसात में थोड़ा-बहुत हरे भरे दिखते हैं। बाकी फूलों वाले पौधों का अतापता नहीं। स्मार्ट सिटी में और भी बहुत कुछ होना था, पता नहीं कब तक होगा। अभी तक तो हम इस स्मार्ट सडक़ पर इतराया करते थे, अब वह स्थिति भी नहीं बची। अब कतराने की नौबत आ गई है। राजधानी के ये हालात हैं तो बाकी दूरदराज वाले इलाकों में क्या-क्या होता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रशासन और शासन आंखें मूंद कर बैठा रह सकता है, लेकिन जिनकी आंखें खुली हैं, वो क्या करें?
– संजय सक्सेना

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