Editorial: मध्य प्रदेश में विकास के संकेत, गंभीर चुनौतियां, कई मामलों में पिछड़े..

मध्यप्रदेश में हाल के वर्षों में शहरी विकास और रियल एस्टेट क्षेत्र में तेजी देखी गई है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार राज्य के मिलियन प्लस शहरों में विकास के संकेत उत्साहजनक है, लेकिन जब इनकी तुलना देश के प्रगतिशील शहरों मुंबई, बेंगलुरू, दिल्ली और पुणे से की जाती है तो महत्वपूर्ण अंतर देखने को मिलता है और कई चुनौतियां सामने दिखती हैं। इसी तरह जीडीपी में वृद्धि हुई है, लेकिन प्रति व्यक्ति औसत आय के मामले में प्रदेश अभी भी पीछे ही चल रहा है।
आरबीआई यानि भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें मप्र के शहरी विकास और रियल एस्टेट सेक्टर में हुए विस्तार का भी जिक्र किया गया है। प्रदेश का प्रमुख व्यावसायिक शहर इंदौर स्वच्छता और शहरी प्रबंधन में देश के प्रगतिशील शहरों बेंगलुरु और पुणे के बराबर में पहुंच गया है, जबकि सरकारी परियोजनाओं के चलते भोपाल रियल एस्टेट कारोबार के मामले में प्रगति करता दिखाई दे रहा है।
लेकिन अभी भी भोपाल और इंदौर में अंतर्राष्ट्रीय निवेश और बड़े कार्पोरेट प्रोजेक्ट की कमी देखी जा रही है। दोनों शहरों में सरकारी परियोजनाओं और अफोर्डेबल हाउसिंग पर ध्यान दिया गया है, लेकिन यहां आज भी लक्जरी रियल एस्टेट परियोजनाओं की कमी बनी हुई है। अन्य बड़े शहर जबलपुर और ग्वालियर में रियल एस्टेट विकास की गति धीमी रही है। बाकी शहरों में विकास की गति काफी कम बताई जा रही है।
रिपोर्ट में दिखाई गई उच्च विकास दर के बावजूद राज्य में औद्योगीकरण और शहरीकरण की गति धीमी है। राज्य की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता उसे औद्योगिक विकास के मामले में अन्य प्रगतिशील राज्यों से पीछे रखती है। रिपोर्ट के अनुसार भोपाल में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत व्यापक स्तर पर शहरीकरण हुआ है। शहर के बुनियादी ढांचे में भी निरंतर सुधार किया जा रहा है, जिसमें नई सडक़ें, जलापूर्ति व्यवस्था और सीवेज प्रबंधन की परियोजनाएं प्रमुख हैं। रियल एस्टेट सेक्टर में आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों की मांग बढ़ रही है।
इस साल में भोपाल की रियल एस्टेट परियोजनाओं को सरकारी योजनाओं में बड़ी मदद मिली है। इंदौर के हो रहे शहरी विकास, आईटी सेक्टर और व्यावसायिक परियोजनाओं के बढऩे से यहां का माहौल सकारात्मक रहा है। जबलपुर और ग्वालियर में शहरीकरण और रियल एस्टेट विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी है। जबलपुर में स्मार्ट सिटी परियोजनाएं विकास की गति को तेज कर रही है, लेकिन यहां निवेश और अधोसंरचना में सुधारों की अभी काफी जरूरत है। ग्वालियर में भी नई परियोजनाओं की शुरूआत हुई है, लेकिन और प्रयासों की जरूरत है।
भोपाल और इंदौर की मेट्रो परियोजनाएं अभी शुरुआती दौर में है, जो आने वाले वर्षों में शहरी विकास को नई ऊंचाईयों पर ले जा सकती हैं। हालाकि अभी भी यहां ट्रांसपोर्ट और अन्य शहरी अधोसंरचना में सुधार की आवश्यकता है। यह हमारे बड़े शहरों का चिंताजनक पहलू माना जा सकता है।
मप्र का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद यानि एसजीडीपी 2017-18 में 6,60,761 करोड़ रुपए था, जो 2023-24 में बढक़र 12,42,883 करोड़ रुपए हो गया है। इस वृद्धि कीा बड़ा कारण शहरी क्षेत्रों में रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बताए जा रहे हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था में वृद्धि का बड़ा हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र यानि कृषि संबंधित गतिविधियों से आता है। राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 45 प्रतिशत है, जो औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से पीछे है।
मप्र में प्रति व्यक्ति औसत आय 1,24,288 रुपए दर्ज की गई है, हालांकि यह पहले के मुकाबले बढ़ी है, परंतु अभी भी यह राष्ट्रीय औसत 1,84,205 रुपए से काफी कम है। प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में आय बढ़ रही है, लेकिन ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में कम है। इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने की आवश्यकता महसूस होती है।
असल में मध्यप्रदेश का विकास और राज्यों के साथ ही हुआ है और हो भी रहा है, सरकारें निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तमाम प्रयास भी करती रही हैं। देश-विदेश में निवेशक सम्मेलनों का आयोजन भी किया गया। इस पर काफी बजट भी खर्च किया गया, लेकिन जितना पैसा खर्च हुआ, उस हिसाब से निवेश नहीं आया। बड़ी कंपनियां जितना वायदा करके जाती हैं, उतना निवेश नहीं करतीं। या नहीं कर पाती हैं। इसके पीछे जो कारण हैं, पहले सरकार को उन कारणों को दूर करने के प्रयास करने होंगे।
शहरीकरण का मतलब केवल शहर बसाने से नहीं होता। शहरों को सर्वसुविधायुक्त करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। वहां रहने, खाने से लेकर रोजगार के साधन भी मुहैया कराए जाने चाहिए। प्रदेश के कई शहर आज भी ऐसे हैं, जो आधी-अधूरी सुविधाओं के साथ शहरों का स्वरूप ले रहे हैं। वहां की नई बसाहटों में भी शहरी नियोजन जैसा कोई प्रावधान नहीं दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि वो पिछड़े भी रह जाते हैं।
बड़े शहरों में विकास हो रहा है। अधोसंरचना पर भी ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन कहीं न कहीं नियोजन में कमी रह जाती है। जब कोई मिशन आता है, तब हम जागते हैं। विस्तार और नई बसाहटों में शहरी नियोजन की कमी है और यही कारण है कि हम पुणे, बेंगलुरू, गुडग़ांव जैसे शहरों से पिछड़ जाते हैं। इसके साथ ही स्मार्ट सिटी का कांसेप्ट भी इन शहरों के छोटे हिस्सों तक को स्मार्ट नहीं बना सका है। हमें ईमानदारी से कमियां तलाशकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना होगा, नहीं तो हम पिछड़े शहरों वाले विकासशील राज्य ही बन कर रह जाएंगे।
– संजय सक्सेना

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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