Editorial
भारतीयों में अमेरिकी नागरिकता हासिल करने की होड़…
एक तरफ हम भारत को विश्व गुरू बना रहे हैं। पाचवीं आर्थिक शक्ति बन चुके हैं। फिर हमारे देश के युवा, खासकर प्रतिभाशाली युवा इस देश में क्यों नहीं रहना चाहते? क्यों हम उन्हें अपने ही देश में बेहतर अवसर नहीं दे पा रहे हैं? ये सवाल तो लगातार उठते आ रहे हैं, लेकिन अब इसलिए फिर उठाए जा रहे हैं, क्योंकि अमेरिका में वहां नागरिकता हासिल करने की होड़ भारतीयों में लगातार बढ़ती दिख रही है। लोग सालों साल नागरिकता का इंतजार करते हैं, लेकिन भारत आने की चाह उनमें खास नहीं है।
ताजा खबर आई है कि अमेरिका की नागरिकता हासिल करने के मामले में वहां रहने वाला भारतीय समुदाय अब दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 65,960 भारतीयों को आधिकारिक तौर पर अमेरिकी नागरिकता प्रदान की गई। इसके बाद अमेरिका में नए नागरिकों के स्रोत के रूप में भारत मेक्सिको के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया। मगर ये आंकड़े न तो अमेरिका में नागरिकता या ग्रीन कार्ड हासिल करने का इंतजार कर रहे भारतीयों की स्थिति बयां करते हैं और न ही उनकी समस्याओं को समझने में कोई मदद करते हैं।
साल 2023 के आंकड़े देखें तो वहां भारतीय मूल के 2 लाख 90 हजार ऐसे लोग रह रहे हैं जिनके पास बाकायदा ग्रीन कार्ड या एलपीआर (लीगल परमानेंट रेसिडेंसी) है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे ऐसे लोग हैं जो अमेरिकी नागरिकता हासिल करने की संभावित पात्रता रखते हैं, लेकिन उनकी बारी नहीं आ रही। इसके अलावा उनके आश्रितों को मिला लिया जाए तो करीब 12 लाख भारतीय ऐसे हैं जो अमेरिका में ग्रीन कार्ड के इंतजार में बैठे हैं। इनका एक अच्छा खासा हिस्सा हाईली स्किल्ड की श्रेणी में आता है।
हालांकि हाल के वर्षों में नागरिकता आवेदनों के बकाया मामलों को निपटाने में तेजी आई है। 2020 के आखिर में लंबित आवेदनों की संख्या 9 लाख 43 हजार हो गई थी जो 2021 में 8 लाख 40 हजार 2022 में 5 लाख 50 हजार और 2023 में करीब 4 लाख 8 हजार तक आ गई थी। मगर लंबित आवेदनों को निपटाने की प्रक्रिया में आई तेजी से ग्रीन कार्ड के लिए लगी भारतीयों की कतार कम करने में खास मदद नहीं मिलने वाली। सीआरएस की 2020 की एक रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक साल 2030 तक एम्प्लॉयमेंट बेस्ड ग्रीन कार्ड की टॉप तीन कैटिगरीज में भारतीयों के लंबित आवेदन की संख्या 21 लाख को पार कर जाएगी जिसे निपटाने में मौजूदा कानूनी प्रक्रियाओं के मुताबिक दो सौ साल लगेंगे।
असल में एम्प्लॉयमेंट बेस्ड ग्रीन कार्ड के लिए लंबे इंतजार के पीछे मुख्यतया मौजूदा अमेरिकी कानूनों के दो प्रावधानों की भूमिका है। एक तो एम्प्लॉयमेंट बेस्ड ग्रीन कार्ड की सालाना लिमिट 140,000 निर्धारित करना और दूसरा, प्रति देश 7 फीसदी की सीमा तय कर देना। खास कर प्रति देश 7 फीसदी की यह सीमा बड़ी आबादी वाले भारत जैसे देशों के हाईली स्किल्ड प्रफेशनल्स की राह की बड़ी बाधा बनी हुई है।
इसमें दो राय नहीं कि यह एक जटिल मसला है जिसके कई पहलू हैं। लेकिन गौर करने की बात यह है कि नागरिकता और खासकर ग्रीन कार्ड के लिए दसियों साल का इंतजार न केवल संबंधित व्यक्तियों और उन पर निर्भर लोगों की जिंदगी में अनिश्चितता बनाए रखता है बल्कि दुनिया भर से टैलंट को आकृष्ट करने की अमेरिका की क्षमता को भी प्रभावित करता है।
यहां भले ही हम अमेरिका की क्षमता की बात करें, लेकिन यहां हमारे देश की भी बात होना चाहिए। यानि भारत की। अच्छी प्रतिभाएं यहां केवल पलायन के लिए ही पैदा हो रही हैं? हमारी सरकार जब दावे कर रही है कि हम हर सुविधा देश में दे रहे हैं, प्रतिभाओं का पलायन रोकने की कोशिश कर रहे हैं, तो फिर युवा बेहतर अवसर की तलाश में विदेश ही क्यों जाते हैं? अच्छी शिक्षा की बात आती है तो भी लोग विदेश की ओर देखते हैं। और तो और जो लोग अपने देश को आत्मनिर्भर और विश्व गुरू कहते हैं, वो भी अपने बच्चों को विदेश ही भेजना पसंद करते हैं। कितने ही नेताओं और अधिकारियों के बच्चे विदेश ही पढ़ते हैं, और फिर नौकरी भी वहीं करते हैं। और शायद यही कारण है कि फिर आम लोग भी देश के बजाय विदेश को पसंद करते हैं। भले ही वहां वीजा या ग्रीन कार्ड के लिए बरसों इंतजार क्यों न करना पड़़े!
– संजय सक्सेना
—–