Editorial: बीमारियों का नया स्वरूप

इस बार डेंगू के साथ खांसी के नए लक्षण देखने को मिल रहे हैं। फेफड़ों में इन्फेक्शन बढ़ रहा है। प्लेटलेट्स में सुधार आने में ज्यादा वक्त लग रहा है। कई पेशेंट ऐसे भी हैं, जिनकी बीमारी बिल्कुल डेंगू जैसी है, लेकिन रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है। संभवत: वायरस ने रूप बदला है। ये कहना है चिकित्सा विशेषज्ञों का, जो स्वयं भी राज्य में फैल रही बीमारी को लेकर परेशान हैं।
राजधानी भोपाल में अब तक डेंगू से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। एक युवक की मौत सीहोर जिले में हुई है। इंदौर, नर्मदापुरम और दूसरे शहरों से भी मौतों की खबर आ रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में ये अपडेट नहीं है। विभाग क्या कर रहा है, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सितंबर के शुरुआती हफ्ते में ही पूरे प्रदेश में डेंगू के मामलों की संख्या बढक़र 2150 हो चुकी है। जबकि जुलाई और अगस्त के महीने में पेशेंट्स की संख्या में मामूली बढ़ोतरी थी। डॉक्टरों का कहना है कि सितंबर के महीने में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में पढि़ए डेंगू बढऩे की क्या वजह है और इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतने की जरूरत है।
राजधानी की ही बात करें तो भोपाल में डेंगू की मरीजों की संख्या में इजाफा हो गया है। अगस्त के महीने में मरीजों की संख्या 62 थीं। अब ये बढक़र 188 हो गई है यानी सितंबर के पहले हफ्ते में ही मरीजों की संख्या दोगुनी हो चुकी है।
पिछले साल भी अगस्त और सितंबर के महीने में डेंगू के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ था। तीन लोगों की मौत भी हो चुकी है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने केवल एक मौत को माना है। बाकी दो मरीजों की डेंगू से मौत हुई है या नहीं इसकी जांच की जा रही है। सूरज नगर और सेनवियां गौड़ में पिछले दो हफ्ते में 15 मरीज सामने आए हैं।
प्रदेश की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भी डेंगू के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। इंदौर में 24 घंटे के भीतर 16 नए डेंगू के मरीज मिले, इनमें तीन महिलाएं हैं। सिविल सर्जन जीएल सोढ़ी के मुताबिक इस साल जनवरी से 4 सितंबर के बीच डेंगू के कुल 314 मामले सामने आए हैं। इनमें 190 पुरुष और 124 महिलाएं हैं। जिले की बात करें तो 24 एक्टिव केस हैं। इंदौर में डेंगू से 16 साल के एक किशोर की मौत भी हो चुकी है। ग्वालियर में भी सितंबर माह की शुरुआत में ही डेंगू ने रफ्तार पकड़ ली है। सितंबर के दूसरे ही दिन जिले में डेंगू के 29 मरीज मिले थे। वहीं 4 सितंबर को 17 नए मरीज सामने आए हैं। इनमें से 10 मरीज ग्वालियर शहर के हैं। ग्वालियर के मरीजों में से 6 साल के 3 बच्चे भी शामिल हैं। पिछले साल भी सितंबर में डेंगू के 230 मरीज मिले थे और एक मरीज की मौत हो गई थी।
जबलपुर में सितंबर के शुरुआती दो दिन में डेंगू के 11 नए मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग ने की। इसे मिलाकर जिले में अभी तक 135 लोग डेंगू संक्रमित हो चुके हैं। इसमें लगभग 90 डेंगू पीडि़त बीते एक महीने में मिले हैं। पिछले महीने डेंगू से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। दोनों जबलपुर के ही रहने वाले थे। अस्पतालों में बुखार से पीडि़त लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
चिकित्सक कहते हैं कि जब डेंगू का वायरस शरीर में प्रवेश करता है, तो यह सबसे पहले खून में फैलता है। इसके बाद, यह शरीर के इम्यून सिस्टम को चैलेंज करता है। जैसे ही वायरस शरीर में पहुंचता है, व्हाइट ब्लड सेल्स यानी डब्लूबीसी एक्टिव होती हैं। ये वायरस डब्लूबीसी को संक्रमित करने का काम करता है, जिससे डेंगू में लगातार बुखार आता है। इस बार डेंगू के मरीजों को 10 दिन तक तेज बुखार बना हुआ है। ये पहली बार देख रहे हैं कि डेंगू के मरीजों को खांसी आ रही है। इससे पहले कभी डेंगू के मरीजों में खांसी के लक्षण नहीं देखे गए थे। डेंगू के संक्रमण के दौरान, शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से गिरती है। यह गिरावट खतरनाक हो सकती है, क्योंकि इससे आंतरिक रक्तस्राव के साथ ही अंगों में विफलता यानि आर्गन फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है।
डेंगू के साथ ही भोपाल में तो टायफाइड के मामले भी बहुत बढ़े हैं। इसका संक्रमण अभी भी फैल रहा है। लोग मानने तैयार नहीं हैं, लेकिन कोविड के बाद से जिस तरह से बीमारियां शरीर में घर बनाती जा रही हैं, वो इससे पहले नहीं होता था। डेंगू को लेकर नगरीय या ग्रामीण निकाय, स्वास्थ्य विभाग के बीच समन्वय कहीं देखने को नहीं मिला है। जब भोपाल में ही ठीक तरह से सफाई और पानी को लेकर सावधानी नहीं बरती जा रही है, तो बाकी शहरों में क्या हाल होगा। ग्रामीण इलाकों की हालत तो और बदतर हो रही है। एक तो सडक़ें गायब हो चुकी हैं। गड्ढों में पानी भरा हुआ है, यह सबसे बड़ी बीमारी की जड़ है। हर कहीं ऐसे नजारे देखने को मिल रहे हैं। इसके बाद भी सडक़ों को लेकर कोई रणनीति तक नहीं बनाई जा रही है। केवल हवा में बातें हो रही हैं।
डेंगू के इस नये स्वरूप का इलाज अनुमान के आधार पर ही हो रहा है। यही कारण है कि बीमारी और विकराल होती जा रही है। सरकार स्तर पर बयानबाजी के अलावा कुछ नहीं होता। स्वास्थ्य विभाग हो या नगरीय निकाय, अधिकारी केवल अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं, ड्यूटी कितनी गंभीरता से हो रही है, यह संक्रमण का विस्तार और हो रही लगातार मौतें बताने के लिए काफी हैं।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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