सीमा पर बाड़ लगाने का मुद्दा अब विवाद का विषय बनता जा रहा है। इस मसले को बांग्लादेश ने जिस तरह भारत के साथ दोस्ताना रिश्तों से जोड़ा है, उससे साफ है कि मामला सिर्फ उतना ही नहीं है, जितना दिख रहा है। या जिस तरह से इसे मुद्दा बनाया जा रहा है। बात यह नहीं कि बाड़ लगाने से दोनों पक्षों में तनाव और अविश्वास बढ़ रहा है, सही बात यह है कि रिश्तों में अविश्वास बढऩे की वजह से बाड़बंदी को मुद्दा बनाया जा रहा है।
असल में रविवार को भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर फेंसिंग किए जाने के विवाद को लेकर भारत ने सोमवार को बांग्लादेश के डिप्टी हाईकमिश्नर नूरूल इस्लाम को तलब किया। भारत ने नूरूल इस्लाम से कहा कि सीमा पर फेंसिंग प्रोटोकॉल के तहत हो रहा है और इसमें दोनों देशों के बीच हुए समझौते का पालन किया गया है।
इससे पहले रविवार को बांग्लादेश ने भारतीय हाईकमिश्नर को समन किया था। बांग्लादेशी विदेश मंत्रालय ने भारतीय हाईकमिश्नर प्रणय वर्मा को बुलाकर बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा बल यानि बीएसएफ की तरफ से की जा रही फेंसिंग (बाड़) को अवैध कोशिश बताया था।
भारत का कहना है कि सीमा सरहद पर किए जा रहे सुरक्षा उपायों में तकनीकी डिवाइस लगाना, बॉर्डर पर लाइटिंग, मवेशियों को रोकने के लिए कटीले तार लगाना शामिल हैं। भारत सरकार ने इस दौरान सीमा पार से हो रही तस्करी का भी मुद्दा उठाया। देखा जाए तो बांग्लादेश के रुख में अचानक आए इस बदलाव की जड़ में है वहां हुआ सत्ता परिवर्तन। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भागकर भारत आने के बाद से वहां बनी सरकार पुराने तय हो चुके मसलों पर भी सवाल उठा रही है। बाड़बंदी को लेकर दोनों पक्षों में हुए समझौतों पर सवाल उठाना भी इसी का एक उदाहरण है।
शेख हसीना को लेकर बंग्लादेश की सरकार लगातार भारत पर दबाव बना रही है। वह हसीना का प्रत्यर्पण चाहती है। और माना जा रहा है कि शेख हसीना मुकदमा चलाकर फांसी तक की सजा दी जा सकती है। जबकि भारत इसे टालना चाह रहा है। यही कारण है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर भी उसका यही राग बरकरार है कि वे घटनाएं बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही हैं। हालांकि जब इन घटनाओं को छुपाना या उनका खंडन करना संभव नहीं रह गया तो अब नई व्याख्या यह दी गई है कि उन घटनाओं का स्वरूप सांप्रदायिक नहीं, राजनीतिक है।
खासकर बांग्लादेश की नई सरकार ने पाकिस्तान के साथ करीबी दिखाते हुए पाकिस्तानियों को वहां आसानी से प्रवेश देने की जो नीति अपनाई है उससे यह आशंका बढ़ गई है कि आतंकी तत्व बांग्लादेश के रास्ते भारत आ सकते हैं। स्पष्ट है, भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसी तरह की ढिलाई नहीं बरत सकता। बांग्लादेश को समझना होगा कि दोस्ताना रिश्तों का भविष्य बातचीत के जरिए आपसी समझदारी बढ़ाने में है, अलग-अलग मुद्दों पर तनाव बढ़ाने में नहीं।
समस्या केवल बांग्लादेश की अंदरूनी नहीं है, मामला बहुत आगे बढ़ चुका है। एक तरफ तो चीन बांग्लादेश को लगातार भारत के खिलाफ भडक़ा रहा है। वह भारत को तीनों तरफ से घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। पहले उसने श्रीलंका पर भी दांव खेला था, लेकिन श्रीलंका में बनी नई सरकार ने उसका पिट्ठूृ बनने से एक तरह से इंकार कर दिया है। वह भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने के पक्ष में है।
पाकिस्तान पहले से चीन के प्रभाव में है। देखा जाए तो पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियां भी चीन की शह पर हो रही हैं। पाकिस्तान और भारत के बीच बढ़ते विवादों को चीन लगातार हवा देता रहा है। अब वह बांग्लादेश पर भी नजर लगाए हुए है। बांग्लादेश में जो राजनीतिक उठापटक हुई है, उसमें भी चीन की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। शेख हसीना भारत से बेहतर संबंध बनाने की हमशा पक्षधर रहीं, यही कारण है कि भारत ने उन्हें शरण दी हुई है। लेकिन यह न तो चीन को कबूल है और न ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसे सहन कर पा रही है।
अब देखना होगा कि सीमा पर बाड़ विवाद यहीं पर खत्म होता है या फिर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसे और आगे ले जाती है। इस विवाद का हल तो निकालना ही होगा। किसी भी स्थिति में यह विवाद दोनों देशों के लिए ठीक नहीं। बांग्लादेश के लिए तो यह ज्यादा नुकसानदेह साबित होगा। यह बात और है कि वहां की अंतरिम सरकार समझते हुए भी विवाद बढ़ाने पर तुली हुई है।
– संजय सक्सेना