Editorial
नीट, नेट और अग्निवीर
अब विपक्ष की तरकश के तीर..

नीट और नेट वाले मामले में तो सरकार को बैकफुट पर आना ही पड़ा है, संकेत मिल रहे हैं कि अग्निवीर मामले में भी सरकार कदम पीछे खींच सकती है। विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस इसका जमकर विरोध कर रही है, यही नहीं, उसे इस मुद्दे पर युवाओं का साथ भी मिलता दिख रहा है। नीट मामले में तो लगातार यह साफ होता ही जा रहा है कि परीक्षा में निश्चित तौर पर घपला हुआ है और इससे लाखों युवाओं की मेहनत पर पानी भी फिरा है। सत्ता में बैठी भाजपा को मिल रहा फीडबैक उसके लिए चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि युवा उससे दूर जाता दिख रहा है।
एनटीए यानि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक (यूजी-नेट) के रूप में नौकरियों के लिए आयोजित परीक्षा और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए केंद्रीकृत परीक्षा (नीट) में हुए चौंकाने वाले खुलासे के बाद से आलोचनाओं के घेरे में है। विपक्ष ने भी सरकार को इस उम्मीद में घेरना शुरू कर दिया है कि 2014 से युवाओं का जो वर्ग मुख्यत: भाजपा का समर्थक रहा था, उसे किसी भी तरह अपनी ओर खींचा जाए। सोशल मीडिया पर तो सरकार के खिलाफ युवाओं में माहौल कुछ ज्यादा ही बनता दिख रहा है, जो सामान्य नहीं कहा जा सकता।
और सत्ता में काबिज एनडीए के मुख्य घटक दल भाजपा के लिए भी आगे की चुनौती को कम आंकना नासमझी ही कही जाएगी। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में, 18-35 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं ने राहुल गांधी और कांग्रेस की तुलना में नरेंद्र मोदी और भाजपा को स्पष्ट प्राथमिकता दी है। यहां तक कि 2024 में- जब भाजपा की सीटों की संख्या 2019 की तुलना में 63 घट गई और वह लोकसभा में बहुमत से चूक गई- तब भी युवा भाजपा को लेकर अपनी पसंद पर अड़े रहे। सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण का अनुमान है कि 25 वर्ष से कम आयु के 39 प्रतिशत और 26-35 आयु वर्ग के 38 प्रतिशत मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया, जबकि कांग्रेस को इस वर्ग के क्रमश: 21 प्रतिशत और 22 प्रतिशत मतदाताओं ने ही समर्थन दिया। लेकिन 2019 की तुलना में 2024 में उपरोक्त आयु-समूहों में उसका वोट शेयर 1प्रतिशत और 2प्रतिशत घट गया और ये वोट सीधे कांग्रेस के खाते में जाकर जुड़े।
इस पृष्ठभूमि में, राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष का युवाओं तक निरंतर पहुंच बनाना आने वाले महीनों में भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है। पार्टी के अंदर भी इस विषय पर चर्चा शुरू हो गई है, वहीं संघ परिवार ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता परोक्ष अपरोक्ष रूप से की है। हालांकि यह माना जाता है कि शिक्षा मंत्रालय केंद्र में आज भी कहीं न कहीं संघ परिवार के मार्गदर्शन में ही चल रहा है।
अग्निवीर वाला मामला सेना और उससे जुड़े परिवारों में ज्यादा चर्चा का विषय है। हाल ही में जम्मू के नौशेरा सेक्टर में खदान में हुए धमाके में जान गंवाने वाले 24 वर्षीय अग्निवीर अजय सिंह का परिवार मुआवजे में देरी के लिए सरकार और सेना पर निशाना साध रहा है। इस मामले को राहुल गांधी ने भी उठाया था। इसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दावा किया कि परिवार को 1 करोड़ रुपए मिले हैं और सेना ने इस दावे का समर्थन किया है। जबकि  परिवार का कहना था कि उन्हें जो पैसा मिला, वह दो बीमा पॉलिसियों का था। उन्हें अभी तक वह मुआवजा राशि नहीं मिली है, जिसका वायदा सेना ने अजय सिंह के अग्निपथ योजना में शामिल होने पर किया था।
इस शहीद का परिवार यह भी मांग कर रहा है कि इस योजना को खत्म कर दिया जाना चाहिए क्योंकि अग्निवीर और एक नियमित सैनिक के बीच कोई समानता नहीं है, जबकि दोनों को ही ड्यूटी के दौरान समान जोखिम का सामना करना पड़ता है। ऐसा लगता है कि परिवार को बोलने का साहस राहुल गांधी की व्यक्तिगत यात्रा से मिला है, जिन्होंने पूरा मुआवजा मिलने तक उनकी ओर से लडऩे का वादा किया है। सत्ता पक्ष की ओर से इस पर कोई भी राजनीतिक संकेत नहीं दिया गया है, जिसके कारण विपक्ष को सरकार के खिलाफ और बोलने का मौका मिल गया है।
इसी तरह से नीट और नेट का मामला है। जब निराश और हताश छात्र पेपर-लीक और उसके बाद यूजी-नेट और नीट परीक्षाओं को रद्द/स्थगित करने के विरोध में सडक़ों पर उतर आए, तो सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली। पहले तो शिक्षा मंत्री ने साफ तौर पर एनटीए को क्लीन चिट दे दी। बाद में जब हो-हल्ला बढ़ा और विपक्ष के हमले तेज हुए, तब जांच के आदेश दिए गए, कुछ लोगों को हटाया गया। यही नहीं, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन भी किया। प्रधानमंत्री ने खुद संसद को बताया कि आगे पेपर-लीक को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन छात्र सहानुभूति की एक ऐसी व्यक्तिगत भावना की तलाश कर रहे थे, जिसका प्रदर्शन राहुल गांधी ने किया और विरोध कर रहे नीट उम्मीदवारों से मिलने के लिए समय निकाला था।
सही बात तो यह है कि सत्ता में होने पर सरकारें यह भूल जाती हैं कि लोगों तक पहुंचना, किसी कार्रवाई जितना ही महत्वपूर्ण है। निजी रूप से मिलना, चिंता जताना, धैर्य से बातें सुनना, ये सभी चीजें उस स्पर्श को प्रदान करने में बहुत मददगार होती हैं, जिसकी लोग सत्ता में बैठे लोगों से अपेक्षा करते हैं। इधर, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, लालू के बेटे तेजस्वी यादव और महाराष्ट्र की सुप्रिया सुले जैसे लोगों के नेतृत्व में एक ऊर्जावान विपक्ष संसद और बाहर सरकार पर दबाव बनाने के लिए कमर कसकर मैदान में उतर आया है।
जाहिर है, सत्ता में बैठी भाजपा को इस चुनौती का सामना करने के लिए कोई ठोस पहल करनी होगी और वह संगठन स्तर पर नहीं, अपितु सरकार स्तर पर ही की जाएगी, तभी कुछ कामयाबी मिलेगी। क्योंकि संगठन स्तर पर तो भाजपा सारे विपक्षी दलों के मुकाबले बहुत सक्रिय रहती ही है। युवाओं को खास तौर पर सीधे पार्टी में या संघ के आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से जोडऩे के अभियान चलते रहते हैं। लेकिन इस समय अग्निवीर और नीट-नेट उसके लिए मुसीबत बने हुए हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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