Editorial: मानसिक स्वास्थ्य और अध्ययन रिपोर्ट…

घर से काम करना अधिक बेहतर है या दफ्तर में…? अमेरिका स्थित एक माइंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन की ओर से हाल में करवाए गए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन की रिपोर्ट ने वर्क कल्चर और मेंटल हेल्थ यानि मानसिक स्वास्थ्य के रिश्तों पर नए सिरे से प्रकाश डाला है। रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब भारत में वर्कलोड और ऑफिस के तनाव भरे माहौल पर भी गरमागरम बहस चल रही है।
पिछले दिनों ही पुणे में हुई 26 साल की एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की मौत ने खास तौर पर इस बहस को और तेज कर दिया है। असल में कोविड-19 के प्रभावों से वर्क फ्रॉम होम मॉडल का चलन बढ़ा था और कर्मचारियों का एक वर्ग अभी भी इसी को पसंद करता है। उस समय कंपनियों को उन्हें ऑफिस बुलाने में मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा, कई कंपनियों ने अपने आफिस का खर्च बचाने आज भी अनेक कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम के लिए ही छोड़ रखा है।  इसमें उनका फायदा हो रहा है, लेकिन तमाम युवा अब इससे ऊबने भी लगे हैं।  घर में काम का माहौल बनना और बनाए रखना, दोनों ही आसान नहीं होते।
हाल में आई इस रिपोर्ट में यह तथ्य स्थापित हुआ है कि अकेले काम करने के बजाय टीम के साथ काम करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा बेहतर होता है। खासकर भारत में वर्क फ्रॉम होम के मुकाबले वर्क फ्रॉम ऑफिस मोड अपनाने वालों के मेंटल हेल्थ इंडिकेटर्स बेहतर पाए गए। हालांकि अमेरिका औऱ यूरोप में हाइब्रिड मोड, यानी कुछ दिन घर से काम और कुछ ऑफिस से, इसे सबसे अच्छा पाया गया।
वर्क लोड और कार्यालय यानि ऑफिस के माहौल का जहां तक सवाल है तो रिपोर्ट बताती है कि मेंटल हेल्थ इंडिकेटर्स का रिश्तों से बड़ा गहरा नाता है। मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है सहकर्मियों के साथ रिश्ता। सर्वे में यह बात सामने आई कि वर्कलोड यानि काम का बोझ औऱ फ्लेक्सिबल टाइमिंग जैसे फैक्टर भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मायने रखता है साथ काम कर रहे लोगों के साथ रिश्ता पॉजिटिव है या नहीं, अपने काम के साथ गर्व का भाव जुड़ा है या नहीं और वर्कप्लेस पर पूछ है या नहीं।
यह रिपोर्ट मेंटल हेल्थ से जुड़ी बहस को कार्य और जीवन में संतुलन के पारंपरिक दायरे से आगे ले जाती है। इस मुद्दे को पर्सनल लाइफ और प्रफेशनल लाइफ के दो अलग-अलग खांचों में देखने की परिपाटी से अलग यह इस मसले पर संपूर्णता में विचार करती है जिससे यह तथ्य रेखांकित होता है कि मानसिक सेहत का मसला लोगों के साथ हमारे रिश्तों से जुड़ा है जो घर के भी हो सकते हैं और वर्कप्लेस के भी। वर्कप्लेस के जिन तनावों की बात अक्सर की जाती है, वे भी काफी हद तक सहकर्मियों के आपसी रिश्तों से निर्धारित होते हैं।
यह सही है कि कार्यस्थल यानि वर्कप्लेस पर बढ़ते तनाव के मामले को एंप्लॉयी-एंप्लॉयर संबंधों से पूरी तरह काटकर नहीं देखा जा सकता। इसका एक सिरा काम के घंटों और एंप्लॉयी से एंप्लॉयर्स की अपेक्षाओं से भी जुड़ता ही है, लेकिन रिपोर्ट ने कई अन्य अहम पहलुओं की ओर ध्यान खींचा है जो अक्सर बहस में अनदेखे रह जाते हैं।
यदि हम घर की बात करें, तो एक परिवर्तन यह अवश्य आया है कि परिवार एकाकी होते जा रहे हैं। कई घरों में सभी काम करने जाते हैं, तो घर सुनसान भी हो जाता है। ऐसे में कई लोग अकेले काम करते हैं और इसमें वो बेहतर महसूस करते हैं। लेकिन अकेलापन तब तक ही बेहतर होता है, जब तक आपका मन काम करने में लगता है। कई बार हम काम करते-करते ऊब जाते हैं। मानसिक थकान होने लगती है। कार्यालय में तो सहकर्मियों के साथ बात करके इसे दूर किया जा सकता है, लेकिन अकेलेपन में ऐसा आसान नहीं होता।
फिर, यदि घर में लोग अधिक हैं, तो भी काम करना मुश्किल होता है। कई बार तो घर में काम करने का माहौल ही नहीं बन पाता। कोविड में खासकर जिस तरह से घर से काम करने की आदत डाली गई, अधिकांश लोगों की यह आदत कुछ ही दिनों में खत्म भी हो गई। बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो घर से काम करने को प्राथमिकता देते हैं। एम्प्लायर की बात करें तो उसका लक्ष्य कर्मचारियों से अधिक से अधिक काम लेना ही होता है, आम तौर पर उसे इससे कोई लेना देना नहीं होता कि कर्मचारी कैसे कर रहा है? उसे टार्गेट पूरा करना होता है और वह भी कम से कम खर्च में। शायद इसीलिए कई कंपनियों ने अभी तक घर से काम कराने का सिलसिला जारी रखा हुआ है। उनके कार्यालय का खर्च कम हुआ है और जिनसे वर्क फ्राम होम कराया जा रहा है, उनका वेतन भी कम कर दिया गया था। ज्यादातर का वेतन वापस बढ़ाया ही नहीं गया है।
यहां मुद्दा चूंकि मानसिक स्वास्थ्य का है, तो मानसिक स्वास्थ्य यदि हम कार्यालय में काम करते हैं, और वहां का माहौल अच्छा होता है, तभी बेहतर रहता है। काम घर में करें या कार्यालय में, मुख्य मुद्दा होता है वहां का वातावरण। घर की अपनी समस्याएं हैं, और वो भी कम नहीं हैं। इसलिए कार्यालय में बेहतर माहौल आसानी से बन सकता है, इसके लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। सामंजस्य बना कर काम किया जाए, तो तनाव से मुक्ति मिल सकती है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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