Editorial
फिर बनेगा भोपाल के मास्टर प्लान का ड्राफ्ट…!

इसे शहर की विडम्बना ही कहा जाएगा कि राजधानी होने के बावजूद भोपाल का मास्टर प्लान बीस साल से नहीं बन पा रहा है। सरकारें बदलती रहीं और पुरानी सरकार के मास्टर प्लान में कमियां निकाल कर उन्हें निरस्त किया जाता रहा। इसके पीछे कारण सरकार भले ही नहीं जानती, लेकिन आम आदमी जानता है कि कैसे भू माफिया और सत्ता में बैठे कुछ लोग मिलकर जमीनों का खेल खेलते हैं और महत्वपूर्ण इलाकों पर अपना कब्जा कर करोड़ों का धंधा करने में सफल हो जाते हैं।
एक साल पहले भोपाल के मास्टर प्लान का ड्राफ्ट अचानक चर्चाओं में आया। इसे मंत्रालय भेजा गया। फिर लागू करने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। लेकिन जानकार यही कहते रहे कि मास्टर प्लान लागू नहीं होगा। हुआ भी यही। कुछ लोगों की आपत्तियां आईं और ड्राफ्ट रखा का रखा ही रह गया। अब फिर खबर आई है कि भोपाल के मास्टर प्लान का नया ड्राफ्ट बनेगा। इसके लिए 74 जनप्रतिनिधियों की कमेटी बनाई गई है, जिसमें सांसद, विधायक, महापौर, जिला और जनपद पंचायत अध्यक्ष समेत शहर से जुड़ी ग्राम पंचायतों के सरपंच भी शामिल किए गए हैं। यानी, नए ड्राफ्ट में सांसद, विधायकों के सुझाव भी शामिल होंगे।
अभी हम भोपाल शहर का विकास 19 साल पुराने यानी, 2005 के मास्टर प्लान के हिसाब से ही करने को मजबूर हैं। बताया जा रहा है कि पिछले ड्राफ्ट में सांसद, विधायकों की नाराजगी इसी बात से थी कि उनके सुझाव शामिल नहीं किए। भोपाल की मंत्री कृष्णा गौर और विधायक रामेश्वर शर्मा की नाराजगी तो सामने भी आ गई थी। विधायक शर्मा ने ड्राफ्ट को निरस्त करने की बात तक कह दी थी। आखिर में यही हुआ था। इसी साल 23 फरवरी को नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भोपाल मास्टर प्लान को लेकर मीटिंग की थी। इसमें मौजूदा ड्राफ्ट को निरस्त करते हुए नए सिरे से मास्टर प्लान बनाने का फैसला लिया गया था। मीटिंग में यह भी फैसला लिया गया था कि 23 साल आगे यानी, 2047 की आबादी के हिसाब से प्लान तैयार होगा और इसमें मंत्री, सांसद और विधायकों के सुझाव भी शामिल किए जाएंगे।
करीब 5 महीने पहले पुराने मास्टर प्लान के ड्राफ्ट को सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया था। इसलिए अब नई कमेटी में सांसद, विधायक, निगम महापौर, जिपं अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष से लेकर सरपंच तक शामिल किए हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि मास्टर प्लान के लागू नहीं होने के शहर के विकास में बड़ा नुकसान हो रहा है। भोपाल का मौजूदा मास्टर प्लान 1995 में लागू हुआ था। इसकी अवधि 2005 में ही खत्म हो चुकी है, लेकिन इसी मास्टर प्लान के हिसाब से ही विकास के नाम पर काम हो रहे हैं। लेकिन यही कारण इसके सुनियोजित विकास में आड़े आ रहा है। सीधी बात यह है कि बिना किसी आर्गनाइज प्लानिंग के शहर को आगे बढ़ाने का काम किया गया है। इससे शहर 2 दशक यानी, 20 साल पीछे चला गया।
मास्टर प्लान लागू नहीं होने से ट्रांसपोर्ट को लेकर प्लानिंग तैयार नहीं हो सकी। इससे जनता के करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए। इसका बड़ा उदाहरण बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम है। 500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने के बाद अप्रैल, मई-जून में ही इसे तोड़ा गया। यदि मास्टर प्लान होता तो ट्रांसपोर्ट को लेकर भी बेहतर काम हो पाता। इसी तरह 2005 में जो एग्रीकल्चर एरिया था, वह अब भी ऐसा ही है। ऐसे में जमीन को लेकर लोगों के पास ऑप्शन घट गए। लिहाजा, भोपाल में रियल स्टेट बूम पर रहता है। इससे मौजूदा जमीनों को कीमतें बढ़ी हुई है। लैंड यूज चेंज करने के लिए धारा-16 के तहत कार्रवाई करनी होती है या फिर प्लानिंग एरिया से बाहर जाते हैं।
साल 2007 में बड़ा तालाब सूख गया था। इसे देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशभर में जलाभिषेक अभियान की शुरुआत की थी। बड़ा तालाब में भी शुरुआत की गई थी। इसका प्लान बनाने को भी कहा था, लेकिन बड़ा तालाब का प्लान तैयार हुआ और न ही मास्टर प्लान। अभी तालाब के कैचमेंट एरिया में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है। यदि मास्टर प्लान बनता तो अतिक्रमण नहीं होते। यानी, मास्टर प्लान लागू नहीं होने का दंश बड़ा तालाब भी सह रहा है। नया मास्टर प्लान तत्काल लागू होता तो उसी हिसाब से शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होता। सडक़ें, सीवेज सिस्टम, पार्क, घर आदि इसी हिसाब से बनते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कई इलाकों में सडक़ों की चौड़ाई कम है। नदी-तालाबों के किनारे ही हजारों निर्माण तान दिए गए।
सही बात तो यह है कि मास्टर प्लान शहर के विकास के लिए नहीं, कुछ लोगों की मर्जी के हिसाब से बनया जाता रहा है। इसके लिए किसी एक पार्टी का नेता या एक बिल्डर या कथित भू माफिया को दोष नहीं दिया जा सकता। इसमें सभी तरह के वो लोग शामिल हैं, जो पिछले कोई तीन दशकों से भोपाल में जमीनों का खेल खेल रहे हैं। कुछ लोग वो शामिल हैं, जो सत्ता के गलियारों में अपना खासा प्रभाव रखते हैं। कुछ लोग सीधे सत्ता में ही बैठे होते हैं। कुल मिलाकर शहर के सुनियोजित विकास के साथ भद्दी मजाक होती चली आ रही है। यही कारण है कि यहां अवैध कालोनियों से लेकर अवैध निर्माणों का आंकड़ा सैकड़ों से लेकर हजारों में पहुंच गया है। कमजोर लोगों को अतिक्रमण के नाम पर खदेड़ दिया जाता है, प्रभावशाली लोगों के लिए डूब क्षेत्र से लेकर पहाडिय़ां और हरे-भरे जंगल भी रहवासी बना दिए जाते हैं।
फिलहाल नए मास्टर प्लान के ड्राफ्ट का इंतजार करना होगा। पहले तो यह कमेटी ड्राफ्ट बना ले, फिर उस पर बड़े लोगों की सहमति हो जाए। इसके बाद भी लागू हो जाएगा, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता। जय भोपाल।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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