Editorial: मप्र सरकार को मिला दिवाली तोहफा
लाडली बहनों से लेकर अन्य तमाम तबकों को तोहफे और राहत देने वाली मध्यप्रदेश की मोहन सरकार को केंद्र सरकार से दिवाली से पहले एक बड़ा तोहफा मिला है। केंद्र ने राज्य को टैक्स के रूप में 13,987 करोड़ रुपए दिए हैं। यह रकम दो किश्तों में दी गई है। खबर थी कि सरकार इस महीने छह हजार करोड़ का कर्ज और लेने जा रही है, लेकिन अब फिलहाल राज्य सरकार को इस महीने तो अतिरिक्त कर्ज नहीं लेना पड़ेगा।
सामान्य तौर पर मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार से हर महीने लगभग 7,000 करोड़ रुपए मिलते हैं। लेकिन इस बार यह राशि दोगुनी से भी ज़्यादा है। अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार ने सि$र्फ मध्यप्रदेश ही नहीं, अपितु सभी राज्यों को एडवांस टैक्स दिया है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुताबिक केंद्र ने राज्य सरकारों को 1,78,173 करोड़ रुपये का टैक्स दिया है। जबकि आम तौर पर हर महीने 89,086.50 करोड़ रुपये दिए जाते हैं। इसमें अक्टूबर 2024 में मिलने वाली नियमित किश्त के अलावा एक एडवांस किश्त भी शामिल है।
विगत दस अक्टूबर को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा था कि यह राशि आने वाले त्योहारों के मद्देनजर जारी की गई है। इससे राज्य पूंजीगत व्यय में तेजी ला सकेंगे। साथ ही अपने विकास और कल्याणकारी योजनाओं में खर्चों को भी पूरा कर सकेंगे। केंद्र की यह एडवांस किश्त राज्य सरकार को थोड़ी राहत देगी, जो भारी कर्ज के बोझ तले दबी है। सरकार ने इस महीने के अंत में 6,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेने की योजना बनाई थी। लेकिन अब इसे टाल दिया गया है। राज्य ने इस महीने की शुरुआत में 5000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च 2024 तक मध्य प्रदेश सरकार का कुल कर्ज 3.75 लाख करोड़ रुपये के पार हो गया था। इस वित्तीय वर्ष में अब तक लिए गए नए कर्जों के साथ, कर्ज अब 3.95 लाख करोड़ रुपये हो गया है। अगस्त 2024 से राज्य सरकार ने कुल 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया है।
पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बनी नई सरकार को 3.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज विरासत में मिला है। पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने 42,500 करोड़ रुपये उधार लिए थे। इसमें से नई मोहन यादव सरकार का हिस्सा 17,500 करोड़ रुपये (41 प्रतिशत) है, जो मार्च 2024 तक केवल तीन महीनों में उधार लिया गया था।
इस राहत के साथ ही प्रदेश सरकार को अब सख्त वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता व्यक्त की जा रही है। वित्तीय प्रबंधन के मास्टर माने जाने वाले मुख्य सचिव अनुराग जैन के प्रशासनिक कमान सम्हालने के बाद राज्य को काफी उम्मीदें हैं। लेकिन फ्रीबीज योजनाओं के चलते कर्ज उतारना फिलहाल तो संभव नहीं लगता। मुश्किल यह है कि प्रदेश के पास ब्याज चुकाने के लिए तक पैसा नहीं है। असंतुलन क्यों है, इस पर अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन कर्ज में गले-गले तक डूबे राज्य को उबारना भी जरूरी है।
सरकार की हालत ये है कि सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों का वेतन बांटने तक के लिए उधार लेना पड़ रहा है। केंद्र पोषित योजनाओं के लिए मिल रहा पैसा भी कई बार दूसरी जगह समायोजित करना पड़ जाता है, यह एक अलग तरह की समस्या है। पंचायतों से लेकर नगरीय निकायों तक के हालात बहुत खराब हो रहे हैं। दो-दो साल से पंचायत प्रतिनिधियों को राशि नहीं मिली, जबकि कागजों में करोड़ों रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। सडक़ों की मरम्मत इस समय प्राथमिकता पर है, लेकिन उसके लिए भी पैसे नहीं हैं। ठेकेदारों को भुगतान तो दूर, और काम करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
प्रशासनिक गलियारों में सवाल यही उठाया जा रहा है कि इस बार केंद्र से अतिरिक्ति पैसा मिल गया, पर एक महीने बाद क्या होगा? अनुपूरक बजट भी आना है, लेकिन पूर्व बजट में जो राशियां स्वीकृत हो चुकी हैं, उनका पैसा दूसरी जगह खर्च कर दिया गया है। उसे समायोजित कैसे करें, ये भी एक समस्या है। इसलिए ऐसा लग रहा है कि वित्तीय प्रबंधन की कोशिश एबीसीडी से ही शुरू करनी होगी। यानि शुरू से शुरू करेंगे, तो ही कुछ उम्मीद है। नहीं तो कर्ज की रफ्तार थामना मुश्किल ही होगा।
– संजय सक्सेना