Editorial
मुद्दा विरासत का


एक तरफ देश में विरासत की संपत्ति को लेकर बयानी जंग तेज हो गई है और चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। एक-दूसरे पर हमले हो रहे हैं। तो दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय में भी इस पर मामला चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ इस सवाल पर विचार कर रही है कि क्या राज्य निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत समुदाय की संपत्ति मानते हुए नियंत्रित करने का अधिकार रखता है। स्वाभाविक ही इस सवाल में निजी संपत्ति के पुनर्वितरण का पहलू भी शामिल है।
असल में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अमेरिका के शिकागो में कहा है कि अमेरिका में विरासत कर लगता है. अगर किसी के पास 100 मिलियन डॉलर की संपत्ति है और जब वह मर जाता है तो वह केवल 45 फीसदी अपने बच्चों को ट्रांसफर कर सकता है। 55 फीसदी सरकार द्वारा हड़प लिया जाता है। यह एक दिलचस्प कानून है। यह कहता है कि आपने अपनी पीढ़ी में संपत्ति बनाई और अब आप जा रहे हैं, आपको अपनी संपत्ति जनता के लिए छोडऩी चाहिए- पूरी नहीं, आधी। ये जो निष्पक्ष कानून है मुझे अच्छा लगता है। इसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर चौतरफा हमला शुरू कर दिया। हालांकि कांग्रेस ने तत्काल प्रभाव से पित्रोदा के बयान से किनारा करते हुए साफ भी कर दिया कि उसका इस बयान से कोई लेना-देना नहीं है और न ही यह मुद्दा उसके द्वारा उठाया जा रहा है। लेकिन भाजपा फिर भी हमलावर है, क्योंकि भाजपा कांग्रेस पर हमले का कोई मौका छोडऩा नहीं चाहती। अब वह जनता के सामने यह साबित करने पर तुली है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो विरासत का कानून लाएगी और लोगों की व्यक्तिगत संपत्ति सरकार हड़प लेगी।
यह तो रही राजनीति की बात। राजनीति में वैसे भी राई का पहाड़ बना लिया जाता है। लेकिन देश में इस तरह का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पहले भी उठता रहा है। यह बात और है कि इससे जुड़े कुछ अहम पहलू पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। इससे जुड़े सबसे चर्चित मामले, कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी में 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से फैसला दिया था कि निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को समुदाय की संपत्ति नहीं माना जा सकता। लेकिन आगे चलकर इसी मामले में जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर की अल्पमत राय ज्यादा अहम मानी गई, जिसके मुताबिक चूंकि व्यक्ति समुदाय का सदस्य होता है इसलिए उसकी संपत्ति समुदाय की संपत्ति के दायरे में आती है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने आया ताजा मामला महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डिवेलपमेंट एक्ट (म्हाडा) में 1986 में हुए एक संशोधन से जुड़ा है। यह संशोधन राज्य सरकार को जीर्ण-शीर्ण इमारतों और उसकी जमीन को अधिग्रहित करने का अधिकार देता है बशर्ते उसके 70 प्रतिशत मालिक ऐसा अनुरोध करें। इस संशोधन को प्रॉपर्टी ओनर्स असोसिएशन की ओर से अदालत में चुनौती दी गई है।
असल में नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत आने वाले अनुच्छेद 39 बी के संबंधित प्रावधानों को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता रहा है। जस्टिस अय्यर के बहुचर्चित अल्पमत फैसले में इस मामले को समाजवादी नजरिए से देखा गया। इसे पूंजीवादी नजरिए से भी देखा जा सकता है, जिसके अनुसार निजी संपत्ति में राज्य के किसी तरह के दखल से परहेज किया जाता है। लेकिन बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट कर दिया कि दोनों में से कोई भी नजरिया इस मामले में संपूर्ण नहीं माना जा सकता।
जस्टिस चंद्रचूड़ के अनुसार भारत के संदर्भ में संपत्ति को देखने का महात्मा गांधी का दृष्टिकोण सबसे प्रासंगिक है, जिसमें ट्रस्ट की अवधारणा है। इस अवधारणा में न केवल निजी संपत्ति की और उसे परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित करने की गुंजाइश है, अपितु समुदाय के सर्वोच्च हितों के अनुरूप उसके सर्वश्रेष्ठ उपयोग की संभावना भी है।
चुनावी बयानों से हटकर यह देखना होगा कि सर्वोच्च अदालत में चल रही सुनवाई आखिरकार किस निष्कर्ष पर पहुंचती है। न्यायालय में चल रही बहस के मौजूदा स्वरूप को देखते हुए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि जहां यह फैसला इस मसले से जुड़ी तमाम अस्पष्टताएं दूर करेगा, वहीं संपत्ति पर नई भारतीय और संवैधानिक दृष्टि विकसित करने में भी मददगार होगा। आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले में एकदम स्पष्ट फैसला आना चाहिए। तभी इस पर सही बहस भी हो सकेगी और लागू करने पर विचार भी किया जा सकेगा।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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